जयपुर

आसमान से टपके, खजूर में अटके, जयपुर नगर निगम ग्रेटर समितियों के मामले में सरकार की कूटनीतिक जीत, गुटबाजी के कारण भाजपा सरकार को नहीं घेर पाई

जयपुर। सरकार की ओर से नगर निगम ग्रेटर की समितियों को रद्द करने के आदेश पर राजस्थान हाईकोर्ट ने रोक (स्टे) लगा दी है। आदेश आते ही महापौर सौम्या गुर्जर ने सोश्यल मीडिया पर मैसेज प्रसारित कर दिया कि ‘सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं। ‘ उधर, उप महापौर पुनीत कर्णावट ने भी सोश्यल मीडिया पर अपने मैसेज प्रसारित कर दिए लेकिन इस आदेश को कांग्रेस की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है।

निगम के जानकारों का कहना है कि समितियों के मामले में भाजपा पार्षदों के सामने आसमान से टपके, खजूर में अटके जैसी स्थिति हो गई है। हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश फिलहाल यथावत् रखा है, फैसला नहीं दिया है। यदि हाईकोर्ट फिर से समितियां बनाने को कहता या फिर हाईकोर्ट सरकार को कहती कि वह बोर्ड का सहयोग करें, तो इसे सरकार की हार माना जा सकता था और बोर्ड व समितियों को सहयोग करना सरकार की मजबूरी बन जाती।

फैसला आने में काफी वक्त लग सकता है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि सरकार का कार्यकाल पूरा होने तक कोई फैसला ही नहीं हो पाए। ऐसे में समितियां झुंझुने के सामान साबित होगी और चेयरमैन इस झुनझुने को बजाने को मजबूर रहेंगे, कोई काम कराने की हैसियत इनकी नहीं रहेगी।

इस स्टे के बाद कहने को तो समितियां क्रियाशील हो जाएंगी लेकिन वे काम नहीं कर पाएंगी। न तो समिति अध्यक्षों को वाहन व अन्य सुविधाएं ही मिल पाएंगी और न ही अधिकारी उनका कहा मानेंगे। भाजपा पार्षद सिर्फ अपने नाम के साथ चेयरमैन शब्द जोड़ कर खुश हो पाएंगे। ऐसे में अब इन समितियों को नाममात्र की समितियां कहा जा सकता है।

सरकार चाहती थी मामला न्यायालय में जाए
जानकारों का कहना है कि सरकार समितियों को भंग करने का आदेश निकाल कर भाजपा पार्षदों पर नजर रखे थी कि वे इसके खिलाफ क्या कदम उठाते हैं? भाजपा पार्षद न्यायालय की शरण में जाते या फिर से बोर्ड बैठक बुलाकर नई समितियां बनाते तो सरकार को कोई परेशानी नहीं थी। मामला न्यायालय में जाने के बाद वह लंबे समय तक लटका रहता और यदि बोर्ड बैठक बुलाकर फिर से समितियां बनाई जाती तो वह भी काम नहीं कर पाती क्योंकि अधिकारी सिर्फ सरकार का हुक्म बजाते, चेयरमैनों की नहीं सुनते।

इसी बात से था सरकार को डर
सरकार को एक ही डर था कि भाजपा पार्षद इस मामले को जनता के बीच नहीं लेकर जाएं। ऐसे में जिस दिन महापौर की ओर से हाईकोर्ट में मामला ले जाया गया, उसी दिन से सरकार मस्त हो गई। यदि मेयर इस मामले को जनता के बीच ले जाती और धरने-प्रदर्शन करती से सरकार की छीछालेदर होती और छवि पर प्रभाव पड़ने के साथ-साथ उन्हें जवाब देना भी भारी पड़ता लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

महापौर इसलिए गईं न्यायालय की शरण में
सूत्रों का कहना है कि न्यायालय की शरण में जाना महापौर की मजबूरी थी क्योंकि भाजपा पार्षदों में वे सर्वमान्य नहीं है। गुटबाजी के कारण भाजपा पार्षद टुकड़ों में बंटे हैं, जिसके कारण वह इस मामले को जनता के बीच ले जाने के लिए धरने-प्रदर्शन नहीं कर सकती थीं। यदि महापौर धरने-प्रदर्शन करतीं तो उन्हें पूरे पार्षदों का भी सहयोग नहीं मिलता।

इसकी बानगी स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर जयपुर नगर निगम ग्रेटर की ओर से निकाली जा रही साइकिल रैलियों में दिखाई दे रहा है, जहां महापौर की मौजूदगी के बावजूद आठ-दस से ज्यादा भाजपा पार्षद भी नहीं जुट पा रहे हैं। भाजपा पार्षदों में महापौर को लेकर भी नाराजगी है क्योंकि उन्होंने ‘एकला चालो रे’ की नीति अपना रखी है और काम के बजाय सिर्फ अपना चेहरा चमकाने में लगी हुई है। काम नहीं होने से पार्षद बेहद नाराज हैं।


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