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लॉकडाउन में हाथी गाँव में चार हाथियों की मौत

जयपुर। कोरोनाकाल में लॉकडाउन जयपुर में पर्यटन क्षेत्र में काम कर रहे हाथियों पर भारी पड़ गया। जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के दौरान जयपुर में चार हाथियों की मौत हुई, लेकिन वन विभाग, हाथी मालिकों, पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग द्वारा मामले को दबाए जाने की कोशिशों के बीच मात्र एक हाथी की मौत की खबर ही मीडिया में आ पाई थी, लेकिन अब एनिमल वेलफेयर से जुड़े संगठन दावा कर रहे हैं कि एक नहीं बल्कि चार हाथियों की मौत हुई थी।

हाथी गांव में चार हाथियों की मौत का मामला सामने आने पर कार्यकर्ताओं ने वन विभाग और राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है। विभाग के बयानों के अनुसार महामारी से पर्यटन प्रभावित होने के कारण हाथियों के मालिकों के पास आय नहीं है और न ही हाथियों के लिए व्यायाम की व्यवस्था।

इस जवाब से असंतुष्ट, स्थानीय संगठन और कार्यकर्ता हेल्प इन सफ़रिंग और एंजेल आइज़ की अगुवाई में एक अक्टूबर को देशव्यापी डिजिटल विरोध प्रदर्शन का आयोजन करेंगे, प्रोटेस्टर अल्बर्ट हॉल पर शाम 4 बजे एकत्रित होंगे, जुलूस निकालकर शाम 6 बजे आमेर फोर्ट पर एकत्रित होंगे।

रिपोर्ट में सामने आए खतरनाक तथ्य

हाल ही में एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (एडब्ल्यूबीआई) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 102 हाथियों में से 19 हाथियों को या तो एकतरफा (दाईं या बाईं आंख) या फिर दोनों आंखों से अंधा पाया गया, इसके बावजूद इनका उपयोग सार्वजनिक स्थानों पर और सवारी के लिए किया गया। वहीं 91 हाथियों की जांच में, 10 हाथियों को ट्यूबरक्लॉसिस पॉजिटिव पाया गया। फिर भी उन्हें अन्य हाथियों के मध्य रहने की अनुमति दी गई और टूरिस्ट्स की सवारी के उपयोग में लिया गया। टीबी एक जूनोटिक बीमारी है जिससे इंसानों और जानवरों के लिए खतरा है। मरे हुए 4 हाथियों में से 2 हाथी का टीबी का परीक्षण पॉजिटिव आया था, लेकिन राजस्थान वन विभाग द्वारा 3-5 महीनों में टीबी मुक्त घोषित कर किया गया, जबकि वास्तव में किसी भी हाथी को टीबी से उबारने में कम से कम 6-12 महीने का गहन उपचार करना पड़ता है।

हेल्प इन सफरिंग की मैनेजिंग ट्रस्टी, टिम्मी कुमार ने कहा कि हाथियों के मालिक और वन विभाग दावा करते हैं कि वे हाथियों को अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते हैं। क्या एक परिवार के सदस्य से इस तरह से व्यवहार किया जाता है? जब उन्हें स्थानीय वॉलंटियर्स द्वारा भोजन के लिए मदद की पेशकश की गई तो उन्होंने साफ मना कर दिया।

हेल्प इन सफ़रिंग की सह-आयोजक, मरियम अबुहैदरी ने कहा कि गर्म डामर की सड़कों पर आमेर की पहाड़ी पर जाना हाथियों और उनके पैरों के लिए बहुत बुरा है। उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो जाती हैं, उन्हें अंकुश से घाव हो जाते हैं, उनकी त्वचा मुरझा जाती है, और पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलता। बंदी हाथियों में तनाव का स्तर बहुत ज्यादा होता है। हाथी गांव में स्थितियां बहुत भयावह हैं और वो भी विरासत और व्यवसाय के नाम पर।

एंजेल आइज के फाउंडर अभिषेक सिंह ने कहा कि राजस्थान सरकार हाथियों की रक्षा करें और उन्हें विरासत और पर्यटन के नाम पर लगातार मरने न दें। पिछले कुछ वर्षों में 20 हाथियों की मौत हुई है। हाथी गांव में कई तरह की बीमारियां फैली हुई हैं, जो हाथियों को मार रही हैं। वन विभाग पूरे मामले को ढकने की कोशिश कर रहा है और उनकी नाक के नीचे होने वाले वन्यजीव व्यापार को बचाने का प्रयास कर रहा है।

हाथियों पर अत्याचार के भयावह तथ्य

– पैर सडऩे के कारण पहले 8 हाथियों की मौत हो गई

– 10 हाथियों को टीबी पॉजिटिव घोषित किया गया और उनकी स्थिति पर कोई जानकारी नहीं है।

– हाथी गांव की लगातार क्रूरता और अमानवीय स्थिति शेष हाथियों के लिए विनाशकारी होगी।

इनपर होना चाहिए काम

– पर्याप्त मात्रा में भोजन और पानी

– टीबी और अन्य बीमारियों के लिए तत्काल चिकित्सा जांच

– घायल, बीमार हाथियों की जांच की जानी चाहिए और फिट नहीं होने पर हाथी को हाथी गाँव से दूर स्थानांतरित किया जाना चाहिए

– राज्य में नए हाथियों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

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