People who made it BIG

कभी हार नहीं मानते स्वभाव से भी खिलाड़ी दिग्विजय भंडारी!

कुछ लोग स्वभाव से खिलाड़ी होते हैं और ऐसे लोग जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते बल्कि वे मुकाम हासिल करने के लिए संघर्ष करते ही जाते हैं। उनका संघर्ष तब तक विराम नहीं पाता जब तक जीवन में सफलता कदम नहीं चूम लेती। ऐसे संघर्षशील खिलाड़ी रहे हैं दिग्विजय भंडारी। क्लियरन्यूज डॉट लाइव ने अपनी विशेष लेखों की श्रृंखला People who made it BIG के तहत दिग्विजय भंडारी  से विशेष बातचीत की। पेश है इस बातचीत के कुछ अंश..

मां की बीमारी के कारण घर लौटे

पिता श्री ए.आर. भंडारी की तरह इंजीनियर बनने का सपना पाले दिग्विजय भंडारी ने बारहवीं पास करने के लिए इंजीनियरिंग की परीक्षा दी। और जब मार्क्स मिले तो पिता की टिप्पणी थी, बेटा यदि आरक्षण के जरिये इंजीनियरिंग में एडमीशन लेना होता तो भी मार्क्स पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में कुछ और ही दिशा चुन लो। फिर, साधारण रूप से विज्ञान विषय में ग्रेजुएशन किया और नई दिल्ली से एमबीए की डिग्री हासिल कर ली।

कैंपस में ही चयन हो गया और अच्छी नौकरी भी लग गई। परिवार में इकलौते बेटे थे और परिवार की देखभाल करना संस्कारों में रहा है। ऐसे में जब मां ज्ञान भंडारी के बीमार होने की सूचना मिली तो वापस घर लौटना पड़ा और कुछ समय बाद फिर से नौकरी की तलाश शुरू हो गई।

हैंडमेड पेपर के कारोबार की शुरुआत

दिग्विजय भंडारी अपनी फैक्ट्री में

मनमाफिक नौकरी इतनी सरलता से आखिर कहां मिलती है सो, पिताजी के साथ घर से ही हैंडमेड पेपर के कारोबार की शुरुआत की। पर्यावरण अनुकूल बिजनेस मॉडल चलाने की सदाशयता कुछ ही समय में हकीकत के धरातल पर दम तोड़ती दिख रही थी। सारे ख्वाब धराशायी होते दिख रहे थे पर संघर्ष जारी था। विवाह हो गया और एक पुत्र भी। निस्संदेह जिम्मेदारी बढ़ी तो और संघर्ष और कड़ा होने लगा। उधर, पिताजी का साया भी सिर से उठ गया। मन टूटने लगा था पर सफलता के लिए संघर्ष जारी था।

माता-पिता का आशीर्वाद और परिवार का सहयोग

चार बहिनों प्रीति, पदमा, निधि और विधि के इकलौते लाड़ले भाई दिग्विजय खुद से ज्यादा परिवार को महत्व देते रहे हैं। इसी स्वभाव की उन्हें पत्नी भी मिली हैं। दिग्विजय पर माता-पिता का सदैव आशीर्वाद रहा और सोने में सुहागा रहा कि पत्नी राजुल ने दिग्विजय का पूरी सक्रियता से साथ देने का निश्चय किया। ऐसे में दिग्विजय दोगुने जोश के साथ जुट गये काम में। कोशिश करने वालों की आखिर हार कहां होती है और फिर केवल नाम के तो दिग्विजय नहीं थे भंडारी। साहस तो कूट-कूट कर भरा रहा है। अपनी सोच को मामूली सा परिवर्तित किया और बिजनेस मॉडल को हैंडमेड पेपर के साथ विशिष्ट गिफ्ट आर्टिकल्स की ओर केंद्रित किया तो काम ऐसा चल निकला कि जयपुर के मालवीय नगर औद्योगिक क्षेत्र में अपनी नई फैक्ट्री स्थापित कर ली।

दिग्विजय के जीवन में नवीन सकारात्मक परिवर्तन आया बेटे अभिजय के जन्म के बाद। काम में बढ़ोतरी होने लगी और नाम में भी। दिग्विजय जीवन में परिवर्तन का श्रेय अपने माता-पिता के आशीर्वाद को देते हैं। इसके अलावा दिग्विजय की पत्नी राजुल भी न केवल दिग्विजय के काम में हाथ बंटाती हैं बल्कि स्वयं बैडमिंटन भी खेलती हैं। वे जयपुर में बैडमिंटन की दो एकेडमियां भी चला रही हैं। पुत्र अभिजय भी अब बड़ा हो गया है और पेशेवर क्रिकेटर है। अब तो वो भी कारोबार में अपने नये विचार देने लगा है।

नये विचारों की चलती-फिरती फैक्ट्री
दिग्विजय भंडारी जो कभी हार नहीं मानते

दिग्विजय भंडारी अब गिफ्ट आर्टिकल्स तैयार करने और इनके नये-नये विचारों की चलती-फिरती फैक्ट्री बन चुके हैं। उनके साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप करीब 50 लोग जुड़े हुए हैं। वे गिफ्टिंग और पैकेजिंग के कारोबार में देश का उभरता हुआ सितारा हैं। बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने और मीडिया हाउस उनके विचारों को पूरी गंभीरता के साथ सुनते हैं और उन पर अमल भी करते हैं।

पिछले दिनों एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस के कपड़ों की नगरी भीलवाड़ा संस्करण के लिए स्थापना दिवस पर उन्होंने कपड़े पर अखबार निकालने के विचार को मूर्त रूप दिया। इस अनूठे काम का जबर्दस्त रेस्पांस मिला। विशेष काम की पूरे राज्य में भूरि-भूरि प्रशंसा की गई।

सफलता की खान

दिग्विजय अब सफलता की खान हो चुके हैं। उनके अंदर एक खिलाड़ी है जो उन्हें हार नहीं मानने देता। दिग्विजय रोजाना कम से कम 20 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं। काम के साथ तन को पूरी तरह फिट रखते हैं। इसके अलावा सामाजिक कार्यों में भी उनकी जबर्दस्त रुचि है।

वे सहायता कार्य इस तरह से करते हैं कि दाहिने से किये काम की खबर बाएं हाथ को भी नहीं होने देते। कभी हार नहीं मानने वाले दिग्विजय भंडारी राजस्थान के उभरते हुए चंद उद्यमियों में से हैं जो सफलता के नित नये सोपान पूरी विनम्रता के साथ छूते जा रहे हैं।

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