अदालत

केरल HC ने मुनंबम भूमि विवाद की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग को रद्द किया

तिरुवनंतपुरम। राज्य सरकार को झटका देते हुए, केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को मुनंबम भूमि विवाद का समाधान खोजने के लिए गठित न्यायिक आयोग की नियुक्ति को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस की पीठ ने यह निर्णय लिया कि यह मामला पहले से ही वक्फ ट्राइब्यूनल के विचाराधीन है, और इसी आधार पर सेवानिवृत्त कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सी एन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता वाले आयोग की नियुक्ति को निरस्त कर दिया। वक्फ प्रोटेक्शन समिति ने इस आयोग की नियुक्ति को अदालत में चुनौती दी थी।
राज्य सरकार ने नवंबर 2023 में इस विवादित मुनंबम भूमि पर निवास कर रहे लोगों के कानूनी अधिकारों की रक्षा करने और विवाद का समाधान निकालने के उद्देश्य से इस आयोग की नियुक्ति की थी। केरल राज्य वक्फ बोर्ड लंबे समय से एर्नाकुलम जिले के मुनंबम तट पर स्थित 404 एकड़ जमीन पर दावा करता रहा है — यह वही जमीन है जिस पर लगभग 600 हिंदू और ईसाई परिवार पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं।
आयोग को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया था। साथ ही, राज्य सरकार ने निवासियों को आश्वस्त किया था कि जिनके पास वैध भूमि दस्तावेज़ हैं, उन्हें बेदखल नहीं किया जाएगा, और आयोग का गठन उनके अधिकारों की रक्षा व स्थायी समाधान के लिए किया गया है।
विवाद की पृष्ठभूमि:
इस विवाद की शुरुआत 1902 से मानी जाती है, जब तत्कालीन त्रावणकोर राजपरिवार ने पहले से मछुआरा समुदाय द्वारा बसी हुई 404 एकड़ भूमि को अब्दुल सत्तार मूसा सैत नामक व्यापारी को पट्टे पर दे दिया था, जो कोच्चि के पास मट्टनचेरी में बसे हुए थे।
1948 में, उनके उत्तराधिकारी और दामाद मोहम्मद सिद्दीक सैत ने पट्टे की गई भूमि को अपने नाम पर दर्ज करवाया और इसका प्रबंधन कोझिकोड स्थित फारूक कॉलेज को सौंपने का निर्णय लिया। यह कॉलेज 1948 में मलाबार (उत्तर केरल) के मुस्लिमों को शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
1 नवंबर 1950 को, एक वक्फ दस्तावेज़ (waqf deed) को एदप्पल्ली, कोच्चि के उप-पंजीकरण कार्यालय में पंजीकृत किया गया, जिसे सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में निष्पादित किया। एक दशक बाद कॉलेज प्रबंधन को इस भूमि का टाइटल डीड मिल गया। इसके बाद, वहां रहने वाले लोगों (जिनके पास मालिकाना हक साबित करने के लिए वैध दस्तावेज़ नहीं थे) और कॉलेज प्रबंधन के बीच कानूनी विवाद शुरू हो गया।
आख़िरकार, अदालत से बाहर समझौते में, कॉलेज प्रबंधन ने भूमि को बाज़ार दर पर निवासियों को बेचने का निर्णय लिया। बिक्री दस्तावेजों में, कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि यह वक्फ संपत्ति है जो कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को शैक्षणिक उद्देश्य से दी गई थी, बल्कि इसे एक उपहार (gift deed) के रूप में प्राप्त भूमि बताया।
आगे की घटनाएं:
2008 में, राज्य वक्फ बोर्ड के विरुद्ध कई शिकायतों के बाद, वामपंथी सरकार (वर्तमान मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन के नेतृत्व में) ने एक जांच आयोग का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश एम. ए. निस्सार ने की। आयोग को यह जांचने का कार्य सौंपा गया था कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की हानि के लिए कौन ज़िम्मेदार है और उनकी पुनर्प्राप्ति के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें मुनंबम की भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया और कहा गया कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की अनुमति के बिना इसे बेच दिया। साथ ही, भूमि की वापसी के लिए कदम उठाने की सिफारिश की गई।
2019 में, वक्फ बोर्ड ने स्वयं संज्ञान लेते हुए वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अंतर्गत इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया।

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