कारोबारकृषिपर्यावरणस्वास्थ्य

जैविक खेती से दें पर्यावरण को नया जीवन

बेंगलुरु । भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक में हुई। इसके साथ सदियों से चली आ रही पारंपरिक खेती का स्थान एक ऐसी तकनीक ने ले लिया जिसमें खेती के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाने लगा मसलन अधिक उत्पादन देने वाली अनाज की किस्में (HYV), बेहतर सिंचाई प्रबंधन, खेती में अधिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खाद का इस्तेमाल, इत्यादि। जल्द ही हरित क्रांति का प्रभाव देखने को मिला जब भारत खाद्यान्न में ना सिर्फ आत्म निर्भर बना परंतु इतना अनाज उत्पन्न करने की स्थिति में पहुंच गया कि अनाज का निर्यात किया जाने लगा।

परंतु कुछ दशकों उपरांत हरित क्रांति के कुछ विपरीत परिणाम नजर आने लगे। इनमें सर्वप्रथम था रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण प्राकृतिक माइक्रोफ्लोरा का नष्ट होना एवं मिट्टी की क्षारीयता और लवणता में वृद्धि होना जिसके कारण मिट्टी का भौतिक और रासायनिक क्षरण होता है। कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से खाद्य पदार्थों एवं  पर्यावरण में इनके अवशेष बढ़ गए जो कि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत नुकसानदायक है। हरित क्रांति के फलस्वरूप ज़्यादातर किसान चावल एवं गेहूं की खेती करने लगे जिसके कारण न सिर्फ अन्य खाद्य फसलों के उत्पादन में गिरावट आई अपितु मात्र उन्नत किस्मों वाले अनाज (HYV) के उत्पादन से देसी अनाजों के विविधता वाले जीन पूल नष्ट हो गए। क्योंकि इन फसलों को अधिक पानी की जरूरत होती है अतः सिंचाई के लिए अत्यधिक पानी के इस्तेमाल से ज़्यादातर जगहों पर भूजल का स्तर अत्यंत नीचे चला गया। और तो और इससे अनाज की उत्पादन लागत में अधिक वृद्धि हुई  जिससे खेती बहुत लाभदायक व्यवसाय नहीं रहा एवं अनेक किसान खेती छोड़कर रोज़गार के अन्य साधनों की ओर रुख करने लगे। 

इन मुश्किलों से निकलने के लिए अब अनिवार्य हो गया है कि हम प्रकृति को किए गए नुकसान की भरपाई करें एवं जैविक खेती को अपनाएं। जैविक खेती एक ऐसी प्रणाली है जिसमें प्रकृति को आदर देते हुए अन्न का उत्पादन किया जाता है। ना सिर्फ ये रासायनिक खाद और कीटनाशकों से रहित होती है बल्कि इसमें अनाज की स्थानीय किस्मों के इस्तेमाल एवं फसल के चक्रीकरण को भी  महत्व दिया जाता है। इस प्रकार की खेती भारत के लिए कोई नई चीज़ नहीं है। हरित क्रांति से पूर्व, सदियों तक किसान जैविक खेती के द्वारा ही अनाज उत्पन्न करते थे। किन्तु अब जैविक खेती की ज़रूरत संपूर्ण विश्व में ना सिर्फ महसूस करी जाने लगी है बल्कि इसके स्वास्थ्य पर होने वाले अनुकूल प्रभाव के चलते जैविक खेती द्वारा उत्पन्न अनाज को अधिक मूल्य मिलने लगा है। पहले और अब में अन्तर मात्र यह है कि विभिन्न संस्थानों की मदद के द्वारा जैविक खेती का प्रबंधन बेहतर रूप से किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक खाद्यान्न बेहतर स्थिति में उपभोक्ता तक पहुंच सके। 

अन्य देशों की तरह भारत में भी अब जैविक खेती को अपनाया जा रहा है। 31 मार्च 2018 तक, ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन प्रक्रिया (ऑर्गेनिक प्रोडक्शन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत पंजीकृत) के तहत कुल क्षेत्रफल 3.56 मिलियन हेक्टेयर (2017-18) है। इसमें 1.78 मिलियन हेक्टेयर (50%) खेती योग्य क्षेत्र और दूसरा 1.78 मिलियन हेक्टेयर (50%) जंगली फसल संग्रह के लिए शामिल है। मध्य प्रदेश  के बाद राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में जैविक प्रमाणीकरण के तहत सबसे बड़े क्षेत्र को कवर किया है। 2016 के दौरान, सिक्किम ने अपनी पूरी खेती योग्य भूमि को (76000 हेक्टेयर से अधिक) जैविक प्रमाणीकरण के अन्तर्गत परिवर्तित करने का उल्लेखनीय गौरव हासिल किया है। इसके साथ ही निर्यात 2017-18 के दौरान प्रमाणिक जैविक खाद्य निर्यात की कुल मात्रा 4.58 लाख मीट्रिक टन एवं निर्यात प्राप्ति लगभग 3453.48 करोड़ (515.44 मिलियन अमरीकी डालर) थी।

जैविक खेती से ना सिर्फ मिट्टी कि सेहत में सुधार होता है और इसकी उर्वरकता बनी रहती है बल्कि रसायनों के धरती में ना रिसने के कारण भूमि जल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। अनाज की स्थानीय किस्मों के इस्तेमाल के कारण जिस क्षेत्र में जो अनाज उगता है वो उस क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल होता है जिसके कारण कृत्रिम जल संसाधनों के उपयोग में कमी आती है और अपर्याप्त वर्षा या पानी की कमी से फसल नष्ट होने की संभावना कम रहती है। 

जैविक खेती के कारण एक और अत्यंत सकारात्मक एवं महत्वपूर्ण (किन्तु दूरगामी) परिणाम की उम्मीद की जा सकती है- रोज़गार के नवीन अवसर। चूंकि जैविक खेती में किसी रासायनिक खाद्य या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं होता इसलिए यह एक गहन श्रम वाली प्रक्रिया है जिसमें श्रमिकों या किसानों की बहुत आवश्यकता रहती है। इस प्रकार इस खेती को अपनाकर गांवों में रोज़गार के नए साधन उतपन्न होंगे और लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन कम होगा। इससे ना सिर्फ शहरों की आधारभूत सुविधाओं का बढ़ता बोझ कम होगा बल्कि गांवों की आबादी भी बढ़ेगी जिससे सरकार के अलावा विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय उद्योगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित होगा और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा। इसके साथ ही, क्योंकि जैविक खाद्यान्न जल्दी खराब हो जाता है, इसके भंडारण एवं बेहतर तथा शीघ्र स्थानांतरण के लिए नए उद्योगों की स्थापना होगी जिससे रोज़गार के नए आयाम स्थापित होंगे।

जैविक खेती के फायदों, लोगों में बढ़ती जागरुकता एवं सरकार तथा विभिन्न संगठनों के प्रयासों के चलते भारत में इसके विस्तार की अत्यधिक गुंजाइश है। हालांकि जैविक खाद्यान्न महंगा होता है किन्तु धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और उन्हें समझ आ रहा है कि बेहतर गुणवत्ता के भोजन पर हजारों खर्च करना, अस्पतालों और दवाइयों पर लाखों खर्च करने से कहीं ज़्यादा बेहतर है। अतः हमें चाहिए कि ज़्यादा से ज़्यादा किसानों में जैविक खेती के प्रति जागरूकता लाएं एवं इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करें। यह शायद संभव नहीं कि संपूर्ण खेती प्रणाली जैविक हो किन्तु 0 और 100 के मध्य में अनेक संभावनाएं होती हैं। वर्तमान समय की मांग है कि मौजूदा खेती प्रणाली और जैविक खेती में सामंजस्य स्थापित करके पर्यावरण में सुधार किया जाए एवं खेती को लाभदायक बनाने के साथ सकल घरेलू उत्पादन में इसका योगदान बढ़ाया जाए।

Related posts

On the web Sports betting australian betting odds Now offers Within the Tx

admin

10 Signs He’s Not Completely Over Their Old boyfriend But really (+ What direction to go)

admin

80 Free Revolves https://davinci-diamonds-slot.com/ No deposit Canada

admin