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CBI में लैटरल एंट्री, बिना राज्य की सहमति के जांच के लिए नया कानून: संसदीय समिति ने बड़े सुधारों की सिफारिश की

नयी दिल्ली। एक संसदीय समिति ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) में व्यापक सुधारों की सिफारिश की है, जिनमें क्षेत्र विशेषज्ञों की लैटरल एंट्री, राष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से सीधी भर्ती, और राष्ट्रीय सुरक्षा व अखंडता से जुड़े मामलों की जांच के लिए बिना राज्य सरकार की सहमति के कार्रवाई करने के लिए नया कानून शामिल है। ये सिफारिशें गुरुवार को संसद में पेश कर्मचारी, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति की 145वीं रिपोर्ट में की गई हैं। इस समिति की अध्यक्षता भाजपा के राज्यसभा सांसद बृज लाल कर रहे हैं।
CBI में अधिकारियों की कमी और लैटरल एंट्री की सिफारिश
समिति ने सीबीआई में योग्य अधिकारियों की कमी पर गंभीर चिंता जताई है, जो एजेंसी की कार्यकुशलता को प्रभावित कर रही है। इसमें मुख्य रूप से अन्य विभागों से अधिकारी देने में देरी, दस्तावेजी प्रक्रियाओं में जटिलता और राज्यों के पुलिस अधिकारियों की अनिच्छा को कारण बताया गया है।
समिति ने कहा, “CBI में अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति (deputation) को लेकर नामांकन की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। प्रशासनिक अड़चनों के कारण नियुक्तियों में देरी होती है, जिससे महत्वपूर्ण मामलों पर असर पड़ता है। इस चुनौती से निपटने के लिए संस्थागत सुधारों, सुगम प्रक्रियाओं और अधिक प्रोत्साहनों की आवश्यकता है।”
समिति ने सीबीआई को प्रतिनियुक्ति पर अत्यधिक निर्भरता कम करने और एक स्थायी कैडर (permanent cadre) बनाने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि “CBI को उप अधीक्षक (Dy SP), इंस्पेक्टर और उप-निरीक्षक (SI) जैसे कोर पदों के लिए कर्मचारी चयन आयोग (SSC), संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) या एक समर्पित CBI परीक्षा के माध्यम से प्रत्यक्ष भर्ती की अनुमति दी जानी चाहिए।”
साथ ही, साइबर अपराध, फोरेंसिक, वित्तीय धोखाधड़ी और कानूनी मामलों में विशेषज्ञों को लैटरल एंट्री के माध्यम से शामिल करने की भी अनुशंसा की गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि प्रतिनियुक्ति केवल उच्च पदों के लिए सीमित हो और बाहरी सलाहकारों पर निर्भरता कम करने के लिए सीबीआई के भीतर एक विशेषज्ञ टीम का गठन किया जाए।
बिना राज्य सरकार की अनुमति जांच के लिए नया कानून
समिति ने इस बात पर भी जोर दिया कि देश के आठ राज्यों ने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति (General Consent) वापस ले ली है, जिससे संगठित अपराध और भ्रष्टाचार की जांच पर असर पड़ा है। समिति ने सुझाव दिया कि एक नया कानून लाया जाए, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़े मामलों की जांच के लिए सीबीआई को राज्यों की सहमति की आवश्यकता न हो।
हालांकि, समिति ने यह भी कहा कि इस कानून में “निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिए, ताकि राज्य सरकारों को अधिकारहीन महसूस न हो।” रिपोर्ट में कहा गया, “यह सुधार समयबद्ध और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। इससे विलंब को रोका जा सकेगा और सीबीआई की शक्ति मजबूत होगी, जिससे संघीय संतुलन भी बना रहेगा।”
सीबीआई की पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर
समिति ने सीबीआई को अधिक पारदर्शिता अपनाने का सुझाव दिया और अपनी केस स्टैटिस्टिक्स तथा वार्षिक रिपोर्ट को वेबसाइट पर सार्वजनिक करने की अनुशंसा की। रिपोर्ट में कहा गया, “एक केंद्रीकृत केस प्रबंधन प्रणाली लागू की जानी चाहिए, जिससे गैर-संवेदनशील मामलों की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो सके। इससे सीबीआई की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता, दक्षता और जनता का विश्वास बढ़ेगा।”
समिति ने सीबीआई की वेबसाइट की मीडिया सेक्शन को लेकर भी आलोचना की और कहा कि “वर्तमान में केवल चुनिंदा अपडेट दिए जाते हैं, जिससे पारदर्शिता सीमित हो जाती है।” रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि सीबीआई की वार्षिक रिपोर्ट केवल कुछ सरकारी एजेंसियों तक सीमित है, जिससे जनता को पूर्ण जानकारी नहीं मिल पाती।
समिति ने यह भी सुझाव दिया कि “एक सुव्यवस्थित, निष्पक्ष सूचना प्रणाली लागू की जानी चाहिए, जिससे जांच की गोपनीयता भी बनी रहे और जनता का विश्वास भी बढ़े।”

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