भारत के जाने-माने अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय का शुक्रवार को 69 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था और उन्होंने वित्त मंत्रालय की ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर क्लासिफिकेशन एंड फाइनेंसिंग फ्रेमवर्क फॉर अमृत काल’ के चेयरमैन और नीति आयोग के सदस्य सहित कई अहम पदों पर कार्य किया। देबरॉय का एक विचार, जिसने व्यापक ध्यान खींचा, संपन्न किसानों पर कर लगाने का प्रस्ताव था। उनका मानना था कि कराधान के आधार का विस्तार करने के लिए इस दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए, जिससे सरकार और किसानों के बीच विवाद की स्थिति पैदा हुई।
2017 में टैक्स बेस बढ़ाने के इस मुद्दे पर नीति आयोग की ओर से देबरॉय ने कहा कि ग्रामीण और शहरी आय पर समान आयकर नियम लागू होने चाहिए। उनके सुझाव के अनुसार, कृषि आय पर कर लगाने की सीमा शहरी आय के समकक्ष होनी चाहिए, लेकिन मौसम संबंधी प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इसे तीन साल तक सीमित किया जा सकता है। वर्तमान में भारत में आयकर अधिनियम की धारा 10(1) के तहत कृषि आय को पूरी तरह करमुक्त रखा गया है, चाहे किसान की आय कितनी भी हो।
देबरॉय के इस प्रस्ताव ने विवाद को जन्म दिया। किसानों और राजनेताओं की आलोचना के कारण तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट किया कि सरकार की कृषि आय पर कर लगाने की कोई योजना नहीं है। देबरॉय ने अपने लेख में आयकर कानून की धारा 2(1ए) और धारा 10(1) का हवाला देते हुए कृषि आय के करमुक्त ढांचे की व्याख्या की, जो कृषि आय को कर के दायरे से बाहर रखता है। हालाँकि, यह नियम लंबे समय से कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहा है और इस पर पुनर्विचार करने की संभावना बनी हुई है।
देबरॉय का यह प्रस्ताव आयकर क्षेत्र में एक अहम मुद्दा रहा है, और उनके निधन के बाद भी उनके विचारों पर चर्चा बनी रहेगी। टैक्स बेस में विस्तार और भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य पर उनकी सोच लंबे समय तक प्रासंगिक बने रह सकती है।