जयपुर। जयपुर की प्राचीन विरासतें यहां के लोगों के लिए खजाने से भरी तिजोरी के समान है। क्योंकि इनको देखने के लिए सैंकड़ों सालों तक पर्यटक जयपुर आएंगे और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने के साथ पर्यटक सरकार की झोली भी भरेंगे, लेकिन सरकार ने इस खत्म नहीं होने वाले खजाने की चाबी नगर निगम हैरिटेज को सौंप दी है। स्थानीय निकायों में फैला भ्रष्टाचार न तो सरकार और न ही जनता से छिपा है। ऐसे में शहर की विरासत के बदहाल होने की पूरी आशंका है।
यह बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं बल्कि इनके पीछे ठोस तर्क हैं। नगर निगम हैरिटेज को पुराने पुलिस मुख्यालय की रियासतकालीन इमारत में शिफ्ट हुए तीन महीने का समय बीत चुका है, इसके बावजूद निगम अपने दरवाजे की मरम्मत नहीं करा पाया। यह हाल तो तब है जबकि निगम के सभी अधिकारी, कर्मचारी और पार्षद इस टूटे दरवाजे के नीचे से निकलते हैं। महापौर भी कई बार इस दरवाजे के नीचे से निकली होंगी।
पुराने पुलिस मुख्यालय के तीन दरवाजे हैं। मुख्य दरवाजा हवामहल के सामने है जबकि एक दरवाजा श्रीजी की मोरी में खुलता है। वहीं एक अन्य दरवाजा जंतर-मंतर के बाहर जलेब चौक की ओर खुलता है। जलेब चौक वाला दरवाजा लंबे समय से टूटा पड़ा है लेकिन हैरानी की बात यह है कि निगम के कारिंदों की नजर आज तक इस पर नहीं पड़ी।
जानकारी के अनुसार गेट के आस-पास का हिस्सा जयपुर मेट्रो और आबकारी विभाग के पास है। करीब दो-ढाई वर्ष पूर्व इस हैरिटेज लुक वाले दरवाजे के छत की पट्टियां टूट गई थी। जयपुर की विरासत को बर्बाद करने के दोषी जयपुर मेट्रो ने इस दरवाजे की मरम्मत कराने की जहमत नहीं उठाई बल्कि पट्टियों को गिरने से रोकने के लिए जैक और बांस-बल्लियां यहां लगा दी गईं।
निगम यहां शिफ्ट हुआ तो आस बंधी की अब शहर के हैरिटेज की सुध ली जाएगी लेकिन निगम तो अपने दरवाजे की ही मरम्मत नहीं करवा पा रहा है। निगम के कारिंदे यहां आते ही कमाने-खाने में जुट गए और तीन महीने में ही दो बार एसीबी की रेड पड़ गई। वर्ल्ड हैरिटेज सिटी घोषित हो चुके परकोटे में प्राचीन इमारतों को तोड़ कर नवीन निर्माण का खेल निगम की मिलीभगत से जारी है।
राजस्थान उच्च न्यायालय शहर के प्राचीन परकोटे के संरक्षण संवर्धन की जिम्मेदारी नगर निगम को सौंपी थी। दो निगम बनने के बाद यह जिम्मेदारी हैरिटेज निगम को सौंप दी गई। स्मार्ट सिटी कंपनी ने दरबार स्कूल में पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित परकोटे से सटाकर नया प्रोजेक्ट शुरू किया और परकोटे व बुर्ज को तहस-नहस कर दिया। इस मामले में भी हैरिटेज निगम का बोर्ड बिना रीढ़ की हड्डी वाला साबित हुआ। आज तक इस मामले में हैरिटेज निगम की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सवाल यह है कि क्या नगर निगम हैरिटेज, न्यायालय के निर्देशों के अनुसार परकोटे के अतिक्रमणों को हटाकर इसका जीर्णोद्धार कराने में कामयाब हो पाएगा? क्या प्राचीन इमारतों के संरक्षण के लिए कानून-कायदे बनाने के अलावा निगम पुरानी हवेलियों का टूटने या उनका व्यावसायीकरण पर रोक लगा पाएगा?
टूटे दरवाजे की मरम्मत के संबंध में जब हमने हैरिटेज निगम के अधिशाषी अभियंता (मुख्यालय) किशनलाल मीणा से जानकारी चाही तो उनका कहना था कि मैने इस दरवाजे को नहीं देखा है। मुझे इसकी जानकारी नहीं है। मैं अभी यहां नया ही आया हूं और दरवाजे की जानकारी कराता हूं।