जयपुर

कोरोना काल में चिड़चिड़े होते जा रहे बच्चों पर ऐसे दें विशेष ध्यान…

Dr. Swati Jadhav
डॉ. स्वाति अमराळे जाधव,
सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक विषयों पर समसामायिक लेखन। परामर्शदाता प्रशिक्षक, अनुवादक तथा संशोधक। ‘जागतिक स्वास्थ्य संगठन’ के मानसिक स्वास्थ्य संशोधन में सहभागिता, बालक तथा बुजुर्ग व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य में कार्य करने का अनुभव।   

आठ साल के मयंक के हाथ से मोबाइल फोन छीन लेने के कारण घंटाभर उसने रो-रो कर सारा घर सिर पर उठा लिया था। किसी भी तरह परिवार के सदस्य उसे समझा नहीं पा रहे थे। तेरह साल की स्वानंदी अकेली और सहमी रहेने लगी है। उसकी माँ बता रही है कि घर में वह अब किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती है। पंद्रह साल की सुहाना में छोटी-छोटी बातों को लेकर चिड़चड़ापन बढ़ गया है। उसके पापा अनुभव के साथ इस बात की पुष्टि कर रहे है। दस साल के नीरज का किसी भी चीज को लेकर बढ़ता गुस्सा देखकर उसके माता-पिता चिंतित होने लगे है।

 वर्तमान स्थिति में बालकों की मनोवस्था से परिचित करानेवाले यह कुछ प्रतिनिधि उदाहरण। जब से कोरोना संक्रमण आया है, तब से बच्चों के सामूहिक खेलने-कूदने, शिक्षा तथा रुचि के कार्य करने में रुकावटें आ गयी हैं। शिक्षा का स्वरुप ऑनलाइन हो गया है। एक कक्षा में एक साथ बैठकर पढ़ने का आनंद, खेल के मैदान पर सबके साथ मिलकर खेलने का आनंद, पाठशाला में आते-जाते वैन, ऑटो तथा स्कूल बस में छोटे-बड़े मित्रों के साथ होनेवाली मस्ती, ऑटो / वैनवाले अंकल से होनेवाली गपशप आदि के सुखद अनुभवों से बच्चे पिछले लगभग डेढ़ साल से वंचित हैं। कोरोना की शुरुआत से बढ़ा दी गयीं इस छुट्टी से बच्चे खुश थे किंतु जैसे-जैसे यह अवधि बढ़ने लगी, यह स्थिति उन्हें अरोचक लगने लगी। अब इसके परिणाम दिखने लगे है।

      पहले भी शहरों में बच्चों की भावनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ‘आऊट सोर्सिंग’ का विकल्प चुनने की ओर अधिकतर अभिभावकों का रुझान होता था। बच्चों की इच्छा हो या न हो, शनिवार-रविवार उन्हें चित्रकारी, गायन, शतरंज, क्रिकेट आदि वर्गों में व्यस्त रखने में अभिभावक स्वयं सुकून का अनुभव करते थे। ‘बच्चों को हमने उनके लिये जरूरी गतिविधियों में अलग ही व्यस्त कर रखा है’, यह बात वे बड़े गौरवान्वित होकर कहते हुए दिखाई देते थे। अभिभावक और बच्चों का आपसी संवाद, ‘प्रतियोगिता’ के इर्द-गिर्द ही रहता था। कोरोना के कारण अधिकतर अभिभावक घर से काम करने के लिए मजबूर हैं। नौकरी खोने का डर, वेतन में कमी होने की आशंका, बढ़ती मंहगाई आदि बिंदु वेतनधारकों को अधिक समय काम करने के लिए विवश कर रहे है।

कोरोनापूर्व काल में कार्यालयीन समय में आठ घंटे काम करने वाले लोग अब दस-दस, बारह-बारह घंटे काम कर रहे हैं। नौकरीपेशा महिलाओं को ‘वर्क फ्रॉम होम’ के साथ ‘वर्क एट होम’ भी करना पड़ रहा है। रेस्टोरेंट, फास्ट फूड कॉर्नर इत्यादि बंद होने के कारण घरवालों की खाने की अलग-अलग फ़रमाइश पूरी करना, रोज के नियमित काम के अलावा सामायिक कामों के बोझ से महिलाओं में तनाव बढ़ने लगा है। इस स्थिति में कोरोना से संबधित समाचार अभिभावकों की चिंता को अधिक बढ़ा रहे हैं। इस स्थिति में स्वयं की भावनावस्था से अपरिचित अभिभावक, बच्चों की मनोदशा को समझ ले, यह थोड़ा कठ़िन ही है। बच्चों में दिख रही निराशा, चिंता, भय, चिड़चिडापन, गुस्सा आदि इसके परिणाम हैं। सही समय इन बिंदुओं पर ध्यान ना दिया गया तो बच्चों के मानसिक-भावनात्मक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक दुष्प्रभाव दिखाई देंगे।   

      अभिभावक प्रयत्नपूर्वक इस स्थिति का सामना कर सकते है। वर्तमान स्थिति में बच्चों के सामने लगातार कोरोना के बारे में बातचीत ना करे। कोरोना से घटित मृत्यु के बारे में या किसी भी नकारात्मक घटनाओं का बार-बार उल्लेख न करें। घर में पैसों को लेकर समस्या चल रही है तो बच्चों के सामने गुस्सा, चिड़चिड़ापन व्यक्त ना करें। बच्चे थोड़े वयस्क और समझदार हो तो उन्हें विश्वास में लेकर परिस्थिति समझाएं। लगातार बच्चों की पढ़ाई के पीछे ना पड़े। पति-पत्नी में कोई मतभेद हो तो वह आपस में शांति से सुलझाएं। बच्चों के सामने भड़ास ना निकालें।

सचेत मन से विचार कर अभिभावक बच्चों से अपना व्यवहार रखें। बच्चों को अपने मन की बात रखने के लिए, अभिभावकों द्वारा मदद होना आवश्यक है। अभिभावक अपने काम के लिए लेपटॉप या मोबाइल फोन में व्यस्त, बच्चे शिक्षा तथा ऑनलाइन हॉबी क्लास (आऊटसोर्सिंग का नया रुप) के लिए अपने मोबाइल में व्यस्त, यह चित्र आज शहरों के अधिकांश घरों में दिखाई दे रहा है। इससे बच्चों में ‘स्क्रीन टाइम’ बढ़ने की जोखिम बढ़ रही है।

इस बात से हम अपरिचित है कि भविष्य में जब कोरोना का संकट कम होगा, स्थिति सामान्य होगी तब इन बच्चों में ‘सामाजिक कौशल’ की कमी पाई जाएगी। कक्षा में अच्छे अंक लाने को ही केवल जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य समझना अभिभावकों ने छोड़ देना चाहिए। कोरोना काल में बच्चों के शैक्षिक वर्ष के बारें में व्यर्थ चिंता करना और यह चिंता बार-बार बच्चों के सामने दोहराना छोड़ दे। इस स्थिति से गुजरनेवाले हम अकेले नहीं है, यह बात ध्यान में रखें। पुस्तकी ज्ञान के अलावा घर में रहकर भी बच्चों को हम बहुत कुछ सिखा सकते है। जिससे उनमें ज्ञान के साथ-साथ कौशल भी विकसित होगा और उनका भावनात्मक संतुलन भी बना रहेगा।

बच्चों को घर के छोटे-छोटे काम में शामिल कर लें। घर की साफ-सफाई, सजावट, बाग़बानी, रसोई आदि कामों में बच्चों को साथ लें। इससे बच्चों में ‘जीवन कौशल’ विकसित होने में मदद मिलेगी। बच्चे स्वयंपूर्ण बनने की दिशा में चलेंगे। अभिभावक और बच्चों का सानिध्य बढ़ेगा। अभिभावक समय निकालकर बच्चों के साथ कैरम, शतरंज, अंताक्षरी, शब्द मंजुषा खेलें। मिलकर कुछ अच्छे कार्यक्रम देखे, पुस्तक पढ़ें, पुराने अल्बम देखें और चित्र बनाएं। एक साथ खाना खाएं। यह छोटी-छोटी खुशी हमें सकारात्मकता देती है।

      कोरोना की तीसरी लहर के बारें में अभिभावकों के मन में भय, चिंता होना स्वाभाविक है। अभिभावक यह भय, चिंता बच्चों के सामने अपने व्यवहार या संभाषण द्वारा व्यक्त ना करे। ऐसा होने से बच्चे स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर सकते है। बच्चों पर अकारण पाबंदियां न लगाएं। अभिभावक स्वयं ‘स्वस्थ व्यवहार’ का आचरण करके बच्चों तक पहुंचाएं। मास्क का महत्त्व, हाथों की स्वच्छता, सुरक्षित अंतर यह चीजें बच्चों को वैज्ञानिक मनोदृष्टि से समझाएं। बच्चों के साथ अनावश्यक आग्रह या विवशतापूर्ण व्यवहार ना हो, इस चीज का अभिभावकों ने ध्यान रखना जरुरी है।

बच्चों का (निहित) टीकाकरण समय पर करा लें। बच्चों को पौष्टिक आहार दें। बच्चों में मोटापा (ओबिसिटी) ना बढ़े इसलिए रोजाना बच्चों के साथ मिलकर कुछ शारीरिक व्यायाम करे। संयुक्त परिवार बच्चों के परवरिश में ज्येष्ठ सदस्यों को शामिल कर लें। सबसे महत्वपूर्ण बच्चों को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का अवसर दें। बच्चों से होनेवाला हर संवाद  ‘सचेत’ हो इसका ध्यान रखे। ‘सचेत संवाद’ से ही हम वर्तमान और भविष्य में हमारे परिवार का मानसिक-भावनिक स्वास्थ्य बनाये रख सकते हैं, यह बात हम जितनी शीघ्र समझेंगे हमारे लिए लाभदायी है।    

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