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पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को प्रोत्साहन खर्च की जिम्मेदारी को लेकर उलझीं केंद्र और पंजाब सरकार

दिवाली के बाद से दिल्ली में वायु गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है, जबकि पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं भी लगातार सामने आ रही हैं। यह स्थिति धान की कटाई के बाद पराली जलाने के मौसमी मुद्दे से जुड़ी है। इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र में बीजेपी सरकार और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार इस पर बहस में उलझी हैं कि किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए प्रोत्साहन देने का खर्च कौन उठाएगा। इस पराली प्रबंधन के मुद्दे पर इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने की संभावना है।
खबरों के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने पंजाब सरकार के उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है जिसमें किसानों को आर्थिक सहायता देने की बात कही गई थी। साथ ही, बीजेपी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार के अपने बजट से पराली प्रबंधन का उदाहरण देते हुए पंजाब के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली सरकार ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है।
पंजाब सरकार ने 19 अक्टूबर को केंद्र को एक नई योजना का प्रस्ताव दिया था, जिसके तहत किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन, ट्रैक्टर किराए पर लेने, और अन्य कृषि उपकरणों के लिए प्रति एकड़ 2,500 रुपये प्रोत्साहन राशि देने की बात कही गई है। इसका उद्देश्य किसानों को पराली जलाने से रोकना और वायु प्रदूषण कम करना है। इस योजना के लिए पंजाब सरकार ने केंद्र से 1,200 करोड़ रुपये की मांग की है, जबकि दिल्ली और पंजाब सरकार को 400 करोड़ रुपये का योगदान देने का सुझाव दिया है। योजना का कुल खर्च लगभग 2,000 करोड़ रुपये आंका गया है, जो 32 लाख हेक्टेयर धान क्षेत्र को कवर करेगा।
कृषि मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में अपने आवेदन में कहा है कि हरियाणा सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने बजट से प्रोत्साहन राशि दी है और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया है। इसके आधार पर मंत्रालय का मानना है कि पंजाब सरकार को भी अपनी वित्तीय जिम्मेदारी से इस योजना में योगदान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, कृषि मंत्रालय ने कहा कि यदि पंजाब राज्य सीआरएम (फसल अवशेष प्रबंधन) और एसएमएएम (कृषि मशीनीकरण उप-मिशन) के तहत केंद्र की सब्सिडी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करता, तो किसानों के बीच जागरूकता और संसाधनों का उचित उपयोग होता, जिससे अतिरिक्त प्रोत्साहन योजना की आवश्यकता न पड़ती।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से यह स्पष्ट हो सकता है कि पराली जलाने की इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें किस प्रकार की जिम्मेदारी साझा करेंगी और इसके आर्थिक बोझ का समाधान कैसे होगा।

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