जयपुर। गुरुवार, 27 मार्च को एक असामान्य घटना देखने को मिली जब हनुमानगढ़ के पुलिस अधीक्षक (SP) अर्शद अली को कोर्ट परिसर के बाहर दो घंटे तक बैठने की सज़ा दी गई। यह कार्रवाई एक ट्रायल कोर्ट की पीठासीन अधिकारी के साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार करने के चलते की गई।
क्या है पूरा मामला?
घटना तब हुई जब एसपी अर्शद अली अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) कल्पना पारिख की अदालत में गिरफ्तारी वारंट के तहत पेश हुए।
2007 से जुड़े एक मामले में अली मूल शिकायतकर्ता थे। यह मामला ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) और प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट के उल्लंघन से जुड़ा है, जिसमें सात आरोपी हैं।
2019 में कोर्ट ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था, लेकिन इसे निष्पादित नहीं किया गया।
बार-बार पेश न होने के चलते अदालत ने बाद में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया।
कोर्ट में हुआ विवाद
गुरुवार सुबह जब अर्शद अली कोर्ट में पेश हुए, तो उन्होंने गिरफ्तारी वारंट पर आपत्ति जताई और कहा कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही दे सकते थे।
इस पर न्यायाधीश कल्पना पारीक ने कहा कि यदि उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही देनी थी, तो इसके लिए उन्हें पहले से उचित आवेदन देना चाहिए था।
बातचीत के दौरान एसपी अली ने कथित रूप से न्यायाधीश से अभद्र व्यवहार किया, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। कथित तौर पर, गुरुवार को अर्शद अली कोर्ट में कुर्सी पर बैठ गए और बैठे-बैठे ही गिरफ्तारी वारंट पर आपत्ति करने लगे। पीठासीन अधिकारी के टोकने पर अभद्रता से बात की थी।
कोर्ट परिसर के बाहर दो घंटे की सज़ा
इस कथित दुर्व्यवहार के बाद, न्यायाधीश कल्पना पारीक ने एसपी अली को दो घंटे तक कोर्ट परिसर के बाहर बैठने का निर्देश दिया। हालांकि, इसका कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया।
इस बारे में अर्शद अली से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, “मुझे अदालत की पीठासीन अधिकारी ने मौखिक रूप से दो घंटे तक बाहर बैठने के लिए कहा था।”
मामले का समाधान कैसे हुआ?
दोपहर के भोजन के बाद, एसपी अर्शद अली फिर से कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने अपने स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का हवाला देते हुए खेद व्यक्त किया। इसके बाद अदालत ने उनकी गवाही दर्ज की और मामला आगे बढ़ाया।
क्या कहता है कानून?
किसी सरकारी अधिकारी को अदालत में पेशी के लिए सम्मन भेजा जा सकता है, और बार-बार अनुपस्थित रहने पर गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सकता है।
न्यायालय की अवमानना या अभद्र व्यवहार करने पर कोर्ट अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सकता है। यह घटना न्यायिक प्रक्रियाओं और कानून के अनुपालन की गंभीरता को दर्शाती है।