जयपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद जयपुर के प्राचीन परकोटे के संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन मरम्मत करने के बजाए परकोटे पर अतिक्रमण और उसे क्षति पहुंचाने का काम बदस्तूर जारी है। न्यायालय ने परकोटे को संरक्षित रखने का जिम्मा नगर निगम को सौंपा था और टूटे हुए परकोटे की मरम्मत के लिए पुरातत्व कला एवं संस्कृति विभाग से 30 करोड़ रुपए भी दिलाए थे, लेकिन पैसे मिलने के बावजूद पिछले पांच सालों में नगर निगम परकोटे की मरम्मत नहीं करा पाया है।
हाल ही में स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से दरबार स्कूल में परकोटे और उसके बुर्ज को नुकसान पहुंचाया गया। क्लियर न्यूज ने परकोटे को तोड़े जाने के बाद 24 दिसंबर को ‘एक विरासत है ऐतिहासिक गुलाबीनगर का परकोटा, दरबार स्कूल की जगह नई इमारत बनाने के लिए इसी परकोटे को ध्वस्त करने की कोशिश’ खबर प्रकाशित कर बताया था कि पुरातत्व विभाग ने परकोटे की मरम्मत के लिए करोड़ों रुपए नगर निगम को दे रखे हैं।
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खबर प्रकाशित होने के बाद विभाग के अधिकारियों को याद आया और उन्होंने अपने खातों को संभाला तो सामने आया कि परकोटे की मरम्मत के लिए उन्होंने नगर निगम को 30.67 करोड़ रुपए दिए थे, अब विभाग नगर निगम से इस पैसे के बाबत जानकारी मांग रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस पैसे को लेकर ऑडिटरों ने विभाग पर आक्षेप भी लगा रखा था, लेकिन पुरातत्व अधिकारी इस आक्षेप को भी भूल गए थे।
अब पुरातत्व निदेशक पीसी शर्मा ने 31 दिसंबर को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नगर निगम ग्रेटर व हैरिटेज को पत्र लिखकर कहा है कि उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद पुरातत्व कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से जुलाई 2015 में दो किश्तों में 12.67 करोड़ रुपए और 18 करोड़ रुपए कुल 30.67 करोड़ रुपए नगर निगम के पीडी खाते में हस्तांतरित किए गए थे।
महालेखाकार राजस्थान द्वारा पुरातत्व निदेशालय के लेखों का निरीक्षण करने के बाद 30.67 करोड़ रुपए के उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं होने का विभाग पर आक्षेप लगाया है। इसलिए नगर निगम उक्त राशि में से खर्च की गई राशि का विवरण, उपयोगिता प्रमाणपत्र व प्रगति रिपोर्ट तुरंत विभाग को भिजवाए, ताकि महालेखाकार कार्यालय को इस राशि की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी जा सके।
मरम्मत तो दूर डीपीआर भी तैयार नहीं
जहां पुरातत्व विभाग पैसे देकर पांच सालों तक सोया रहा, वहीं नगर निगम भी परकोटे की सुरक्षा के प्रति उदासीन बना रहा। पांच सालों में वह कोई काम नहीं करा पाया और परकोटे पर फिर से अतिक्रमण होने लगे। नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि पुरातत्व विभाग से मिले पैसे अभी तक खाते में ही पड़े हुए हैं और उनका कोई उपयोग नहीं हो पाया है।
उधर निगम की हैरिटैज सेल को देख रहे वरिष्ठ नगर नियोजक राजेश कुमार तुलारा का कहना है कि परकोटे की मरम्मत के लिए पूर्व में डीपीआर बनी हुई थी, लेकिन उसमें कई कमियां थी, इसलिए फिर से डीपीआर तैयार कराई जा रही है। कंसल्टेंट मार्च तक डीपीआर नगर निगम को सौंप देगा, उसके बाद आगे की कार्रवाई शुरू होगी ।