राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कृषि शिक्षा के अंतर्गत विभिन्न फसलों की उच्च गुणवत्तायुक्त किस्मों के विकास के साथ स्थान विशेष की जलवायु के अनुरूप अधिक उत्पादन की खेती का प्रसार किए जाने का आह्वान किया है। उन्होंने ऐसे शोध कार्यों (Research Work) में रुचि लेकर कार्य करने पर भी जोर दिया है, जिनसे किसानों को कृषि (Agriculture) से ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके। उन्होंने युवाओं को कृषि से अधिकाधिक जोड़े जाने के लिए कृषि प्रबन्ध के नवीन पाठ्यक्रमों की पहल किए जाने की भी आवश्यकता जताई।
मिश्र शनिवार को श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर के प्लेटिनम जुबली वर्ष के शुभारंभ समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कृषि में इस बात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि हम देखा-देखी विदेशी परियोजनाओं को ही नहीं अपनाएं बल्कि हमारी जलवायु, मिट्टी की उर्वरा शक्ति और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता के अनुरूप फसलों का अधिक उत्पादन लेने के प्रयास करें। उन्होंने कृषि शोध एवं अनुसंधान में भारतीय चिंतन और दृष्टि का अधिकाधिक समावेश किए जाने का भी आह्वान किया।
मिश्र ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों (Ancient indian Books) में कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां हैं। यहां के किसानों के पास खेती से जुड़े विरल अनुभव हैं। इन सबका समावेश करते हुए विद्यार्थी ऐसी शोध परियोजनाओं पर कार्य करें जिनसे भारतीय संस्कृति के अनुरूप कृषि विकास को गति मिल सके।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि पानी की कमी के कारण राजस्थान अकाल और सूखे की मार से जूझता रहा है, इन चुनौतियों के बावजूद प्रदेश में कृषि क्षेत्र में विकास के नए आयाम स्थापित हुए हैं। उन्होंने कहा कि इसी क्रम में प्रदेश में पांच कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना के साथ-साथ बड़ी संख्या में कृषि महाविद्यालय खोले गए हैं।
गहलोत ने कहा कि प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों को शिक्षण के साथ-साथ शोध पर भी विशेष ध्यान देना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि इन शोध कार्यों का लाभ किसानों को मिले। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में आईएआरआई, काजरी, सीएफटीआरआई जैसे उच्च कोटि के संस्थान स्थापित किए गए, जिन्होंने देश में कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य पालन के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है।