रुद्राक्ष का ख्याल आते ही भगवान शंकर का स्मरण स्वतः ही होने लगता है। सावन व भादो के महीनो में शंकर भगवान की पूजा अर्चना और जलाभिषेक में पूरा संसार जब लीन रहता है तब रुद्राक्ष की महत्ता और बढ़ जाती है। रुद्राक्ष का अर्थ है – रूद्र का अक्ष , माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई थी। कई वर्षों तक तपस्या में लीन रहे भगवान शिव ने जब अपनी आँख खोली तब उनकी आँखों में से आँसू धरती पर गिरे। जहाँ पर भगवान शिव की आँख का आँसू गिरा था वहां एक रुद्राक्ष का पेड़ बन गया।
रुद्राक्ष के वृक्ष भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं। यह भारत के पहाड़ी क्षेत्रों तथा मैदानी इलाकों में मौजूद होते हैं। रुद्राक्ष नेपाल, बर्मा, थाईलैंड या इंडोनेशिया में भी पाए जाते हैं।रुद्राक्ष का पेड़ किसी अन्य वृक्ष की भांति ही होता है, इसके वृक्ष 50 से लेकर 200 फीट लंबे होते हैं तथा इसके पत्ते आकार में लंबे होते हैं ।
रुद्राक्ष की खासियत यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो आप पर ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है। रुद्राक्ष विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें से प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग मनोकामनाओं को पूरा करने की चमत्कारिक शक्ति रखता है। कहते हैं कि पूर्ण विधि-विधान और शिव के आशीर्वाद के साथ रुद्राक्ष को पहना जाए तो उसे पहनने मात्र से चिंताएं दूर हो जाती हैं।
जानिए विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष का महत्व और उपयोगिता
एक मुखी रुद्राक्ष एकमुखी रुद्राक्ष दुर्लभ है और यह धन-दौलत, यश और शक्ति प्रदान करता है। एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पहले ऊँ ह्रीं नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जाप 108 बार (एक माला) करना चाहिए । इसे धारण करने से आध्यात्मिक उन्नति, एकाग्रता और मनोबल में वृद्धि होती है।
दो मुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष को सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए धारण करना चाहिए। इसे धारण करते समय ॐ नम: का जाप करना चहिए। यह चंद्रमा के कारण उत्पन्न प्रतिकूलता के लिए धारण किया जाता है। उसकी ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है ।
तीन मुखी रुद्राक्ष तीन मुखी रुद्राक्ष व्यक्ति की हर इच्छा को पूरा करने का सबसे तेज माध्यम है । इसे अग्नि के समान बताया गया है|इसे पहनते समय ऊँ क्लीं नम: का जाप करना चाहिए। इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें। मंगल ग्रह की प्रतिकूलता के निवारण हेतु इसे धारण किया जाता है। यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली है। इसके धारण करने से श्री, तेज एवं आत्मबल मिलता है। यह सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ फल देने वाला है।
चार मुखी रुद्राक्ष रुद्राक्ष को ब्रह्मा का स्वरूप कहा जाता है। चारों वेदों का रूप माना गया है तथा इसे धारण करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने का मंत्र है ऊँ ह्रीं नम:। यह मंत्र 108 बार जपकर धारण करें। बुध ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसे धारण करना चाहिए। इसमें पन्ना रत्न के समान गुण हैं। सेहत, ज्ञान, बुद्धि तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक है।
पांच मुखी रुद्राक्ष पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। इसमें पुखराज के समान गुण होते हैं। इसका मंत्र है ऊँ ह्रीं नम:। सोमवार की सुबह मंत्र एक माला जप कर, इसे काले धागे में विधि पूर्वक धारण करना चाहिए। बृहस्पति ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसको धारण करना चाहिए। यह रुद्राक्ष सभी प्रकार के पापों के प्रभाव को भी कम करता है।
छ: मुखी रुद्राक्ष इस रुद्राक्ष को कार्तिकेय का रूप कहा जाता है। इसे धारण करने वाले पर माँ पार्वती की कृपा होती है। इसे धारण करने का मंत्र है ॐ ह्रीं हुम नम:। इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन इस मंत्र का एक माला जप करें। शुक्र ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य धारण करना चाहिए।
इसके गुणों की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं भुजा में धारण किया जाता है। इसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते हैं। गले में इसकी माला पहनना अति उत्तम है।
सात मुखी रुद्राक्ष सात मुखी रुद्राक्ष को अनंग बताया गया है वे लोग जिन्हें धन की हानि हुई है , उन्हें इस रुद्राक्ष को पहनना चाहिए। इसे धारण करने वाला प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। इसे धारण करने से पहले ऊँ हुं नम: का जाप करना चाहिए। हैं | इसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है।
यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए।
आठ मुखी रुद्राक्ष अष्टमुखी रुद्राक्ष भैरव महाराज का रूप माना जाता है। आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश और गंगा का अधिवास माना जाता है। जो लोग इस रुद्राक्ष को धारण करते हैं, वे अकाल मृत्यु से शरीर का त्याग नहीं करते हैं। वे लोग जो रोग मुक्त जीवन जीना चाहते हैं उनके लिए आठ मुखी रुद्राक्ष एकदम उपयुक्त है। इस रुद्राक्ष के लिए मंत्र है ॐ हुम नम:। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। इसकी तुलना गोमेद से की जाती है। इसे सिद्ध कर धारण करने से पितृदोष दूर होता है।
नौ मुखी रुद्राक्ष इस रुद्राक्ष को नौ देवियों का स्वरूप कहा जाता है। यह रुद्राक्ष महाशक्ति के नौ रूपों का प्रतीक है। जो लोग नौमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं, वे सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं। यह धर्म-कर्म, अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है। समाज में प्रतिष्ठा की चाह रखने वाले लोगों को नौ मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
इसका मंत्र है- ऊँ ह्रीं हुं नम:। इस मंत्र के साथ यह रुद्राक्ष धारण करें। केतु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। यह लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को प्रदान करता है।
दस मुखी रुद्राक्ष इसे विष्णु का स्वरूप माना जाता है।दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु तथा दसमहाविद्या का निवास माना गया है। यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है। जादू-टोने के प्रभाव से यह बचाव करता है। इसका मंत्र है- ॐ ह्रीं नम:। इसे धारण करने पर प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। यह एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये जाते हैं।
रुद्राक्ष धारण करने के कुछ नियम हैं।रुद्राक्ष धारण करने का दिन सोमवार हो तो श्रेष्ठ लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं । पहनने से पहले रुद्राक्ष को कच्चे दूध, गंगा जल, से पवित्र करें और फिर केसर, धूप और सुगंधित पुष्पों से शिव पूजा करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए।