नयी दिल्ली। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) यूयू ललित 25 फरवरी को वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE) बिल की जांच के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के सामने पेश होंगे। उनके साथ तीन अन्य विशेषज्ञ भी पैनल के समक्ष अपनी गवाही देंगे।
संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक 2024 की समीक्षा के लिए गठित इस समिति का उद्देश्य देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की व्यवहार्यता और प्रभावों का आकलन करना है।
संयुक्त समिति के समक्ष कौन पेश होगा?
इस पैनल के सामने पेश होने वाले अन्य विशेषज्ञों में शामिल हैं:
1. नितेन चंद्र – पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में गठित उच्चस्तरीय समिति के सदस्य रहे।
2. ई. एम. सुदर्शन नचियप्पन – पूर्व सांसद और संसदीय कानून एवं न्याय समिति के पूर्व अध्यक्ष।
पैनल द्वारा व्यापक स्तर पर विचार-विमर्श
समिति ने 24 प्रमुख वर्गों के हितधारकों को चर्चा के लिए चिह्नित किया है, जिनसे विचार-विमर्श किया जाएगा। इनमें शामिल हैं:
• राजनीतिक दल (राष्ट्रीय और क्षेत्रीय)
• कानूनी विशेषज्ञ और न्यायपालिका से जुड़े लोग
• शैक्षणिक और प्रबंधन संस्थानों के विशेषज्ञ
• इलेक्ट्रॉनिक और इंजीनियरिंग विशेषज्ञ, जो ईवीएम तकनीक से जुड़े हैं
• मीडिया और फिल्म उद्योग के प्रतिनिधि
• श्रम संघ (Labour Unions) और औद्योगिक संगठन
• प्रख्यात स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षक संघ
• चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, प्रोफेशनल निकाय और थिंक टैंक
समिति की कार्ययोजना
• विभिन्न राज्यों का दौरा करके स्थानीय हितधारकों से चर्चा।
• जिन लोगों के लिए दिल्ली आना संभव नहीं होगा, वे लिखित सुझाव भेज सकते हैं।
पृष्ठभूमि: UU ललित का कानूनी करियर
• भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में 2022 में कार्यभार संभाला।
• 2014 में सीधे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले सात न्यायाधीशों में से एक थे।
• 2017 में ट्रिपल तलाक पर ऐतिहासिक फैसला देने वाली पांच-सदस्यीय पीठ का हिस्सा रहे, जिसने इसे असंवैधानिक ठहराया था।
वन नेशन वन इलेक्शन: सरकार का रुख
यह संयुक्त संसदीय समिति (JPC) 2023 की शीतकालीन सत्र में घोषित की गई थी, जब सरकार ने इस विधेयक को संसदीय जांच के लिए भेजने की इच्छा जताई थी। इस प्रस्ताव का उद्देश्य देश में बार-बार होने वाले चुनावों को एक साथ कराने और प्रशासनिक व्यय को कम करने का अध्ययन करना है।
क्या यह प्रणाली भारत में लागू हो सकती है? यह सवाल अभी भी व्यापक चर्चा का विषय बना हुआ है।