लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए ने बहुमत का जादुई आंकड़ा (272 सीट) तो पार कर लिया लेकिन, भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनावों की तरह प्रदर्शन नहीं दोहरा सकी। हालांकि रविवार को पीएम मोदी और उनके जंबो मंत्रिमंडल ने शपथ ग्रहण कर ली लेकिन कुछ सवाल हवा में अब भी तैर रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि जन लोकप्रिय नेता पीएम मोदी जिनका प्रभाव या दबदबा, केवल भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में भी देखने को मिलता रहा है, इस बार के चुनावों में उनका पहले जैसा जादू आखिर इस बार क्यों नहीं चल पाया..? क्या यह स्वाभाविक प्रक्रिया है या फिर विदेशी ताकतों ने चुनावों में सीधे हस्तक्षेप कर इसमें कोई खेला किया है.. कम से कम सोशल मीडिया में और विशेषतौर पर विदेशी पश्चिमी देशों के मीडिया में बहुत से नकारात्मक समाचार प्रकाशित हुए। उनसे इस आशय के संकेत मिल रहे थे। लेकिन, अब ऐसी रिपोर्ट आ रही है, जिनसे लग रहा है कि इस चुनाव को विदेशी ताकतों ने प्रभावित करने की कोशिश की है।
एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र की न्यूजबेसाइट के अनुसार लोकसभा चुनाव में आखिरी चरण के मतदान से ठीक पहले चैटजीपीटी के निर्माता ‘OpenAI’ ने एक बड़ा दावा किया। इसमें कहा गया कि उसने भारतीय चुनावों पर केंद्रित सीक्रेट ऑपरेशन में एआई के भ्रामक इस्तेमाल को रोकने के लिए 24 घंटे में कार्रवाई की, जिससे इसका इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई। अपनी वेबसाइट पर एक रिपोर्ट में, ओपनएआई ने कहा कि इजराइल में एक पोलिटिकल कैंपेनिंग प्रबंधन फर्म STOIC ने गाजा संघर्ष के साथ-साथ भारतीय चुनावों पर कुछ सामग्रियां तैयार की थीं।
OpenAI ने के अनुसार ‘मई में, इस नेटवर्क ने भारत पर केंद्रित कमेंट्स तैयार करना शुरू कर दिया, जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की आलोचना की गई और विपक्षी कांग्रेस की प्रशंसा की गई। हालांकि, हमने भारतीय चुनाव शुरू होने के 24 घंटे से भी कम समय में उस पर केंद्रित कुछ गतिविधि को बाधित कर दिया।’ ओपनएआई ने कहा कि उसने इजराइल से संचालित अकाउंट्स के एक ग्रुप पर प्रतिबंध लगा दिया। इनका इस्तेमाल सोशल मीडिया साइट एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत दूसरी वेबसाइटों और यूट्यूब में फैले एक प्रभाव का संचालन करने के लिए सामग्री बनाने और एडिट करने के लिए किया जा रहा था।
उल्लेखनीय है कि इस अभियान ने कनाडा, अमेरिका और इजराइल के दर्शकों को अंग्रेजी और हिब्रू में कंटेट के साथ टारगेट किया। मई की शुरुआत में, इसने अंग्रेजी भाषा की कंटेंट के साथ भारत के दर्शकों को टारगेट करना शुरू कर दिया। इसने विस्तृत जानकारी नहीं दी।
रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा, ‘यह बिल्कुल स्पष्ट है कि @BJP4India कुछ भारतीय राजनीतिक दलों की ओर से या उनके प्रभाव संचालन, गलत सूचना और विदेशी हस्तक्षेप का लक्ष्य था और है। यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। भारत और बाहर निहित स्वार्थ स्पष्ट रूप से इसे चला रहे हैं और इसकी गहन जांच और पर्दाफाश करने की आवश्यकता है। ये प्लेटफॉर्म इसे बहुत पहले जारी कर सकते थे और चुनाव समाप्त होने में इतनी देर नहीं कर सकते थे।
एक अन्य प्रतिष्ठिट न्यूज बेवसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया साइट के एक यूजर अभिजीत मजूमदार ने अपनी एक पोस्ट में लिखा है कि इस चुनाव में सोशल मीडिया, हेनरी लुईस फाउंडेशन, सोरोस, सीआईए, यूएस डीप डिपार्टमेंट, क्रिस्टोफ जैफ्रोलॉट, एंड्रू ट्र्स्की और ग्लोबल फंडिंग जैसी ताकतों ने पीएम मोदी की जीत को रोकने की कोशिश की। अपने दावे के साथ मजूमदार ने डिसइंफो लैब (DisInfo Lab) के ट्विटर हैंडल से किए गए कई पोस्ट के थ्रेड्स भी रिट्वीट किए हैं। DisInfo Lab की इस रिपोर्ट का टाइटल ही है- एक्सोज्ड: मिलियन्स ऑफ डॉलर फंडेड टु इंपैक्ट इंडियन इलेक्शन रिजल्ट्स..! बता दें कि डिसइंफो लैब यूरोप की एक गैर सरकारी संस्था है जिसका दावा है कि वह पश्चिमी देशों में सूचनाओं से छेड़छाड़ कर प्रकाशित करने मीडिया संस्थाओं पर नजर रखती है और उसकी रिपोर्ट तैयार करती है।
इसमें कहा गया है कि हाल ही में संपन्न भारत के आम चुनाव को चीन से लेकर इजरायल तक से प्रभावित करने की कोशिश की गई। हालांकि इसमें वेस्टर्न पावर्स यानी यूरोपियन यूनियन से लेकर अमेरिका तक के हस्तक्षेप को लेकर कोई स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है।
DisInfo Lab के एक अन्य पोस्ट में लिखा गया है कि भारत के चुनाव के बारे में बेवजह हस्तक्षेप करने वाली रिपोर्टिंग देखी गई। ये अधिकतर रिपोर्टिंग नकारात्मक थी। इससे वेस्टर्न मीडिया के दोगलापन का पता चला। इससे इंटरनेट पर पूरी नैरेटिव बदल गई।
रिपोर्ट में वोटर्स के दिमाग को बदलने की कोशिश
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मीडिया आउटलेट्स को फंडिंग उपलब्ध करवाई गयी। वोटर्स के दिमाग को बदलने की पूरी कोशिश की गई और इसके खतरनाक किस्म के नैरेटिव गढे गए। इन सबके पीछे जो इंसान है उसका नाम है क्रिस्टोफ जैफ्रेलॉट (सीजे)। इसके साथ ही भारत को बांटने वाला कास्ट सेंसस (जातिगत जनगणना) का नैरेटिव भी फ्रांस से आया।
क्रिस्टोफ जैफ्रेलॉट को भारत के बारे में काफी कुछ लिखने-पढ़ने वाले इंसान के रूप में जाना जाता है। यहां तक कि भारत के इस लोकसभा चुनाव में फ्रांस का मीडिया कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहा था। ये सभी मीडिया क्रिस्टोफ जैफ्रेलॉट को बतौर एक विशेषज्ञ कोट किया करते थे।
अशोका यूनिवर्सिटी लाया जातिगत जनगणना का नैरेटिव
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि क्रिस्टोफ जैफ्रेलॉट के सहयोगी गिल्स वर्नियर्स ने अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेंटर ऑफ पॉलिटिकल डाटा के जरिए यह नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि राजनीति में कथित निचली जातियों के लोगों का प्रतिनिधित्व काफी कम है। इसमें कहा गया है कि क्रिस्टोफ जैफ्रेलॉट ने सितंबर 2021 में ‘कास्ट सेंसस की जरूरत’ शीर्षक से पेपर लिखा था। इसके बाद ही भारत की राजनीति में जाति जनगणना पर चर्चा शुरू हुई।
DisInfo Lab के पोस्ट में आगे कहा गया है कि कास्ट के मुद्दे पर अभी चर्चा चल रही थी कि क्रिस्टोफ जैफ्रेलॉट को अमेरिका की एक संस्था हेनरी लुईस फाउंडेशन से भारी फंडिंग मिली। इस फाउंडेशन की स्थापना टाइम मैग्जीन के फाउंडर हेनरी लुईस ने ही किया था। हालांकि, दिसंबर 2023 में भी भारत की मोदी सरकार के खिलाफ सोरोस के द्वारा साजिश रचने का आरोप लगाया था।
EXPOSÉ: Millions of $ funded to impact #IndianElection results!
Just concluded #loksabhaelections24 reported massive interference from China to Israel.
However, the most significant remains obscure – The Western interference: From EU to the US!
A thread: pic.twitter.com/X4GQf3YdSD
— DisInfo Lab (@DisinfoLab) June 3, 2024