जयपुर

घाट की गूणी स्थित प्राचीन छतरियों पर संकट के बादल, 8 महीने बाद भी नहीं हो पाई टूटी छतरी की मरम्मत

मलबे में जल जमाव हुआ तो दूसरी छतरियों को भी पहुंचेगा नुकसान

जयपुर की आगरा रोड पर घाट की गूणी में मोतियों की माला की तरह नजर आने वाली प्राचीन छतरियों पर संकट के बाद छाए हुए हैं। यह मोतियों की माला अगली बारिश में बिखर सकती है, क्योंकि इनमें से एक छतरी के गिरने के बाद पुरातत्व विभाग और उसकी कार्यकारी एजेंसी आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) ने इसकी सुध नहीं ली है। आगामी बारिश के सीजन में टूटी हुई छतरी के मलबे से जल जमाव हो सकता है और अन्य छतरियां भी धराशायी हो सकती है।

14 अगस्त 2020 को जयपुर में अतिवृष्टि हुई। इसका खामियाजा हमारी विरासतों को भुगतना पड़ा। अल्बर्ट हॉल में हजारों की संख्या में बहुमूल्य पुरा सामग्रियां नष्ट हो गई। बारिश में घाट की गूणी में बनी छतरियों और विद्याधर बाग की भी शामत आ गई। भारी बारिश के कारण जहां एक प्राचीन छतरी धराशायी हो गई, वहीं विद्याधर बाग की भी दीवारें टूट गई थी।

अतिवृष्टि को हुए आठ महीने बीत चुके हैं और तीन-चार महीनों बाद फिर से मानसून सीजन शुरू हो जाएगा। मानसून को देखते हुए कहा जा रहा है कि टूटी हुई छतरी के कारण अन्य छतरियां भी धराशायी हो सकती है, क्योंकि यहां अभी तक मलबे को भी साफ नहीं किया गया, जो पानी के बहाव के रास्ते को रोक रहा है। यदि यहां दोबारा जल जमाव होता है तो इस परिसर में बनी अन्य छतरियां भी गिर सकती है।

आपसी खींचतान में उलझे जिम्मेदार
पिछले मंगलवार को अल्बर्ट हॉल में पुरातत्व और एडमा के बीच हुई हंगामेदार बैठक में इस छतरी का मामला उठा। छतरी को लेकर पुरातत्व निदेशक पीसी शर्मा ने एडमा अधिकारियों पर जमकर भड़ास निकाली और गंभीर आरोप लगाया था कि एडमा के अधिकारी कुछ चुनिंदा स्मारकों पर ही काम कराते हैं। एडमा की नियमावली के अनुसार जयपुर के सभी स्माराकों पर कार्य कराना एडमा की जिम्मेदारी है।

निदेशालय के निर्देशों के बावजूद एडमा छतरी का पुनर्निर्माण नहीं करा रहा। यदि जयपुर के किसी भी स्मारक का प्रस्ताव आता है तो एडमा को उसका काम कराना ही होगा। एडमा यदि यह काम नहीं कराता है तो उसका कोई औचित्य भी नहीं है। इस दौरान विभाग के अन्य अधीक्षकों ने भी एडमा पर मनमर्जी से काम कराने, जरूरत के समय काम नहीं कराने, समय पर काम पूरा नहीं कराने और विभाग के अधीक्षकों की सहमति के बिना काम कराने के आरोप लगाए।

हमें तो छतरी गिरने की जानकारी ही नहीं थी

इन गंभीर आरोपों पर एडमा के कार्यकारी निदेशक (कार्य) सतेंद्र कुमार ने कहा कि एडमा को छतरी के गिरने की जानकारी ही नहीं थी। एडमा ने पहले कभी घाट की गूणी में कोई काम नहीं कराया। यह मामला तो इसी बैठक में हमारे संज्ञान में आया है, जब डायरेक्टर ने हमको बताया। अब जो कुछ हो सकता है, हम कराते हैं।

कई बार कर चुके निरीक्षण

लगता है कि एडमा में नए आए सतेंद्र कुमार को पिछली जानकारी नहीं है। पूर्व में एडमा की ओर से कई बार घाट की गूणी में कार्य कराया जा चुका है। वर्ष 2014-15 में भी गूणी की लगभग सभी छतरियों और मंदिरों के संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्य एडमा की ओर से कराया गया था। रही बात जानकारी की तो यह सफेद झूंट नजर आ रहा है कि एडमा को इस छतरी की पहले जानकारी नहीं थी। एडमा और पुरातत्व अधिकारियों ने कई बार घाट की गूणी का निरीक्षण किया था। पुरातत्व निदेशक की ओर से भी छतरी के पुनर्निर्माण के लिए एडमा को पत्र लिखा जा चुका है।

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