कृषिराजनीति

किसानों को मनाने के प्रयास लेकिन आंदोलन जारी, 8 दिसम्बर को भारत बंद का ऐलान

नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन नये कृषि कानूनों को समाप्त करने की मांग पर किसान अड़ गए हैं और आंदोलन के लिए अड़े हैं। वे पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे और उन्होंने दिल्ली का और घेराव करने का मन बनाया है। यद्यपि सूत्रों के हवाले से खबर मिल रही है कि सरकार कानूनों में जरूरी प्रावधानों को जोड़ने जा रही है और इससे किसानों को संतुष्ट करने का प्रयास किया जाएगा।

हालांकि किसानों का कहना है कि सरकार पहले संसद का विशेष सत्र बुलाए और तीनों कानूनों को रद्द करे। भारतीय किसान यूनियन का तो कहना है कि 5 दिसंबर को मोदी सरकार और कॉरपोरेट घरानों के पुतले फूंके जाएंगे। इसके बाद 7 दिसंबर को सभी वीर अपने-अपने पदक वापस करेंगे और 8 दिसम्बर को भारत बंद का आह्वान किया गया है।

सरकार जता रही एमएसपी बरकरार रखने की मंशा   

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार गुरुवार को बैठक में कृषि कानूनों पर किसानों की आपत्तियों पर सरकार ने विचार किया और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बरकरार रखने के लिए की मंशा जताने के लिए कार्यकारी आदेश जारी करने का प्रस्ताव का मन बनाया है। सरकार का मानना है कि उसके इस कदम से किसान मान जाएंगे क्योंकि ऐसा करने से मंडियों व खुले बाजार में कृषि उपज एमएसपी पर बिकने का रास्ता साफ हो जाएगा।

इसके अलावा ठेका खेती में किसान व कंपनी के बीच विवाद होने पर एसडीएम-डीएम कोर्ट के अलावा किसानों को अदालत की शरण में जाने का विकल्प भी उपलब्ध कराया जा सकता है। इस कानून के नियमों में बदलाव किया जा सकता है। आवश्यक खाद्य नियम में खरीद की सीमा हटाने को लेकर पैन कार्ड के अलावा कंपनी को पंजीकरण करना जरूरी होगा। इसके अलावा खुले बाजार में टैक्स लागू करने अथवा राज्य सरकार से सरकारी मंडियों मे टैक्स समाप्त करने की अपील कर सकती है। इस दिशा में भी सरकार पहल कर सकती है।

सरकार के प्रयास कितने कारगर, 5 तारीख की बैठक में होगा स्पष्ट

सूत्रों ने बताया कि संशोधित बिजली विधेयक, पराली पर जुर्माना, किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने जैसी मांगों को मान लेने की संभावना है। तीनों कृषि कानून में संशोधनों के जरिए किसानों की मांग पूरी कर किसानों से आंदोलन समाप्त करने का प्रयास किया जाएगा। इस सब में सरकार के स्तर पर प्रयास चल रहे हैं और उधर किसान संगठन अब भी तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। ऐसे मे सरकारी प्रयास कितने कारगर होंगे, यह 5 दिसंबर को होने वाली चर्चा में स्पष्ट हो सकता है।

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