दिवाली का त्योहार अंधकार से प्रकाश की ओर जाने वाला त्यौहार है। इस वर्ष दीपावली का त्योहार गुरुवार, 31 अक्टूबर से शुक्रवार 1 नवंबर की शाम तक मनाया जाना है। दीपावली 5 दिनों तक चलता है जिसे पंच दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस से दिवाली का पर्व आरंभ हो जाता है जो भाई दूज तक चलता है। यह भारत और नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में कार्तिक अमावस्या के दिन ही भगवान श्रीराम 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका के राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासी भगवान श्रीराम के आने की खुशी में पूरे नगर को दीपों से सजाकर उत्सव मनाया था तभी से दिवाली के मनाने की परंपरा आरंभ हुई।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के मुहूर्त का महत्व
एक धार्मिक मान्यता के अनुसार सतयुग में कार्तिक अमावस्या तिथि पर समुद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु ने पत्नी के रूप में इन्हे स्वीकार किया था। हिंदू धर्म में दीपावली पर यानी कार्तिक अमावस्या की तिथि पर प्रदोष काल के दौरान मां लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान से की जाती है इसलिए दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल में किया जाना सबसे उपयुक्त माना जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोष काल कहा जाता है।
दीपावली पूजन का महत्व
दीपावली पर प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न होने पर पूजा करने का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की रात को स्थिर लग्न में अगर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाए तो भक्त के घर पर मां लक्ष्मी अंश रूप में ठहरकर वास करने लगती हैं। इसके अलावा दिवाली पर महानिशीथ काल के दौरान भी लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व होता है। महानिशीथ काल में लक्ष्मी पूजा तांत्रिक, साधक और कर्म कांड वाले पंडित के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। महानिशीथ काल में मां काली की पूजा करने का विधान होता है।
शास्त्रों में दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के लिए प्रदोष काल, स्थिर लग्न के मुहूर्त जोकि वृषभ लग्न माना जाता है, निशीथ काल का मुहूर्त और चौघड़िया के मुहूर्त को देखकर पूजा की जाती है। आइए जानते हैं दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त कौन-कौन से हैं..
इस वर्ष दीपावली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या, यानी 31 अक्टूबर 2024 को शुरू होगा और 1 नवंबर 2024 को समाप्त होगा। विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन के लिए प्रदोष काल और महानिशिथ काल को शुभ माना गया है। संवत 2081 के अनुसार अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3:53 बजे से आरंभ होकर 1 नवंबर को शाम 6:17 बजे समाप्त होगी।
दीपावली पूजन मुहूर्त – 31 अक्टूबर 2024
कार्तिक अमावस्या आरंभ: 31 अक्टूबर, दोपहर 3:53 बजे
समापन: 1 नवंबर, शाम 6:17 बजे तक
प्रदोष काल: सायं 5:35 से रात 8:11 तक
वृष लग्न: सायं 6:25 से रात 8:20 तक
मिथुन लग्न: रात्रि 9:00 से 11:23 तक
निशिथ काल: रात्रि 11:39 से मध्यरात्रि 12:41 तक
सिंह लग्न: मध्यरात्रि 1:36 से 3:35 तक
लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे शुभ समय प्रदोष काल और वृषभ लग्न के दौरान रहेगा, जो 31 अक्टूबर की शाम 6:25 से 7:13 के बीच (कुल 48 मिनट) का है।
दीपावली पूजन मुहूर्त – 1 नवंबर 2024
जयपुर-जोधपुर के पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के निदेशक, ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, इस वर्ष दीपावली का प्रमुख दिन 1 नवंबर 2024 को माना जाएगा, क्योंकि इस दिन प्रदोष काल में अमावस्या का योग है। स्थिर लग्न और नवांश के साथ अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन करना अत्यंत शुभ होगा।
1 नवंबर को लक्ष्मी पूजन के विशेष मुहूर्त:
चर, लाभ, अमृत का चौघड़िया: प्रातः 6:40 से 10:47 तक
अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11:46 से दोपहर 12:34 तक
शुभ चौघड़िया: दोपहर 12:10 से 1:33 तक
चर चौघड़िया: सायं 4:17 से 5:40 तक
रात्रि का लाभ चौघड़िया: रात्रि 8:57 से 10:34 तक
शुभ-अमृत-चर का चौघड़िया: मध्यरात्रि 12:10 से अंतरात्रि 5:02 तक
लक्ष्मी पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय 1 नवंबर की शाम 5:40 से रात 8:16 तक रहेगा, जिसमें वृषभ लग्न सायं 6:31 से रात 8:28 तक रहेगा।