जयपुर

राजस्थान की सियासत में बनेंगे नए समीकरण, कांग्रेस-भाजपा का दामन छोड़ सपा-बसपा का रुख करेंगी ओबीसी जातियां

जयपुर। राजस्थान की सियासत में नए समीकरण बनने शुरू हो गए हैं। कांग्रेस से पारंपरिक अल्पसंख्यक वोटरों को दूर करने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के बीच गठबंधन हो चुका है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि कांग्रेस-भाजपा से नामुराद होकर ओबीसी जातियां सपा-बसपा की तरफ जा सकती है।

जयपुर में महापौर का पद मूल ओबीसी जातियों माली व कुमावत को नहीं दिए जाने से नाराज 12 से अधिक ओबीसी जातियों ने एकजुट होना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि मूल ओबीसी जातियों ने दोनों प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को आंखें दिखाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और भाजपा में इन जातियों के प्रतिनिधियों का कहना है कि दोनों ही पार्टियों ने कभी इन जातियों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया, जिसके चलते यह जातियां सभी क्षेत्रों में पिछड़ती जा रही है। ऐसे में अब प्रदेश में ओबीसी जातियों को बिहार और उत्तरप्रदेश की तर्ज पर एकजुट होकर सियासी मुकाम पाने की कोशिश में है।

यह बनेंगे नए समीकरण

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मूल ओबीसी जातियों में प्रमुख माली और कुमावत व कुम्हार समाज अगले विधानसभा चुनावों में सपा, बसपा और आरएलपी के साथ जा सकते हैं। पिछले दो विधानसभा चुनावों में बसपा ने विधानसभा सीटें जीतकर साबित कर दिया है कि वह प्रदेश में तीसरे मोर्चे के रूप में उभर सकती है। बसपा ने शेखावाटी इलाके में अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है। कहा जा रहा है कि बसपा के विधायकों को दूसरी बार कांग्रेस में मिलाने से नाराज मायावती राजस्थान में पूरा जोर लगा सकती है और उनकी नजर एससी-एसटी, मुस्लिम के साथ-साथ ओबीसी जातियों पर भी रहेगी।

सपा को राजस्थान बुलाने की तैयारी

सूचना यह भी आ रही है कि मूल ओबीसी जातियां सपा को भी राजस्थान में बुलाने की तैयारी में है। ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव में सपा पूर्वी राजस्थान में अलवर, भरतपुर, दौसा, करौली, धौलपुर, टोंक जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती है। वहीं दूसरी ओर आरएलपी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल किसान नेता हैं और यह जातियां भी कृषक जातियां है, ऐसे में वह आरएलपी के साथ भी जा सकती है।

नुकसान उठाने के लिए भाजपा भी तैयार रहे

ओवैसी की राजस्थान में दस्तक से भाजपा में खुशी की लहर है, भाजपा का मानना है कि ओवैसी कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाएंगे, लेकिन यदि ओबीसी जातियों ने रुख बदला तो कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा को भी इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है, क्योंकि प्रदेश के वोटर अभी तक आधे-आधे कांग्रेस और भाजपा में बंटे हुए थे। ऐसे में यदि ओबीसी वोटर दूसरी पार्टियों की ओर रुख करते हैं, तो भाजपा को भी नुकसान तय है।

कांग्रेस के पूर्व सचिव ओम राजोरिया का कहना है कि चुनाव के समय ओबीसी जातियों पर वोट के लिए दबाव बनाया जाता है, लेकिन चुनाव होते ही पार्टियां ओबीसी समाज को भूल जाती है। इन समाजों को सत्ता और संगठन में भागीदारी नहीं दी जाती। इसके लिए तय किया गया है कि यह सभी जातियां मिलकर आवाज उठाएगी। हम अजमेर में कार्यक्रम कर चुके हैं, इसके बाद जयपुर में कार्यक्रम किया है। आगे इसे आंदोलन का रूप दिया जाएगा । मूल ओबीसी जातियों को भी उचित भागीदारी चाहिए, नहीं तो वह कोई दूसरे विकल्प की ओर विचार करेंगी।

कांग्रेस ओबीसी प्रकोष्ठ के संयोजक राजेंद्र सेन का कहना है कि ओबीसी जातियों को सियासत में प्रतिनिधित्व पर अभी तक जबानी जमा-खर्च चल रहा था, लेकिन आगे मूल ओबीसी जातियां कांग्रेस से हिसाब मांगने के लिए तैयार हो रही है। ओबीसी के नाम पर सिर्फ दो जातियों को ही टिकट क्यों दिया जा रहा है? इसका जवाब मूल ओबीसी जातियों को चाहिए। मूल ओबीसी जातियां शुरू से ही कांग्रेस समर्थित रही है। कांग्रेस को इन जातियों को सत्ता संगठन में उचित प्रतिनिधित्व देना चाहिए ताकि यह जातियां कांग्रेस से जुड़ी रहे।

भाजपा ओबीसी प्रकोष्ठ के अरुण कुसुम्बीवाल का कहना है कि मूल ओबीसी जातियों के साथ हो रहे अन्याय पर पीड़ा होती है। मूल ओबीसी जातियां शुरू से ही भाजपा को अपना समर्थन देती आई है, इसके बावजूद उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। ओबीसी जातियां चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाती आई हैं, ऐसे में उचित प्रतिनिधित्व चाहिए, नहीं तो दूसरे विकल्प उनके पास खुले हैं और देखा सिर्फ इतना भर जा रहा है कि दोनों मुख्य पार्टियों को छोड़कर किसके साथ जाने पर मूल ओबीसी जातियों को ज्यादा फायदा मिलेगा।

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