दिल्लीराजनीति

संयुक्त राष्ट्र को आत्मंथन की जरूरतः पीएम मोदी

संयुक्त के 75वें सत्र को किया संबोधित
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र को संबोधित किया। उन्होंने करीब 22 मिनट लंबे अपने भाषण के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को मजबूती के साथ उठाया। इसके अलावा उन्होंने लोककल्याणकारी योजनाओं के आधार पर भारत की ठोस छवि प्रस्तुत की। कोरोना महामारी को लेकर उन्होंने पूरी दुनिया को आश्वस्त किया कि सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश विश्व को इस संकट से निकालने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।
क्या संयुक्त राष्ट्र ने पर्याप्त प्रयास किए
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अगर हम बीते 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें, तो अनेक उपलब्धियां दिखाई देती हैं किंतु ऐसे अनेक उदाहरण भी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के सामने गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता खड़ी करते हैं। कहने को तो तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ किंतु इसे नकार नहीं सकते कि अनेक युद्ध और गृहयुद्ध भी हुए। कितने ही आतंकी हमलों में खून की नदियाँ बहती रहीं। इन युद्धों और हमलों में, जो मारे गए, वो हमारी आपकी तरह इंसान ही थे। वो लाखों मासूम बच्चे जिन्हें दुनिया पर छा जाना था, वो दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी, अपने सपनों का घर छोड़ना पड़ा। उस समय और आज भी, संयुक्त राष्ट्र के प्रयास क्या पर्याप्त थे?
कोरोना महामारी और संयुक्त राष्ट्र
पिछले 8-9 महीने से पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी से संघर्ष कर रहा है। इस वैश्विक महामारी से निपटने के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र कहाँ है ? एक प्रभावशाली रिस्पॉन्स कहाँ है ? संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं में बदलाव, व्यवस्थाओं में बदलाव, स्वरूप में बदलाव, आज समय की मांग है।
भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र के सुधार को लेकर जो प्रयास चल रहा है, उसके पूरा होने का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या ये प्रयास कभी तार्किक परिणति तक पहुंच पाएगा। आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने की प्रक्रिया से अलग रखा जाएगा। एक ऐसा देश, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, एक ऐसा देश, जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है, एक ऐसा देश, जहां सैकड़ों भाषाएँ हैं, सैकड़ों बोलियाँ हैं, अनेक पंथ और अनेक विचारधाराएँ हैं। जिस देश ने वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने और वर्षों की गुलामी, दोनों को जिया है। जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा ?
पूरी दुनिया एक परिवार
हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। यह हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को ही प्राथमिकता दी है। भारत जब किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, तो वो किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होती। भारत जब विकास की साझेदारी मजबूत करता है, तो उसके पीछे किसी साथी देश को मजबूर करने की सोच नहीं होती। हम अपनी विकास यात्रा से मिले अनुभव साझा करने में कभी पीछे नहीं रहते।
पैनडेमिक के इस मुश्किल समय में भी भारत के दवा उद्योग ने 150 से अधिक देशों को जरूरी दवाइयाँ भेजीं हैं। विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक देश के तौर पर आज मैं वैश्विक समुदाय को एक और आश्वासन देना चाहता हूं। भारत के वैक्सीन उत्पादन और वैक्सीन वितरण क्षमता पूरी मानवता को इस संकट से बाहर निकालने के लिए काम आएगी

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