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सभी आयुवर्ग (all age groups) के कई बीमारियों से ग्रसित लोगों (co morbid) को भी लगे प्रिकॉशन डोज (precaution dose) : गहलोत

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) केंद्र सरकार से अपील की है कि को-मोर्बिड (co morbid/कई बीमारियों से ग्रसित) व्यक्तियों की स्थिति हर आयुवर्ग (all age groups) में मिलती है, अतः केवल 60 वर्ष से अधिक के को-मोर्बिड व्यक्तियों को ही नहीं सभी आयुवर्ग के लोगों को कोविड से बचाव के लिए प्रिकॉशन डोज लगाई जानी चाहिए। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चर्चा में जब बोलने का अवसर नहीं मिला तो उन्होंने ट्वीट कर अपने सुझाव साझा किये।

उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने आज (13 जनवरी 2022) कोविड की स्थिति को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की। इसमें केवल 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ही अपनी बात रखने का अवसर मिल सका। चर्चा में अवसर नहीं मिलने के कारण सोशल मीडिया के माध्यम से जनहित में कोविड प्रबंधन को लेकर अपने सुझाव साझा कर रहा हूं।

केन्द्र सरकार ने फिलहाल कोविड वैक्सीन की प्रिकॉशन डोज 60 साल से अधिक आयु के को-मोर्बिड व्यक्तियों को लगाने के निर्देश दिए हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक को-मोर्बिड की स्थिति हर आयु वर्ग में देखने को मिलती है इसलिए प्रिकॉशन डोज सभी के लिए उपलब्ध हो। दूसरी डोज के बाद प्रिकॉशन डोज के लिए 9 माह का अन्तराल रखा गया है, जो काफी अधिक है। इसे 3 से 6 माह किया जाना उचित होगा क्योंकि समय के साथ वैक्सीन का प्रभाव कम होने लगता है।

दुनिया के कई देशों में 2 साल की आयु तक के छोटे बच्चों को वैक्सीन लग रही है लेकिन भारत में फिलहाल 15 से 18 साल तक के किशोर वर्ग का वैक्सीनेशन हो रहा है। चूंकि हमारे देश के बच्चों में पोषण से संबंधित समस्याएं पहले से ही हैं। ऐसे में इतने बड़े मुल्क में छोटे बच्चों का वैक्सीनेशन जल्द शुरू होना जरूरी है।

प्रायः देखा जा रहा है कि लोगों में पोस्ट कोविड के रूप में अस्थमा, हार्ट, किडनी एवं ब्रेन स्ट्रोक से संबंधित तकलीफ एवं बीमारियां हो रही हैं। मुझे भी हार्ट ब्लॉकेज की समस्या होने के कारण एक स्टंट लगवाना पड़ा। बच्चों में भी पोस्ट कोविड की समस्याएं हो सकती हैं। जिसे मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेट्री सिंड्रोम इन चिल्ड्रन (एमएसआईसी) के रूप में जाना जाता है। इसमें मृत्यु दर बढ़ जाती है। इसे देखते हुए भी छोटे बच्चों का वैक्सीनेशन जल्द होना चाहिए।

दुनिया के विकसित राष्ट्रों में वैक्सीनेशन की गति काफी अधिक है जबकि अल्प विकसित एवं गरीब देशों में इसका प्रतिशत अपेक्षाकृत काफी कम है तथा सुनने में आता है कि वे इस पर होने वाले व्यय को वहन नहीं कर पा रहे हैं। यह चिंताजनक है क्योंकि किसी भी देश में यह महामारी रहने से पूरी दुनिया को खतरा बना रहेगा। उदाहरण के तौर पर पहली लहर का प्रभाव अधिक घातक नहीं था लेकिन दूसरी लहर में डेल्टा वायरस पूरे विश्व के लिए घातक सिद्ध हुआ। इसमें लाखों लोगों की जान चली गई। यह वायरस भारत से दुनिया के दूसरे मुल्कों में पहुंचा। इसी तरह से दक्षिणी अफ्रीका से आया ओमिक्रॉन वायरस विश्वभर में फैल चुका है। ऐसे में अंतिम व्यक्ति तक वैक्सीनेशन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

कोरोना वायरस का मिजाज जिस तरह से बदलता है, उस स्थिति में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा का व्यापक विस्तार जरूरी है। वर्तमान में देश में यह सुविधा नगण्य स्तर पर उपलब्ध है। संतोष की बात है कि राजस्थान में तीसरी लहर में हर सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग का प्रयास किया जा रहा है, जिससे हमें ओमिक्रॉन के बढ़ते केसों का पैटर्न पता चल सका है। अब तक की गई जीनोम सिक्वेंसिंग में 92 प्रतिशत केस ओमिक्रॉन से संक्रमित पाए गए हैं। भविष्य में किसी भी वैरिएंट का पता लगाने के लिए जरूरी है कि सभी राज्यों में वृहद स्तर पर जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा विकसित हो।

दुनिया के कई देशों में फाइजर, मॉडर्ना आदि कंपनियों की वैक्सीन को मान्यता दी गई है। देश में भी निजी क्षेत्र में इन्हें मान्यता दिया जाना उचित होगा। आर्थिक रूप से सक्षम लोग इसका उपयोग कर सकेंगे, इससे सरकार पर भी आर्थिक भार कम होगा।

गहलोत ने कहा, मुझे यह बताते हुए संतोष है कि राजस्थान में सीरो सर्विलांस करवाया गया, जिसमें 90 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है। यह इंगित करता है कि प्रदेश में कोविड संक्रमण की कम्यूनिटी स्प्रेडिंग होकर हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो चुकी है। फिर भी वैक्सीनेशन आवश्यक है, ताकि एंटीबॉडी और मजबूत हो जाए।

उन्होंने कहा, मुझे यह बताते हुए भी प्रसन्नता है कि हर वर्ग के सहयोग से राजस्थान का कोविड प्रबंधन पहली लहर से ही बेहतरीन रहा और दुनियाभर में इसे सराहा गया। अब राज्य में पिछले बजट की घोषणा के अनुरूप हमने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए 130 करोड़ रूपए की लागत से ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेडिसिन एंड वायरोलॉजी‘ की स्थापना का काम शुरू कर दिया गया है। इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे एवं स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, कोलकाता, दोनों की विशेषज्ञताओं एवं आधुनिकतम सुविधाओं का समावेश किया जा रहा है, जिससे भविष्य में वायरसजनित बीमारियों के अध्ययन एवं चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी और पूरे देश को इसका लाभ मिलेगा। यह राजस्थान की बड़ी उपलब्धि होगी।

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