भारत ने अगस्त में चंद्रयान-3 मिशन में कामयाबी हासिल की थी। चंद्रयान-3 से जुड़े जितने भी लक्ष्य थे, वह पूरे हो गए। इसके बाद विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को स्लीप मोड में भेज दिया गया था। चांद पर सुबह होने के बाद अब फिर इन्हें जगाने की कोशिश हो रही है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी का फ्रेंच गुयाना का कौरौ स्टेशन से इन्हें जगाने का सिग्नल लगातार भेजा जा रहा है। अभी तक यह जगे नहीं हैं। माना जा रहा है कि शायद यह फिर न उठें। लेकिन पहले भी ऐसा हुआ है कि जिन अंतरिक्ष यानों को पूरी तरह से खत्म माना गया, वह फिर चलने लगे।
जनवरी 2018 में शौकिया खगोलशास्त्री स्कॉट टिली ने एक ट्रांसमीटर सिग्नल को पकड़ा था। बाद में उन्हें पता चला कि यह नासा का इमेज सैटेलाइट है, जिसे पृथ्वी के औरोरा की स्टडी के लिए बनाया गया था। स्पेस एजेंसी ने 2005 में इससे संपर्क खो दिया था। 13 साल बाद भी जब इसे खोजा गया तो इसकी बैट्री पूरी तरह चार्ज थी और काम कर रही थी। नासा ने भी सैटेलाइट को दोबारा खोजने से जुड़ी पुष्टि की थी। नासा ने तब कहा था कि इसके वैज्ञानिक यंत्रों को ऑन किया जाएगा, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगेगा। क्योंकि इसके सॉफ्टवेयर 12 साल पुराने थे, जिन्हें फिर बनाना पड़ेगा।
चंद्रयान पर क्या बोले स्कॉट टिली
स्कॉट लगातार भारत के चंद्रयान-3 पर नजर बनाए हुए हैं। उनका कहना है कि चांद पर गड्ढे और पहाड़ हैं। कई बार सतह के बराबर न होने से रेडियो सिग्नल नहीं पहुंचता। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, श्अगर मैं इसरो की जगह होता तो चंद्रयान तीन के लैंडर को लेकर क्या करता? मैं अगले चंद्र दिवस तक सिग्नल भेजता रहता। चंद्र रात्रि के बाद सुबह फिर सिग्नल भेजता। इस थोड़े से प्रयास से बड़ा लाभ मिल सकता है।श् इसके साथ उन्होंने नासा के सैटेलाइट खोजने के बारे में बताया। साल 2020 में उन्होंने अमेरिका की एक मिलिट्री सैटेलाइट खोजी जो खराब और बंद मानी जा रही थी।
चंद्रयान को क्या हुआ?
पृथ्वी अपने धुरी पर भी घूमती है। इस वजह से दिन और रात जल्दी आते हैं। लेकिन चांद पर ऐसा नहीं होता। चांद अपने धुरी पर नहीं घूमता सिर्फ पृथ्वी का चक्कर लगाता है। इसी कारण हमें इसका एक ही हिस्सा दिखता है। जब चांद पृथ्वी से चमकता दिखे तो उस जगह वहां सुबह होती है। चांद पर 14 दिन और 14 रातें मिलकर एक दिन बनाती हैं। सुबह के समय यहां का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म होता है। वहीं रात में तापमान माइनस 200 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नीचे होता है। विक्रम और प्रज्ञान के यंत्रों को ऐसा नहीं बनाया गया है जो इतनी ठंड में रह सकें। इसी कारण माना जा रहा है कि यह खराब हो चुके हैं।