जयपुर

नाहरगढ़ अभ्यारण्य (Nahargarh Sanctuary) मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचे पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) और आरटीडीसी (RTDC) को मिली राहत की जगह फटकार (reprimanded)

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को जारी किया नोटिस, मांगा जवाब

जयपुर। नाहरगढ़ अभ्यारण्य (Nahargarh Sanctuary) में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद करने के एनजीटी के आदेशों के खिलाफ स्टे के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचे पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) और राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी/RTDC) को राहत मिलने के बजाए फटकार मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यारण्य में वाणिज्यिक गतिविधियों को लेकर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और पुरातत्व विभाग को किसी प्रकार की राहत नहीं दी। मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद फिर से होगी, तब तक एनजीटी का आदेश यथावत रहेगा।

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ में हुई। परिवादी राजेंद्र तिवाड़ी ने बताया कि खंडपीठ ने सवाल उठाया कि जब नाहरगढ़ को 1961 में अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया था, तो फिर राज्य सरकार बिना केंद्र सरकार की मंजूरी के 1968 में नोटिफिकेशन कैसे जारी कर सकती है। खंडपीठ ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि अभ्यारण्य में बीयर बार, रेस्टोरेंट और लाइट एंड साउंड शो शुरू करने की अनुमति किसने दी। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में पहले वन विभाग का पक्ष सुना जाएगा और फिर अन्य पक्षों की सुनवाई होगी।

एनजीटी के आदेशों की उड़ी धज्जियां
एनजीटी के आदेशों के तहत 1 दिसंबर से वन विभाग को पूरे नाहरगढ़ अभ्यारण्य का प्रबंधन अपने हाथों में लेना था। जिला कलेक्टर को आदेशों की पालना कराते हुए अभ्यारण्य में संचालित समस्त वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद कराना था, लेकिन बुधवार को नाहरगढ़ फोर्ट पर वाणिज्यिक गतिविधियां जारी रही। पुरातत्व विभाग की ओर से पर्यटकों से पार्किंग शुल्क वसूला गया, फोर्ट में घूमने के लिए भी पुरातत्व विभाग की ओर से टिकट काटे जाते रहे। यहां संचालित वैक्स म्यूजियम भी पर्यटकों के लिए खुला रहा।

अवमानना याचिका दायर करेंगे
इस मामले में परिवादी राजेंद्र तिवाड़ी का कहना है कि एनजीटी के आदेशों की पालना कराना जिला कलेक्टर की जिम्मेदारी थी, लेकिन जिला कलेक्टर की ओर से आदेशों की आधी-अधूरी पालना कराई गई है। अभ्यारण्य में अभी भी वाणिज्यिक गतिविधियां जारी हैं, जिनमें नाहरगढ़ फोर्ट में पुरातत्व विभाग की पार्किंग और वैक्स म्यूजियम पूरी तरह से वाणिज्यिक गतिविधियां है, जो बिना वन विभाग की अनुमति के चल रहे हैं। ऐसे में जिला कलेक्टर को नोटिस देकर अवमानना याचिका दायर की जाएगी।

विभाग ने नहीं की सही पैरवी
नाहरगढ़ मामले को लेकर पुरातत्व विभाग को भी नाहरगढ़ फोर्ट और आमेर फोर्ट अधीक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि इन्होंने विषय की गंभीरता को नहीं समझा। साथ ही समय रहते कानूनी कार्रवाई में भी लापरवाही बरती। सूत्रों ने बताया कि एनजीटी में बहस के दौरान न तो ओआईसी नाहरगढ़ अधीक्षक और न ही पुरातत्व विभाग का वकील उपस्थित था। नाहरगढ़ और आमेर चढ़ाई वाले क्षेत्रों में स्थित है। अत: विभाग को पर्यटकों के लिए साधारण चाय-पानी की अनुमति तो एनजीटी से लेनी चाहिए थी। रेस्टोरेंट बंद होने के चलते अब पर्यटकों को यहां चाय-कॉफी व पानी की समस्या पेश आएगी। इसका राजस्थान और जयपुर के पर्यटन पर बड़ा भारी असर पड़ेगा।

दोनों अधिकारी नियुक्ति के बाद से ही जयपुर में जमे
आमेर महल अधीक्षक पंकज धरेंद्र का नियुक्ति के बाद से ही ढाई दशक से जयपुर से बाहर तबादला नहीं हुआ। वह नियम विरुद्ध पिछले एक दशक से आमेर महल में अधीक्षक पद पर जमे हैं। वहीं राकेश छोलक भी अपनी दो दशक की नौकरी में मात्र आठ-नौ महीने ही बाहर रहे हैं और लंबे समय से नाहरगढ़ फोर्ट को संभाल रहे हैं। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी की पुरातत्व विभाग को इतना बड़ा नुकसान पहुंचाने के बाद इन लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी या नहीं? वैसे बिना रीढ़ की हड्डी वाले पुरातत्व विभाग के उच्चाधिकारी आज तक इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं।

उल्लेखनीय है कि डेढ़ वर्ष पूर्व क्लियर न्यूज डॉट कॉम ने सबसे पहले इस मामले को उठाया था और डेढ़ वर्ष तक अभ्यारण्य को मुक्त कराने के लिए अभियान चलाया। इसी के बाद एनजीटी में अभ्यारण्य में चल रही अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों के खिलाफ जनहित याचिका दायर हुई और एनजीटी ने अभ्यारण्य से इन गतिविधियों को बंद करने का आदेश पारित किया। हालांकि एनजीटी ने अभ्यारण में चल रही गतिविधियों को तो बंद करा दिया।

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