मनोरंजन

हरी हरी चूड़ियाँ

कहानी

आज के परिपेक्ष में जब हिंदू वह मुसलमानों के संबंध में पूरे समय नेता अपनी अपनी रोटियाँ सेकते रहते हैं, एक समय था जब दोनों धर्मों के लोगों मैं आपसे भाई चार व प्रेम था। यह कहानी उत्तराखंड के एक छोटे से गांव खारिक की है जहाँ कालिंदी अपने पति सास वह दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ निवास करती थी ।

अंग्रेजों का शासन था और इस समय घर पर खेती और बिनाली (गाय और भैंस) भी नहीं थी। कालिंदी की सास पार्वती ने अपने इकलौते पुत्र केदार से त्रिवेणी में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट करी। 22-23 वर्ष की कालिंदी ने सास के चरण पकड़ लिए और साथ चलने की जिद पकड़ ली। सास व पति दोनों का दिल पसीज गया और पूरा परिवार इलाहाबाद के लिए प्रस्थान कर गया ।

रास्ते में अनेक कठिनाइयों का सामना कर यह पाँच जनों का परिवार इलाहाबाद एक रिश्तेदार के घर जा बैठा। तब घर छोटे थे, गरीबी थी पर लोगों का दिल बहुत बड़ा था । कुछ दिन इलाहाबाद रहने के बाद मेजबान परिवार ने केदार के सामने अपनी माँ व पत्नी को बनारस भी घुमा कर लाने का प्रस्ताव दे डाला । दोनों बच्चों को मेजबान के हवाले कर तीनों जने रेल मार्ग द्वारा बनारस पहुंच गए।

कालिंदी एक गांव की बाला जहाँ जीवन बड़ा सरल और शहरी चमक से दूर होता था । पहली बार बनारस में गंगा जी के तट पर एक चूड़ी वाले की दुकान में हरि, पीली, नीली व रंगभरी चूड़ियाँ देखकर यह 22- 23 वर्ष की नवयुवती का मन चूड़ियों के लिए ललचा उठा। प्रायः चूड़ी वाले मुसलमान होते थे पर गंगा जी के प्रति उनका श्रद्धा भाव किसी हिंदू से कम नहीं था । रहीम चूड़ी वाला भी जोर जोर से चूड़ियां ले लो रंग बिरंगी चूड़ियां ले लो की आवाजें लगा रहा था।

कालिंदी की अचरज भरी ललचाई नजर देखकर रहीम को भरोसा था की यह नवयुवती तो पति से रंग बिरंगी चूड़ियाँ की जिद करेगी ही। अब वह और जोर जोर से आवाजें लगा रहा था । अरे मेरी बहना आज तेरे भाई की बोनी नहीं हुई है। तेरी कलाइयों मैं यह हरी हरी चूड़ियाँ क्या सुंदर लगेगी ।
अब कालिंदी ने फिर से सास के सामने ज़िद पकड़ ली ।

सास भी उलाहना देने लगी की मेरे बेटे के पास तेरे सिंगार-पिटार के लिए फालतू पैसे नहीं है। या तो केदार तुझे रेलगाड़ी में मजे करा सकता है या फिर चूड़ियाँ पहना सकता है। पर कालिंदी को भी चूड़ियों का खुमार लग गया था। वह भी जिद में सास से कह बैठी की पूरे गाँव में सब बहुओं में मैं ही सबसे अधिक काम करती हूं।

आपकी देवरानियाँ वह जेठानियाँ भी यह कहते नहीं थकती की आप कितनी भाग्यशाली हो कि आपको कालिंदी जैसी बहू मिली है। आज पहली बार चूड़ियों की मांग कर रही हूँ तो आप मना कर रही हैं । कभी सुहाग की चीजों के लिए भी मना किया जाता है क्या ?

रहीम इस परिवार की बातें सुन रहा था। पहाड़ी भाषा समझ तो नहीं आ रही थी पर उसने इस परिवार में हो रही बहस का अंदाजा लगा लिया था। केदार व उसकी माँ का दिल पसीज गया क्योंकि रहीम बार-बार कालिंदी के लंबे सौभाग्य की दुहाई दे रहा था। बार- बार एक ही वाक्य दोहरा रहा था की माताजी इस बहन को मेरी हरी हरी चूड़ियाँ पहना कर तो देखो। तेरा बेटा 100 बरस तक जिएगा।

केदार ने चूड़ियों का दाम पूछा तो तपाक से उत्तर मिला 4 आने की दो दर्जन। सास का इशारा पा कर कालिंदी चूड़ी वाले के सामने बिछी हुई बोरी के टुकड़े पर बैठ गई। बेचारी के काम करने वाले बड़े पुष्ट हाथ थे। कलाई में 3-4 साल पहले पहनी हुई बदरंग घिसी हुई लाल चूड़ियाँ थी। घर का चूल्हा चौका व जंगल से घास व लकड़ी लाने वाले हाथों में चूड़ियाँ अपना रंग जल्दी खो देती हैं।


रहीम ने कालिंदी का मजबूत हाथ अपने हाथों में लिया और उसकी पुरानी बदरंग चूड़ियाँ मौलाने लगा। दोनों हाथों की चूड़ियाँ मौला दी और 2-2 चूड़ियाँ दोनों हाथों में ही रहने दी जो बाद में मौला दी जाती है। यह ही चूड़ी पहनने का कायदा होता है। रहीम ने सुंदर मीना वाली हरी चूड़ियाँ निकाली और पहनाने का काम शुरू किया।

पर कालिंदी का तो काम करने वाले वाला मजबूत हाथ था। रहीम चार डालता और उसमें तीन चूड़ियाँ तो टूट जाती। केदार खड़ा खड़ा चूड़ियाँ गिन रहा था। रहीम दो दर्जन चूड़ियाँ एक हाथ में अजमा चुका था और कालिंदी के हाथ में सिर्फ पांच चूड़ियाँ ही पहुंच पाई थी केदार ने जेब से चवन्नी निकाली और रहीम के हाथ में दबा दी और अपनी माँ व पत्नी को चलने का इशारा कर दिया।

दोनों सास बहू एक ही आवाज में बोले केदार हाथ में दर्जन दर्जन चूड़ियाँ चढ़ाने पर ही पैसे देने होते हैं, रहीम ने भी हामी भरी। अब केदार अपने असली रूप में आ चुका था, पूरा जोर दे कर रहीम से बोला कि मेरे भाई हम दोनों ही गरीबी से जूझ रहे हैं, देशभर में हाहाकार मचा हुआ है। हमारे अपने लोग दो तरफा लड़ाई लड़ रहे हैं कुछ सैनिक बन द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सेना बनकर दूसरे देशों में मौत को गले लगा रहे हैं, और कुछ स्वतंत्रता सेनानी परिवारों को छोड़ जेलों में विषम परिस्थिति में जीवन यापन कर रहे हैं।

हम दोनों ही गरीबी से जूझ रहे हैं तू अगर इन गाँव की औरतों की कलाई में दो दर्जन चूड़ी पहनाता है तो तेरी 6-7 दर्जन चूड़ियों की बर्बादी होगी ऐसी स्थिति में तू अपना व अपने परिवार का पेट कैसे पालेगा और यदि में टूटी हुई चूड़ियों की कीमत देता हूं तो मैं परिवार समेत भूखा मर लूंगा। केदार गुस्से भरी निगाहों से अपनी माँ पार्वती व पत्नी कालिंदी को चलने का इशारा कर रहा था।

दोनों सास बहू उठ खड़ी हुई और दोनों की आँखों में आँसू बह रहे थे। रहीम ने रोती हुए पार्वती का हाथ खींच लिया और गंगा मैया की सौगंध खाता हुआ बोला अरे माताजी अपने इस अल्हड़ लड़के को समझा की कलाई में गई हुई चूड़ियाँ की ही कीमत चुकानी होती है, टूटी हुई चूड़ियाँ नष्ट मानी जाती हैं। मैं इस गंगा के तट पर बैठकर अपने अल्लाह की इबादत करके अपनी रोजी कमाता हूँ। मैं ऊपर वाले को इस बात का क्या जवाब दूंगा कि मेरी बहन मेरी दुकान से सूनी कलाई लेकर गई।

यह मेरा पैसा जरूर है पर इसके साथ मेरी भावना भी जुड़ी है हर बहन को चूड़ी पहना कर मैं उसकी कलाई की नजर उतारता हूँ कि यह कलाइयाँ हमेशा चूड़ियों से भरी रहे। कालिंदी भी अपनी अनूठी कलाई देखकर हैरान थी जिसमें दो-दो लाल बदरंग चूड़ियाँ पीछे थी और आगे तीन चार हरी नई चमकदार चूड़ियाँ थी। आंखों में आँसू लिए वह अपने पति व सास के पीछे पीछे बेमन से धीरे-धीरे चल पड़ी।

कुछ क्षणों बाद ही क्या देखती है कि रहीम उसके बगल में चलते हुए उसकी हथेली पर चार आने का सिक्का दबाकर बोला, मेरी छोटी बहना गाँव जाकर अपनी कलाइयाँ चूड़ियों से भरवा लेना। तुझे इस भाई की सौगंध और कालिंदी की आंखों के सामने वह अपनी जमीन में बिछी हुई दुकान की तरफ चला गया और अपनी चिर परिचित आवाज में आवाज लगाने लगा चूड़ियाँ ले लो रंग बिरंगी चूड़ियाँ ले लो।

यह कहानी मेरी माता जी की सच्ची घटना है व आज के समय मैं भी उतनी ही सटीक बैठती है

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