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शौकिया चित्रकार से धुरंधर राजनेता तक: टेलीफोन से क्रांति लाए और बयानों से भूचाल

बात 1980 की है, दिल्ली के होटल ताज में अमेरिका से आया 38 वर्ष का एक युवा ठहरा था। वह शिकागो में अपनी पत्नी से फोन पर बात करना चाहता था, लेकिन बात नहीं हो सकी। खिड़की से बाहर उसने देखा कि लोग खराब टेलीफोन व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीय दूरसंचार की बदहाली देखकर उसने तय किया कि अब अमेरिका के बजाय अपने देश की टेलीफोन व्यवस्था में ही सुधार करेंगे।
उस युवक ने किसी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और भारत में दूरसंचार व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए करीब एक घंटे का प्रजेंटेशन दिया। उस युवक से प्रभावित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे अमेरिका से भारत आने के लिए कहा। यह युवा कोई और नहीं, बल्कि सैम पित्रोदा थे। वही सैम पित्रोदा, जिन्हें भारत में दूरसंचार और प्रौद्योगिकी क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है।
उन्होंने तीन प्रधानमंत्रियों- इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के साथ काम किया है। तीन पीढ़ियों से गांधी परिवार के सलाहकार रहे पित्रोदा को राहुल गांधी का राजनीतिक गुरु भी माना जाता है। लेकिन समय-समय पर की गई उनकी विवादित टिप्पणियां मोबाइल-टेलीफोन की तरंगों से भी कई गुना तीव्र गति से देश-दुनिया में फैल जाती हैं। अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के दूरसंचार इंजीनियर 81 साल के पित्रोदा के हालिया दो विवादास्पद बयानों ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है।
फैलाया एसटीडी-पीसीओ का जाल
वर्ष 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने उन्हें देश में दूरसंचार व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अपेक्षा पर खरे उत्तरते हुए पित्रोदा ने देशभर में एसटीडी-पीसीओ का जाल फैला दिया। हालांकि इस दौरान उन्हें नौकरशाही की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। राजीव गांधी की हत्या के बाद सैम अमेरिका चले गए। लेकिन वर्ष 2004 में जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने पित्रोदा को ज्ञान आयोग का अध्यक्ष बनाया।
सत्यनारायण से सैम बन गए
सैम पित्रोदा का पूरा नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा है। पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने टेलीविजन ट्यूनर बनाने वाली एक कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। उन्हें जब अपनी पहली सैलरी मिली, तो चेक में उनका नाम सैम लिखा हुआ था। उन्होंने इसकी शिकायत कंपनी का फाइनेंस देखने वाली महिला से की, तो उसने कहा, ‘तुम्हारा नाम बहुत लंबा है, इसलिए मैंने इसे बदलकर छोटा कर दिया है।’ काफी सोच-विचार के बाद सैम ने सोचा, नाम में क्या रखा है, हाथ में पैसे होने चाहिए। और फिर इस तरह से वह सत्यनारायण गंगाराम से सैम पित्रोदा बन गए।
जन्म व शिक्षा
17 नवंबर, 1942 ओडिशा के बोलांगीर जिले तीतलागढ़ गांव में एक गुजराती परिवार में जन्मे सैम के दादा बढ़ई और लोहार का काम करते थे। पिता ने गुजराती और अंग्रेजी सीखने के लिए उन्हें और उनके बड़े भाई मानेक को गुजरात के विद्यानगर में शारदा मंदिर बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। वडोदरा में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से फिजिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में एमएससी की डिग्री ली। फिर उच्च शिक्षा के लिए वह 1964 में अमेरिका गए और शिकागो में इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की। लेकिन जब देश की दूरसंचार व्यवस्था को सुधारने की बात आई, तो वतन लौट आए।
पारिवारिक जीवन
पित्रोदा के जीवन की कहानी भी थोड़ी दिलचस्प है। पित्रोदा जब महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में पढ़ते थे, तो उनके साथ अनु नाम की एक लड़की भी पढ़ती थी, जो बाद में उनकी जीवन संगिनी बनीं। बताया जाता है कि जब वह अपनी दोस्त अनु का हाथ मांगने के लिए उनके पिता के पास गए, तो उनके कुत्ते ने सैम को काट लिया और वह शादी की बात करना ही भूल गए। सैम अपने काम को लेकर काफी गंभीर और व्यस्त रहते हैं। वह किसी के जन्मदिन आदि की पार्टियों में भी नहीं जाते। 44 वर्षों तक उन्होंने कोई फिल्म नहीं देखी। वर्ष 1965 के बाद पहली बार उन्होंने 2009 में पूर्व रेलवे मंत्री दिनेश त्रिवेदी के साथ ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म देखी थी, जिसके लिए उनकी पत्नी अनु ने त्रिवेदी का आभार भी जताया।
विवादित बोल
– पूर्वी भारत के लोग चाइनीज, वैस्ट के लोग अरेबियन, नॉर्थ के लोग गोरों और साउथ के लोग अफ्रीकन जैसे दिखते हैं।
– अमेरिका का विरासत कर अच्छा है, भारत में भी इस पर चर्चा करनी चाहिए।
– जून 2023 में- भारत में हर कोई राम और हनुमान मंदिर की बात करता है। लेकिन बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं का समाधान नहीं खोजता।
– 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक पर सवाल उठाते हुए भारतीय वायुसेना द्वारा मारे गए लोगों के सबूत मांगे।
– 1984 के सिख दंगों को लेकर मई 2019 में कहा- जो हुआ, सो हुआ।
– संविधान बनाने में आंबेडकर से ज्यादा नेहरू का योगदान था।
– अप्रैल 2019 में कहा-मध्यम वर्ग को स्वार्थी नहीं होना चाहिए।

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