प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की थी। इस आयोजन के अगले ही दिन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान हो गया। 48 घंटे के भीतर पहले कमंडल और फिर मंडल के दांव से क्या पीएम मोदी ने बिहार की राजनीति में बड़ा खेल कर दिया है?
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती है। कर्पूरी की जयंती पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से लेकर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) तक, सब अपने-अपने स्तर पर इसे लेकर आयोजन कर रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार के एक फैसले ने बिहार की सियासत में खलबली मचा दी। कर्पूरी की जयंती से कुछ ही घंटे पहले केंद्र सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। कर्पूरी ठाकुर नाई यानी हज्जाम जाति से आते थे जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आती है।
कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने के फैसले से केंद्र सरकार ने बिहार में पिछले 30 साल से पिछड़े और अति पिछड़ों की यानी ‘मंडल’ की राजनीति करने वाले आरजेडी प्रमुख लालू यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने जबरदस्त चुनौती पेश कर दी है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है मगर जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिनों के अंदर बैक टू बैक कमंडल और मंडल की राजनीति की है, उससे बिहार की राजनीति में जबरदस्त हलचल है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कैसे दो दिनों के अंदर कमंडल और मंडल की राजनीति करके अपने विरोधियों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है, यह चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल, 22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर का उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने सभी नियमों का पालन करते हुए धार्मिक अनुष्ठान किए, उसके जरिए कमंडल यानी अगड़ी जातियों को साधने की रणनीति, जनभावना को अपने पक्ष में करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में उमड़ रही भीड़, रामलला को लेकर आस्था का सैलाब देख कहा ये जाने लगा है कि बीजेपी को आने वाले चुनावों में इसका लाभ मिल सकता है। इसे इस बात पर मुहर की तरह भी देखा जा रहा है कि पीएम मोदी देश की जनभावना, जनता की इच्छा और आकांक्षा समझते हैं। वह सनातन आस्था के दांव से हिंदू वोट बैंक साधने में किस कदर कामयाब रहते हैं, यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन अब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया जाना कमंडल के बाद अब मंडल को बैलेंस करने की रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है।बिहार के ओबीसी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अब तक लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टियों के ही साथ रहा है। बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े आने, आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने के नीतीश के दांव से ऐसी चर्चा शुरू हो गई थी कि इसका फायदा महागठबंधन को 2024 के चुनाव में मिल सकता है। मगर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान से नीतीश और लालू के मंडल वोट बैंक को साधने की कोशिश की हवा निकलती नजर आ रही है।
गौरतलब है कि कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, उन्होंने प्रदेश में पिछड़े और अति पिछड़ों के विकास के लिए आवाज उठाई, कदम उठाए। 1990 के दशक में लालू और नीतीश ने भी कर्पूरी ठाकुर के इसी फार्मूले पर काम करते हुए पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत की और उसी के सहारे अब तक अपनी राजनीति को चमकाते आ रहे हैं। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरीके से दो दिनों के अंदर कमंडल और मंडल की राजनीति एक साथ कर दी है, उसे लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की व्यापक रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।