जयपुर। राजस्थान के पुरातत्व विभाग में पोपाबाई का राज चल रहा है, इसकी एक बानगी यह भी है कि कोटा और झालावाड़ के अति प्राचीन मंदिर समूहों के जीर्णोद्धार कार्यों का दो साल में 50 से अधिक बार निरीक्षण किया गया, इसके बावजूद इन मंदिरों का मूल स्वरूप बिगड़ गया। अति प्राचीन मंदिरों के मूल स्वरूप बिगाड़ने के मामले में पुरातत्व निदेशक का मौन रहना, उनकी भूमिका भूमिका को संदिग्ध बना रहा है।
जानकारी में आया है कि पुरातत्व विभाग के उच्चाधिकारी इस मामले का दोष ठेकेदार के सर मढ़ने की फिराक में है। विभाग के सूत्र बता रहे हैं कि किसी भी काम में किस तरह की निर्माण सामग्री का उपयोग होगा, इसका उल्लेख जी-शेड्यूल में होता है। यदि यहां ठेकेदार ने गड़बड़ की है तो उच्चाधिकारियों को तुरंत नोटिस देकर ठेकेदार का काम बंद कराया जाना चाहिए था।
लेकिन, इन मंदिरों पर धड़ल्ले से काम चलता रहा। इस दौरान 50 से अधिक बार विभाग के इंजीनियरों और कोटा वृत्त अधीक्षक उमराव सिंह ने साइट का दौरा किया और इन सभी के निर्देशन में काम हुआ। किए हुए काम पर चार बार फीता डाल कर नाप-जोक की गई और एमबी भरी गई। ठेकेदार को रनिंग बिलों का भुगतान हुआ। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या उस समय विभाग के अधिकारियों गलत काम नहीं दिखा? यदि गलत काम हो रहा था और मूल स्वरूप बर्बाद हो रहा था, तो फिर उन्होंने काम पहले ही क्यों नहीं रुकवाया?
सूत्र कह रहे हैं कि विभाग के अधिशाषी अभियंता मुकेश शर्मा जिन्होंने इन कार्यों को बंद कराया, वह भी पूर्व में इस ठेकेदार का रनिंग बिल का भुगतान कर चुके हैं। वहीं शर्मा का कहना है कि उन्होंने इन कार्यों के एवज में कोई बिल पास नहीं किया। यह कार्य गलत हो रहा था इसलिए मैने तो इस कार्य को बंद कराया था।
निदेशक की भूमिका संदिग्ध
सूत्र बता रहे हैं कि पुरातत्व निदेशक पीसी शर्मा के संज्ञान में यह मामला शुरू से ही था। कहा जा रहा है कि उन्हीं के दबाव से यह कार्य बंद कराए गए। जब निदेशक को इस मामले की पूरी जानकारी थी तो फिर उन्होंने प्राचीन मंदिरों का मूल स्वरूप बिगड़ने पर कोटा वृत्त अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? क्यों नहीं उन्होंने इंजीनियरिंग शाखा के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की? आखिर क्या कारण रहे कि यह मामला शासन सचिव के संज्ञान में नहीं पहुंचा? इन सवालों के जवाब के लिए पीसी शर्मा से फोन पर संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव ही नहीं किया।
आखिर ऐसा क्या है इस कुर्सी में?
पुरातत्व विभाग के निदेशक की कुर्सी में आखिर ऐसी क्या बात है कि अधिकारी इस कुर्सी पर चिपके रहना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि विभाग के निदेशक पद पर दो दशक पूर्व तक विभाग के ही अधिकारियों को लगाया जाता था लेकिन उसके बाद यहां अधिकांश समय आरएएस अधिकारियों ने ही राज किया। उसके बाद एक आरएएस अधिकारी आठ सालों तक यहां चिपके रहे, बमुश्किल उनका तबादला हुआ और उसके बाद पीसी शर्मा यहां निदेशक बने।
कमीशन के फेर में स्मारकों को कर रहे बर्बाद
विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस समय विभाग में कमीशन के फेर में बड़े पैमाने पर प्राचीन धरोहरों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारी राजनीतिक पहुंच से आ रहे हैं। नियमानुसार तय समय से अधिक जमे रहने वाले अधिकारियों का तबादला हुआ, लेकिन वह भी राजनीतिक पहुंच लगाकर फिर से विभाग में आ जमे। कमाई वाले स्मारकों पर तय समय से अधिक समय तक जमे रहने के लिए भी पहुंच का इस्तेमाल किया जा रहा है।
राजनीतिक आकाओं को भी पहुंचानी है हिस्सेदारी
सूत्रों के अनुसार यही अधिकारी कमीशनबाजी के फेर में लगे हुए हैं। ठेकेदारों को धमकाया जा रहा है कि वह पहले से तय कमीशन के अतिरिक्त कमीशन दें। इसके पीछे कारण यह है कि जिस राजनीतिक पहुंच के कारण वे विभाग में आए हैं, उन राजनेताओं के पास भी हिस्सेदारी पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्हीं अधिकारियों पर है। इसी के चलते कुछ ठेकेदारों के काम बंद करा दिए गए। ऐसे में ठेकेदार विभाग छोड़कर दूसरे विभागों में जाने की सोचने लगे हैं। इससे पूर्व आमेर विकास प्राधिकरण के अधिकांश ठेकेदार भी काम छोड़कर स्मार्ट सिटी कंपनी में जा चुके हैं।