एक समय था राजस्थान में भी जब बिटिया की पढ़ाई विशेषतौर पर पारम्परिक परिवारों में कम ही देखने को मिलती थी। और, किसी बिटिया का मेडिकल डॉक्टर बनना तो और भी बड़ी बात हुआ करती थी। कुछ ऐसे ही माहौल और पारम्परिक संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती हैं मीनाक्षी। लेकिन, उन्हें आशीर्वाद मिला प्रगतिशील विचारों वाले पिता जी का जो बैंक में उच्च अधिकारी थे।
उन्होंने अपनी बिटिया को आगे बढ़ाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी और हर वो काम करने के लिए प्रेरित किया जो परिवार में लड़के कर सकते थे। सो, उन्हीं के आशीर्वाद से मीनाक्षी डॉक्टर बन सकीं। क्लियरन्यूज डॉट लाइव ने अपनी विशेष लेखों की श्रृंखला People who made it BIG के तहत डॉ. मीनाक्षी जोशी से विशेष बातचीत की। पेश है इस बातचीत के कुछ अंश..
पारिवारिक जिम्मेदारियां भी बखूबी उठाती हैं
यद्यपि डॉ. मीनाक्षी बनना चाहती थीं कार्डिएक सर्जन यानी दिल की डॉक्टर लेकिन एमबीबीएस करने के लगभग तुरंत बाद ही शादी हो गई शिक्षक सुरेश जोशी से। और फिर, उलझकर रह गयी जिंदगी गृहस्थ जीवन में। आगे की पढ़ाई का मौका ही नहीं बन सका। पारम्परिक परिवारों की रूढ़ियां केवल बेड़ियां ही नहीं होतीं कई बार वे संस्कारों की वाहक भी हुआ करती हैं। मीनाक्षी केवल चिकित्सक ही नहीं हैं, उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियां भी उठाना बखूबी आता है।
खुद नहीं बन पाईं सर्जन पर बेटे को बनाने की चाहत
वे दिल का इलाज करने की तमन्ना जरूर रखती रही हों किंतु तन और मन का इलाज करने में न केवल दक्ष हैं बल्कि इसकी जबर्दस्त क्षमता भी रखती हैं। डॉ. मीनाक्षी और सुरेश जोशी का एक पुत्र है दक्ष जो मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। दक्ष भी अपनी मां मीनाक्षी की तरह ही सर्जन बनने की चाहत रखता है लेकिन दिल का नहीं दिमाग का। मीनाक्षी का कहना है कि वे दक्ष को उसकी इच्छा पूरी करने में हर संभव मदद करेंगी।
कोरोना काल में नहीं पहना पीपीई किट
मीनाक्षी जोशी वर्तमान में जयपुर के स्टार हॉस्पिटल में काफी लंबे से चिकित्सक हैं। वे वहां लोगों के तन और मन का इलाज करती हैं इसलिए जो लोग उनसे नियमित तौर पर इलाज कराते रहे हैं, उन पर जबर्दस्त भरोसा रखते हैं। यह भरोसा कोरोना काल में तब और अधिक बढ़ गया, जब उन्होंने कोरोना से संक्रमित और भयाक्रांत मरीजों का मनोबल बढ़ाये रखने और वे इस खतरनाक बीमारी को साधारण बीमारी ही समझें, इसके लिए पीपीई किट एक बार भी नहीं पहना।
वे मरीजों को छूती भी थीं और उनमें कोरोना से ना डरने का भरोसा भी जगाती थीं। यद्यपि उनके पति और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे उनके बेटे ने उन्हें कोरोना के इस दौर में जोखिम उठाने से मना किया लेकिन मरीजों को कोरोना की बीमारी को सामान्य बीमारी जताने के इरादे से उन्होंने जीवन का यह बड़ा जोखिम उठाया। केवल मास्क और हैंड सेनेटाइजर के जरिये ही उन्होंने स्वयं को सुरक्षित रखा।
कोरोना योद्धाओं का सम्मान
इसी का परिणाम था कि स्टार हॉस्पिटल से स्वस्थ होकर निकलने वाले कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या काफी अधिक रही। इसके अलावा स्टार अस्पताल की ओर से उन्होंने विशेषतौर पर पुलिसकर्मियों का भी बेहद रियायती दरों पर इलाज किया। उन्हें थानों पर जाकर सम्मानित किया और उनका मनोबल बनाये रखने के साथ कोरोना से बचाव के टिप्स भी दिये।
लॉक डाउन में इलाज ही नहीं समाजसेवा भी, लोग उनके व्यवहार के कायल
जैसा कि हमने शुरुआत में ही बताया कि डॉ. मीनाक्षी जोशी चिकित्सकीय इलाज ही नहीं करतीं बल्कि हैं वे लोगों के मन का इलाज भी करती हैं। उनका रिश्ता अपने मरीजों से डॉक्टर-मरीज का नहीं एक मित्र, बहन, बेटी और मां सा हो जाता है और उनके इसी व्यवहार के लोग कायल हैं। इसके अलावा वे समाज सेवा में भी बेहद रुचि लेती हैं। लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने सांगानेर क्षेत्र में गरीबों के बीच भरपूर भोजन सामग्री का वितरण किया। वे गरीब और बेसहारों की दिल खोलकर सहायता भी करती हैं।
डॉ. मीनाक्षी प्रतापनगर क्षेत्र में महिला विकास समिति संचालित करती हैं। कुछ लोगों की सर्जरी निजी अस्पताल में संभव नहीं हो पाती तो वे विशिष्ट लोगों से बात करके, उन लोगों की सर्जरी राजकीय सवाई मानसिंह अस्पताल में भी करवाती हैं। ऐसा करने में उन्हें आत्मिक शांति का अनुभव होता है। यही वजह है कि मीनाक्षी जोशी के बारे में लोग यही कहते हैं कि वे मन से और मन का इलाज करती हैं