वर्तमान समय में ‘आत्महत्या’ एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या का स्वरूप धारण करती हुई नज़र आ रही है। वैश्विक स्तर पर हर चालीस सैकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता या करती है, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है। वास्तव में जितनी आत्महत्या होती है उससे पच्चीस प्रतिशत अधिक आत्महत्या करने के प्रयास होते है। इसीलिये, बेहद जरूरी है कि कभी अनदेखा (Ignore) ना करें किसी का असामान्य व्यवहार (unusual behavior)।
आत्महत्या 15 से 29 वर्ष के लोगों की मौत का दूसरा प्रमुख कारण
15-29 वर्षं के आयुवर्ग में होने वाली मौत के विभिन्न कारणों में आत्महत्या दूसरा प्रमुख कारण पाया जाता है। जो आयुवर्ग देश का भविष्य है उसे इस तरह समाप्त होते हुए देखना किसी भी राष्ट्र के लिए अत्यंत दुखदायक है। यद्यपि ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन’ द्वारा प्रति वर्ष 10 सितंबर को विश्वभर में ‘आत्महत्या प्रतिबंध दिन’ का अनुपालन किया जाता है। लेकिन, वैश्विक पटल पर आज भी अनेक देश ‘आत्महत्या’ के विषय को स्वास्थ्य के संदर्भ में वरीयता देते हुए नहीं दिखाई देते। वैश्विक स्तर पर केवल 28 देश ही हैं जिन्होंने आत्महत्या प्रतिबंध के लिए राष्ट्रीय नीति बनाई हुई है। इस वर्ष ‘कृतिद्वारा उम्मीद का निर्माण’ इस विषय को लेकर विश्वभर में ‘आत्महत्या प्रतिबंध दिन’ के संदर्भ में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने के प्रयास हो रहे है।
जीवन में बढ़ता तनाव
वर्तमान स्थिति में सात-आठ वर्ष की अवस्था से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक, जीवन के किसी भी पड़ाव पर व्यक्ति आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाते हुए दिखाई दे रहे हैं। व्यक्ति को भावात्मक तथा मानसिक दृष्टि से सक्षम बनाने में माता-पिता, पारिवारिक वातावरण, विद्यार्थी जीवन के मित्र और शिक्षक मुख्य भूमिका निभाते है। आकस्मिक परिस्थिति का सामना हो या बहुत ही करीबी व्यक्ति की मृत्यु जैसी किसी भी स्थिति का सामना करने से लेकर, छोटी-छोटी बातों को अस्वीकार करने की मानसिकता तक, ‘तनाव’ बढ़ता हुआ पाया जा रहा है। घरवालों ने मोबाइल छीन लिया इस बात पर नाराज हुए बच्चे की आत्महत्या हो या किसी गणमान्य व्यक्ति की आत्महत्या, मानसिक तनाव का किस प्रकार से सामना करना चाहिए? इसके लिए हमारे प्रयास कम पड़ जाते है।
मानसिक बीमारियों को अक्सर छिपाया जाता है
मानसिक समस्या को कलंक के रूप में या पिछले कर्मों के फल के स्वरूप में देखा जाना अवैज्ञानिक हैं। मानसिक बीमारियों को छिपाने की कोशिश की जाती है। परामर्शदाता या मनोवैज्ञानिक द्वारा उपचार कराने के लिए लोग आगे नहीं आते। ग्रामीण कस्बों तथा आदिवासी क्षेत्र के लोगों में मानसिक समस्याओं के बारे में जागरूकता नहीं दिखाई देती। अज्ञान, गरीबी, अंधविश्वास इत्यादि कारणों से मानसिक समस्या या तनाव दूर करने के लिए प्रयास नहीं किये जाते। परिणामत: ऐसे लोग ‘आत्महत्या’ की ओर कब बढ़ जाते है, इसका पता भी नहीं चलता।
बेहद जरूरी है सकारात्मक मानसिकता
तनाव का सामना तो हमें जिदंगी के हर पड़ाव पर करना पड़ता है। छोटे बच्चे भी जब पहली बार पाठशाला में जाते है तो माता-पिता को छोड़कर यानी एक सुरक्षित वातावरण से दूसरी अनजानी जगह पर जाने में डरते हैं। इसलिए अधिकतर बच्चे पहली बार पाठशाला जाते हुए रोते हैं। उस वक्त उन छोटे बालकों के मन में भी तनाव की स्थिति होती है। यदि अभिभावक बच्चों को समझाते हैं, पाठशाला बच्चों को आकर्षित करने वाली होती हैं तो बच्चों का तनाव कम होने लगता है। इस स्थिति का सामना हर व्यक्ति नयी चीज़ सीखते वक्त, नई जगह पर जाते हुए, नये लोगों से मिलते हुए अनुभव करता है। कभी-कभी लंबे समय से चल रही बीमारी, असफलता का डर आदि कारणों से व्यक्ति तनाव से गुजरता है। इन परिस्थितियों में सकारात्मक मानसिकता बनाये रखना बहुत जरूरी होता है।
व्यायाम, पर्याप्त नींद और संवाद हैं आवश्यक
तनाव को दूर रखने के लिए दिनचर्या में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव लाने होगें। नियमित स्वस्थ्यानुरूप शारीरिक व्यायाम करना होगा। रोज कम से कम आठ घंटों की नींद/विश्राम अवश्य लेना होगा। जब तक आवश्यकता न हो तब तक टीवी या मोबाइल की ‘स्क्रीन’ से दूर ही रहें। अपनी रुचि के कार्य को कम से कम एक घंटे का समय दे। परिवार के साथ एक समय भोजन कर लें। सप्ताह में एक बार रिश्तेदार या मित्रों से मिलें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि संवाद जारी रखें।
एकाकीपन से बचें
कई लोग परिवार के सदस्यों के साथ, काम पर सहकर्मियों के साथ या मित्रों के साथ समायोजन नहीं कर पाते। वे चाहते है कि अपने मन के अनुसार ही सामने वाला व्यक्ति उनसे व्यवहार करे। सामने वाले व्यक्ति की स्वतंत्र राय को वे अपनाते ही नही है। सामाजिक समायोजन कौशल व्यक्ति को मिल-जुलकर काम करने और आगे बढ़ने के लिए मदद करता है। दुर्भाग्यवश आज अधिकाधिक व्यक्ति आत्मकेंद्रित होते हुए दिखाई दे रहे हैं। परिणामस्वरूप बहुत सी परिस्थितियों में व्यक्ति अकेला हो जाता है। ऐसे अकेले लोग ‘अवसाद’ के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है।
‘अवसाद’ आत्महत्या की ओर ले जानेवाला एक महत्वपूर्ण कारण है। बहुत लोग सोशल मीडिया पर अपने फॉलोअर्स से खुश रहते हैं। ‘आभासी’ जगत के व्यवहार में खोये रहते हैं। लेकिन, प्रत्यक्ष रूप में लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने में आप स्वयं की अच्छी-बुराई को पहचानने लगते हो। लोगों की सभी प्रकार की भावनाओं को प्रत्यक्ष रुप से अनुभव कर सकते हो। ‘आभासी’ जगत में भावनाओं की अनुभूति के अभाव में व्यक्ति ऊपरी तौर पर समुदाय में दिखता है परंतु वास्तविकता में लोगों से जुड़े रहने में उन्हें बहुत सारी समस्याएं आती है।
व्यक्ति के असामान्य व्यवहार को समझें
अपने परिवार का व्यक्ति, कार्यालय का कर्मचारी, अपना मित्र, पड़ोसी कुछ दिनों से गुमसुम हो गया है, अकेले-अकेले रहने लगा है, सहमा हुआ सा लग रहा है। इस बात की ओर हमारा ध्यान बहुत कम जाता है। आभासी जगत के व्यवहार में अनगिनत समय व्यतीत करने के बजाय, अगर हम हमारे आस-पास के लोगों को भावनात्मक स्तर पर समझ पाए तो ‘आत्महत्या’ रोकने के लिए कुछ सक्रिय योगदान हम भी दे सकते है।