जयपुर नगर निगम में ठेकेदार बने हुए भ्रष्टाचार के वायरस
जयपुर। जयपुर के नगर निगमों (municipal corporation) का भगवान ही मालिक है, क्योंकि यहां ठेकेदारों (contractors) की फाइलें रुकते (stoppage ) ही धन की बरसात (Rain of money) होने लगती है। नगर निगमों में कई दशकों से ठेकेदार भ्रष्टाचार के वायरस बने हुए हैं। क्या अधिकारी और क्या जनप्रतिनिधि सभी के लिए यही लोग दलाली करते हैं। बस देरी सिर्फ ठेकेदारों की फाइलों को रोकने की रहती है, फाइल रोकने वालों को यह ठेकेदार धन की बरसात में भिगो डालते हैं।
एसीबी ने हाल ही में नगर निगम ग्रेटर में फाइनेंशियल एडवाइजर और उसके दो दलालों को गिरफ्तार किया है। यह पूरा मामला भी ठेकेदारों से ही जुड़ा हुआ था। इस मामले में पकड़े गए धन कुमार जैन को निगम में धन कुबेर के रूप में जाना जाता है। पहली बार एसीबी ने इन दोनों दलालों को पकड़कर निगम में गंदगी फैलाने वाली सबसे बड़ी मछलियों को पकड़ा है। निगम सूत्रों का कहना है कि धन कुमार लगभग दो दशकों से अधिक समय से निगम में ठेकेदारी का काम कर रहे हैं और निगम के वरिष्ठ अधिकारी हों या मेयर, डिप्टी मेयर, सभी से इनकी ट्यूनिंग काफी बेहतर रहती है। बीवीजी कंपनी से पहले निगम में सफाई के अधिकांश ठेके धन कुमार के नाम ही थे। ऐसे में एसीबी को धन कुमार जैन की दो दशकों की कुंडली को खंगाल लेना चाहिए, कई बड़े खुलासे हो सकते हैं।
दूसरे दलाल अनिल अग्रवाल निगम की ठेकेदार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष हैं। अग्रवाल का दलाली करते हुए पकड़ जाना साबित कर रहा है कि निगम के पूरे ठेकेदार भ्रष्टाचार और दलाली के खेल में लिप्त हैं। एसीबी पूर्व में भी कई बार निगम के ठेकेदारों को दलाली करते हुए रंगे हाथों पकड़ चुकी है। ऐसे में अब कई ठेकेदार एसीबी के निशाने पर आ चुके हैं। निगम सूत्रों का कहना है कि धन कुमार और अनिल अग्रवाल पिछले छह-सात सालों से एसीबी के निशाने पर थे, लेकिन पकड़ में अब आए हैं। एसीबी चाहे तो इन दोनों से ही निगम में भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े कारनामों को पकड़ सकती है।
फाइल रुकी, धन बरसा
नगर निगम के ठेकेदारों के काम से कोई वाकिफ ना हो, ऐसा हो नहीं सकता है। यदि किसी काम का लाख रुपए का टेंडर होता है, तो काम दस हजार का ही होता है। ऐसे में निगम में लगने वाले अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को पहले से ही पता हाता है कि धन कहां से आएगा। ऐसे में पद पर आते ही अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि सब ठेकेदारों की फाइलों को रोकने में जुट जाते हैं। फाइलें रुकते ही ठेकेदार अपने ही साथी दलाल ठेकेदारों के पास पहुंचते हैं। धन की बरसात होती है और सारे मामले पहले की तरह से चलने लगते हैं। ऐसा नगर निगम में पिछले कई दशकों से होता आया है। कोई भी महापौर बने या कोई भी सीईओ बने सबसे पहले ठेकेदारों की फाइलों में कमियां ढूंढने में जुट जाता है।
शुरू हुई रवानगी
मंगवार को कार्मिक विभाग ने नगर निगम ग्रेटर के अतिरिक्त आयुक्त का तबादला दूसरी जगह कर दिया है। इस तबादले पर भी सवाल उठ रहे हैं कि यह तबादला दंड स्वरूप किया गया है या फिर एसीबी की कार्रवाई से बचने के लिए अधिकारी ने अपनी सेटिंग का इस्तेमाल कर दूसरी जगह तबादला कराया है? निगम सूत्र इसके पीछे तर्क दे रहे हैं कि एफए के पास से बरामद डायरी में कई अधिकारियों के नाम सामने आ रहे हैं। ऐसे में अब निगम से कई अधिकारियों की रवानगी तय है।