जयपुर। पुरातत्व विभाग के कमीशनखोर अधिकारी पूरे विश्व में राजस्थान और देश की पहचान के रूप में विख्यात प्राचीन स्मारकों को भी बर्बाद करने पर तुले हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1976 में जैसलमेर की यात्रा की और पटवा हवेलियों को देखा था। उनकी इच्छा के अनुसार सरकार ने इन हवेलियों का अधिग्रहण कर इन्हें संरक्षित घोषित किया था। अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद पुरातत्व विभाग की वक्रदृष्टी इन्हीं हवेलियों की ओर है और अधिकारी इन हवेलियों की सूरत बिगाड़ने में जुट गए हैं।
विभाग के अधीन आने वाले साढ़े तीन प्राचीन हवेलियों में संरक्षण कार्य के लिए विभाग ने 99.85 लाख रुपए की निविदा निकाली है। इसके तहत इन हवेलियों में प्रमुख तौर पर केमिकल ट्रीटमेंट का कार्य कराया जाएगा। वहीं कुछ जगहों पर लकड़ी के खिड़की-दरवाजे, छतों की मरम्मत, कांच का काम और हवेलियों में बनी पुरानी चित्रकारी के संरक्षण का कार्य कराया जाएगा।
विभाग के सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों ने पटवा हवेलियों में संरक्षण कार्य की निविदा निकाली है, जबकि इस निविदा में कई झोल नजर आ रहे हैं, जो साफ बता रहे हैं कि यह काम सिर्फ कमीशनखोरी के लिए निकाले गए हैं। विभाग के कई अधिकारी कांग्रेस सरकार में राजनीतिक पहुंच होने का दावा करते हैं, ऐसे में देखने वाली बात यह है कि राजस्थान के जो पुरा स्मारक इंदिरा गांधी को इतने पसंद आए, उन्हीं स्मारकों पर हो रहे घटिया कामों पर कांग्रेस की सरकार कब नजर डालेगी और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी?
केमिकल का काम माना जाता है मोटी कमाई का काम
विभाग द्वारा निकाली गई इस निविदा पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। पहला तो यह कि जब विभाग में पुरा रसायनवेत्ता ही नहीं है तो फिर अधिकारियों ने केमिकल ट्रीटमेंट का काम कैसे निकाल दिया? बिना रसायनविज्ञ के यदि केमिकल का काम होता है और कमीशन के फेर में गलत या घटिया केमिकल का इस्तेमाल होता है और हवेली को नुकसान पहुंचता है, तो कौन जिम्मेदार होगा? वैसे भी विभाग में केमिकल के काम को सबसे कमाई का काम माना जाता है और जमकर चांदी कूटी जाती है। इस निविदा में 50 फीसदी से ज्यादा काम सिर्फ केमिकल का ही रखा गया है।
हर पत्थर में अलग केमिकल
विभाग के सूत्रों का कहना है कि राजस्थान के स्मारकों के निर्माण विविध प्रकार के पत्थरों का उपयोग हुआ है। कहीं मार्बल तो कहीं सैंड स्टोन। सैंड स्टोन भी कई प्रकार का है। अधिकांश प्राचीन स्मारकों में तो उस क्षेत्र में मिलने वाले लोकल पत्थर का उपयोग कर उनपर कलाकृतियां बनाई गई है, जैसे जयपुर में हरे रंग के पत्थर का प्रयोग हुआ है। वहीं पटवा हवेलियों में जैसलमेर में मिलने वाले पीले रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, जो सैंड स्टोन की श्रेणी में आता है। इन सभी पत्थरों पर एक ही केमिकल का उपयोग नहीं हो सकता। ऐसे में एक रसायनविज्ञ ही बता सकता है कि किस पत्थर पर कौनसा केमिकल प्रयोग होगा।
अनुभव की शर्त बनेगी समस्या
कमीशन के फेर में विभाग के उच्चाधिकारियों ने निविदा शर्तों में अनुभव की शर्त हटा रखी है। अधिकारियों की मिलीभगत ऐसी कि शर्त के अभाव में अनुभवहीन ठेकेदारों को ही काम दिए जा रहे हैं, क्योंकि इनसे मोटा कमीशन मिलता है और यह कमीशन नीचे से ऊपर तक बंटता है। ऐसे में सोचा जा सकता है कि यदि इन कलात्मक हवेलियों के संरक्षण का कार्य किसी अनुभवहीन ठेकेदार को मिल गया तो क्या हाल होगा? उसपर विभाग के इंजीनियर भी अनुभवहीन हैं।
यहां लगे अधिशाषी अभियंता डेढ़ वर्ष पूर्व सिंचाई विभाग से आए हैं, जबकि दो एईएन में से एक जेडीए से तो दूसरे मार्केटिंग बोर्ड से आए हैं। ऐसे में तीनों ही अधिकारियों को केमिकल व अन्य कलात्मक संरचनाओं के संरक्षण का पूरा अनुभव नहीं है।
यह हैं विवादित काम
केमिकल कार्य का उल्लेख तो हम कर चुके हैं। इसके अलावा एक हवेली में छत की मरम्मत का कार्य है। इन हवेलियों की छतें लकड़ी के सोटों की बनी है, जिसपर चूने का दड़ है। कुछ सोट गलने के कारण उन्हें बदला जाना है, ऐसे में यह कार्य अनुभवी ठेकेदार ही कर सकता है। हवेलियों में पेंटिंग के संरक्षण का कार्य है, जिसे भी अनुभवी कलाकार ही कर सकता है, सिविल ठेकेदार यह कार्य नहीं करा सकते हैं। कहा जा रहा है कि अनुभवी लोगों को इस निविदा से दूर रखने के लिए इसमें केमिकल के साथ लकड़ी, कांच, लोहे, पेंटिंग और सिविल वर्क को क्लब करके बड़े अमाउंट की निविदा निकाली गई है।
देखने आते हैं विश्वभर के पर्यटक
स्वर्णिम आभा और उत्कृष्ट भवन निर्माण कला के चलते जैसलमेर की पटवा हवेलियों को विश्वभर के पर्यटक देखने के लिए आते हैं। यहां बनी सभी पटवा हवेलियां संरक्षित स्मारक घोषित हैं और पूरे विश्व में राजस्थान की कलात्मक निर्माण कला की पहचान बनी हुई है। इन हवेलियों का अग्रभाग सबसे ज्यादा कलात्मक है।