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आईपीएल से प्रतिष्ठित घरेलू ट्रॉफियों की चमक तो मंदी जरूर हुई किंतु देश को मिल रहे बेशकीमती पेशेवर खिलाड़ी, आज खेला जा रहा है आईपीएल 2021 का पहला मैच मुंबई इंडियंस और आरसीबी के बीच

कोरोना के चलते दुनिया भर की खेल प्रतियोगिताएं प्रभावित हुई हैं। टोकियो ओलम्पिक खेल तो एक साल के लिये टल गये हैं। भारत में रणजी ट्रॉफी रद्द हो गयी है। लेकिन, आज, 9 अप्रेल 2021 को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की गत बार की चैंपियन मुंबई इंडियंस और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरु का उद्घाटन मैच होने जा रहा है। विशेष बात यह है कि आईपीएल छह महीनों में दूसरी बार आयोजित होने जा रहा है। यह एक अद्भुत विरोधाभास है और आईपीएल की आर्थिक ताकत एवं जबर्दस्त लोकप्रियता का बड़ा सबूत है।

पारंपरिक तरीका और विभिन्न स्तर पर अभ्यास लगभग समाप्त

क्रिकेट में टेस्ट क्रिकेट, उससे जुड़े युवा और प्रथम श्रेणी की परंपरा सबसे पुरानी है। भारत में भी यह परंपरा काफी प्रचलित और मान्य हुई थी। उन्नीस साल से कम के युवाओं के लिये राष्ट्रीय स्तर पर 4 दिन की स्पर्धा कूचबिहार ट्रॉफी, महाविद्यालयीन स्तर पर विजी ट्रॉफी और प्रथम श्रेणी की सबसे बड़ी परंपरा रणजी ट्रॉफी। इतना ही नहीं तो आंचलिक स्तर पर दिलीप और चयन के लिये ईरानी ट्रॉफी।

इसी परंपरा से विजय मर्चेंट से लेकर सचिन तेंदुलकर तक कपिल देव से लेकर अजित अगरकर तक खिलाड़ी विकसित हुए। सुनील गावस्कर तो टेस्ट सीरीज के घरेलू सत्र में भी रणजी ट्रॉफी खेलते। अजहरुद्दीन और संजय मांजरेकर ने कॉलेज क्रिकेट में कई शतक लगाये जो आज भी रिकॉर्ड बुक में शामिल हैं।

वर्ष 2008 के बाद टेस्ट क्रिकेट में आये दिग्गज खिलाड़ी रोहित शर्मा, विराट कोहली, अश्विन , भुवनेश्वर कुमार आदि ‌जो कि रणजी ट्रॉफी की बदौलत भारतीय टीम मे आये जरूर पर पिछले कई सालों से वे रणजी ट्रॉफी खेल ही नहीं रहे हैं। जाहिर सी बात है जब देश की टीम के चुनाव की बात आयी तब बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया (बीसीसीआई) ने रणजी ट्रॉफी को नहीं आधार नहीं माना। ऐसे में अब रणजी ट्रॉफी ने ही अपना सन्मान खोया है तो अन्य सारी प्रथम श्रेणी स्पर्धाएं तो अंधेरे में खो ही गयी हैं। ऐसे में डर लगता है कि राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण की परंपरा वाले पुजारा, हनुमा विहारी जैसे खिलाड़ी कही खो न जाएं।

भारत ने पाया जबरदस्त बेंचस्ट्रेंथ

एक जमाना था कि रणजी ट्रॉफी में हजार रन करने के बाद अरुण लाल, अशोक मल्होत्रा जैसे बल्लेबाज अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मे फेल हो जाते थे। तकनीक की कोई कमी नहीं थी पर‌ मानसिकता एवं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की नवीनता बडा बोझ बनती थी। आज जसप्रीत बुमरा, वाशिंग्टन सुंदर, रिषभ पंत, हार्दिक पांड्या आदि खिलाड़ी बिना किसी विशेष प्रथम श्रेणी मैचों के अभ्यास के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की गुत्थी बड़ी आसानी से पार कर जाते हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर लगभग पूरी टीम चोटिल हो गई फिर भी बेंच पर बैठे खिलाड़ी सीरीज जितवाकर आये। यह कोई इक्का-दुक्का उदाहरण नहीं है पर हर एक सिरीज मे कोई सुंदर तो कोई सूर्य कुमार चमक रहा है। कहां से आई यह मानसिकता? कहां खो गया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का दबाव?

इन सारे प्रश्नों का उत्तर आईपीएल है। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर के विदेशी खिलाड़ियों के साथ केवल ग्यारह खिलाड़ी ही नहीं खेलते बल्कि आईपीएल की आठ टीमों में से हर टीम में सात-सात भारतीय खिलाड़ियों खिलाने की शर्त के कारण 56 खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट के अनुभव का लाभ उठा रहे होते हैं। इनके अलावा 50 भारतीय खिलाड़ी बैंच पर तैयार बैठे रहते हैं। इस तरह आईपीएल के जरिये एक साथ 100 से ज्यादा भारतीय खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के साथ खेल रहे होते हैं।

यही बात हजारों स्थानीय क्रिकेटरों को क्रिकेट मे व्यावसायिक खिलाड़ी के तौर पर बने रहने का हौसला प्रदान करती है। अब क्रिकेट केवल एक खेल नहीं बल्कि एक करियर है और इसमें भारत आत्मनिर्भर है। और यही पाया है भारतीय क्रिकेट ने आईपीएल से और यही कारण है कि कोरोना के चलते भी आईपीएल का जादू अभी भी काम कर रहा है। आशा करते है कि लक्ष्मी एवं सरस्वती का यह मिलन आगे भी कायम रहे।

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