चुनावी दौर में हो सकती है फेज वन सी को पास कराने की कलाकारी, फेज वन बी के दावों को पूरा नहीं कर पाए मेट्रो अधिकारी
जयपुर। साढ़े तीन सौ साल पहले बसाए गए ऐतिहासिक जयपुर शहर को मिले ‘वर्ल्ड हेरिटेज सिटी’ के तमगे के कई दुश्मन बन गए हैं, जो चाहते हैं कि जयपुर से यह दर्जा छिन जाए और वह मनमानी कर शहर की विरासत को बर्बाद करते रहें। अब इन विरासत के दुश्मनों में जयपुर मेट्रो का भी नाम फिर से जुड़ रहा है। जयपुर मेट्रो ने हाल ही में मेट्रो फेज वन सी और फेज दो की डीपीआर बनाकर सरकार को भेजी है। इसके बाद से ही फेज वन सी पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। कहा जा रहा है कि जयपुर मेट्रो के अधिकारी चुनावी दौर में फिर सरकार को बरगलाकर हेरिटेज सिटी में यूनेस्को की गाइडलाइन के विपरीत फेज वन सी को पास कराने की कोशिश में है।
जयपुर मेट्रो का फेज वन सी बड़ी चौपड़ से ट्रांस्पोर्ट नगर तक प्रस्तावित है और इसका अधिकांश हिस्सा यूनेस्को द्वारा संरक्षित परकोटा शहर में बनाया जाएगा। ऐसे में यहां रामगंज चौपड़, रामगंज बाजार, सूरजपोल बाजार, सूरजपोल गेट और गलता गेट का इलाका प्रभावित होगा, जहां बड़ी मात्रा में हेरिटेज संपत्तियां है।
यूनेस्को की गाइडलाइन के अनुसार वर्ल्ड हेरिटेज सिटी में कोई भी नया प्रोजेक्ट तैयार करने से पूर्व हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट कराना अनिवार्य है। जयपुर मेट्रो ने फेज वन सी प्रोजेक्ट की डीपीआर तैयार कराने से पूर्व यहां हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट नहीं कराया है। जबकि यह जरूरी है कि डीपीआर तैयार कराने से पूर्व ही हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंस कराया जाना चाहिए था, ताकि यह पता चल सके कि प्रोजेक्ट से इस इलाके की हेरिटेज वेल्यू में क्या-क्या परिवर्तन होंगे। अब यदि हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट में यह सामने आता है कि प्रोजेक्ट से इस इलाके का मूल स्वरूप बिगड़ जाएगा या प्राचीन इमारतों पर गलत असर पड़ेगा, तो यह डीपीआर किसी काम की नहीं रह जाएगी।
जयपुर मेट्रो के प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि मेट्रो के चांदपोल से लेकर बड़ी चौपड़ तक बने फेज वन बी के दौरान मेट्रो की ओर से हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट नहीं कराया गया था, बल्कि एक हेरिटेज कंसल्टेंट फर्म आभा नारायण लांबा के दिशा-निर्देश पर यह प्रोजेक्ट पूरा किया गया था। अभी फेज वन सी का भी हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट नहीं कराया गया है। अभी डीपीआर सरकार को भेजी गई है। यदि जरूरी होगा तो असेसमेंट करा लिया जाएगा।
इस लिए कर रहे कलाकारी
जयपुर मेट्रो फेज वन बी परकोटे में बनना था और जयपुर मेट्रो के अधिकारियों को अंदेशा था कि विरासत को लेकर यहां उनके प्रोजेक्ट का विरोध हो सकता है। ऐसे में मेट्रो अधिकारियों ने पिछली गहलोत सरकार का कार्यकाल पूरा होने से ऐन पहले इस प्रोजेक्ट को पास कराकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इसका शिलान्यास करा लिया। सरकार ने भी इस गलत प्रोजेक्ट को चुनावी फायदे के लिए पास कर दिया। इसके बाद आई भाजपा सरकार के समय फेज वन बी का निर्माण शुरू हुआ और जिसका अंदेशा था, वही हुआ। निर्माण के दौरान जमीन में दबी जयपुर की प्राचीन सुरंगे, जल प्रबंधन प्रणाली, छोटी और बड़ी चौपड़ पर बने प्राचीन कुंड, प्राचीन मंदिरों को मेट्रो अधिकारियों ने विकास के नाम पर धराशायी कर दिया। छोटी और बड़ी चौपड़ का मूल स्वरूप बदल दिया गया, प्राचीन पेड़ों को हटाया गया, जिससे परकोटे का पर्यावरण प्रभावित हुआ। अब मेट्रो अधिकारी फिर पहले जैसी कलाकारी करने जा रहे हैं और शायद वह चाहते हैं कि 2023 के विधानसभा चुनावों से पूर्व सरकार को फिर बरगलाकर फेज वन सी पास करा लिया जाए।
एक भी दावा नहीं हुआ पूरा
फेज वन बी के निर्माण से पूर्व मेट्रो अधिकारियों ने बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन यह दावे दौडऩा तो दूर दो कदम भी नहीं चल पाए। कहा गया था कि मेट्रो फेज वन ए तभी प्रॉफिट में आएगा, जबकि फेज वन बी बन जाएगा, लेकिन फेज वन बी पर परिचालन शुरू होने के तीन साल बाद भी ट्रेक पर मेट्रो खाली दौड़ रही है और मेट्रो को यात्री नहीं मिल रहे हैं। एक दावा यह था कि वन बी बनने के बाद परकोटे के व्यापार को पंख लग जाएंगे, लेकिन इस प्रोजेक्ट से व्यापार को कोई फायदा नहीं मिला। अधिकारी दावा कर रहे थे कि वन बी बनने के बाद परकोटे का यातायात सुधर जाएगा, लेकिन यह दावा भी फुस्स हो गया।