पूरे प्रकरण में पुरातत्व निदेशक गंभीर नहीं, आज तक नहीं किया दौरा
कोटा संभाग में कोटा और झालावाड़ के अति प्राचीन मंदिर समूहों का मूल स्वरूप बिगाड़ने और घटिया कार्य कराने के मामले में पुरातत्व विभाग के अधिकारी फंसते नजर आ रहे हैं। स्मारकों का मूल स्वरूप बिगाड़ने का मामला राजस्थान उच्च न्यायालय पहुंच चुका है और चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंति और जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की बैंच ने पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, राजस्थान से इस संबंध में 31 मार्च 2021 तक जवाब मांगा है।
पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी हरफूल सिंह ने इन मंदिरों के संबंध में उच्च न्यायालय में याचिका पेश की थी। याचिका की सुनवाई करते हुए महंती ने निर्देश दिए कि विभाग इस मामले की जांच के लिए एक अधिकारी नियुक्त करे, जो इन ऐतिहासिक स्मारकों का निरीक्षण करे। इसके अलावा विभाग से कहा गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सवालों की जांच की जाये और 31 मार्च तक फोटोग्राफ के साथ रिपोर्ट पेश की जाये कि स्मारकों पर कराया गया काम विभाग के नियमों के अनुसार है या नहीं।
उल्लेखनीय है कि क्लियरन्यूज डॉट लाइव ने प्राचीन स्मारकों के मूल स्वरूप बदलने के मामले को प्रमुखता से उठाया और ‘पुराततत्व विभाग में पोपाबाई का राज’ अभियान चलाकर निरंतर अधिकारियों की कारस्तानी को उजागर किया। क्लियरन्यूज ने ‘क्या पुरातत्व विभाग राजस्थान में चल रहा पोपाबाई का राज? हरे पत्थरों से बने 1000 वर्ष से भी पुराने पोपाबाई मंदिर का जीर्णाेद्धार लाल रंग के सैंड स्टोन से कराया, काम में नियमों की टांग न अड़े, इसलिए कर रहे तकनीकी अधिकारियों को साइडलाइन, दो साल में अधिकारियों के 50 से अधिक दौरे, फिर भी बदल गया अतिप्राचीन मंदिरों का मूल स्वरूप, निदेशक की भूमिका संदिग्ध, अपने बुने जाल में खुद फंसे पुरातत्व निदेशक’ खबरें चलाकर विभाग की पोल खोली थी।
पुरातत्व विभाग के सूत्रों के अनुसार न्यायालय के इस आदेश के बाद अधिकारियों की नींदें उड़ी हुई है और वह अपने बचाव में जुटे हुए हैं क्योंकि इस मामले में निदेशक, इंजीनियरिंग विभाग और कोटा वृत्त अधीक्षक फंसते दिखाई दे रहे हैं। इन मंदिर समूहों का निर्माण हरे और मटमैले पत्थरों से हुआ है, जबकि विभाग ने आस-पास में उपलब्ध पत्थरों को दरकिनार कर करौली-धौलपुर के पत्थरों से मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जो गुलाबी रंग के हैं, ऐसे में इन मंदिरों का मूल स्वरूप बिल्कुल खत्म हो गया है।
अधिकारियों को इस बात का मालूम था कि पुरातत्व नियमों के अनुसार दूसरे रंग के पत्थर नहीं लगवाए जा सकते हैं लेकिन कमीशनबाजी के खेल के चलते अधिकारी बरसों तक आंखें मूंदे रहे। काम को नियमानुसार बताकर ठेकेदार को रनिंग बिल के लिए एनओसी दे दी। बिल पास होने से पहले निदेशक के पास पहुंचे और उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं उठाई, जिसका साफ अर्थ है कि अधिकारियों के निर्देशों पर ही यह काम हुआ। साइट पर मौजूद पुराने पत्थरों का उपयोग नहीं किया गया। कार्यों में विभाग के तकनीकी अधिकारियों से कोई राय नहीं ली गई बल्कि निदेशक और इंजीनियरिंग अधिकारी मनमानी से काम कराते रहे। जब शिकायतें होनी शुरू हुई तो दो साल बाद उप निदेशक की अध्यक्षता में कार्यों की जांच कराई गई।
अब उच्च न्यायालय के आदेश आने के बाद विभाग के अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है। निदेशक पीसी शर्मा को मैसेज करने और फोन करने के बावजूद इस मामले में अपना पक्ष नहीं रखा। अधिशाषी अभियंता मुकेश शर्मा से भी फोन पर जानकारी चाही गई लेकिन वह भी इस मामले में बोलने से बचते रहे। वहीं कोटा वृत्त अधीक्षक उमराव सिंह ने भी इस मामले में कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया। अब देखने वाली बात यह रहेगी कि यदि उच्च न्यायालय में मंदिर समूहों में नियम विरुद्ध कार्य और स्मारकों का मूल स्वरूप बिगाड़ने की बात साबित हो जाती है तो क्या सरकार विभाग के निदेशक समेत अन्य जवाबदेह अधिकारियों के खिलाफ शास्तिगत कार्रवाई करेगा?