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टाउन हॉल पर कब्जा बरकरार रखने के लिए पुरातत्व विभाग ने न्यायालय में पेश किए भ्रामक तथ्य

धरम सैनी
राजधानी की पुरानी विधानसभा ‘सवाई मानसिंह टाउन हॉल’ आम जनता और पर्यटकों के लिए सफेद हाथी साबित हो रही है। पिछले एक दशक में इसपर अरबों रुपए फूंक दिए गए, लेकिन अभी तक इसका कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है। पिछली सरकार ने भी आखिरी साल में इस इमारत में 100 करोड़ रुपए की लागत से राजस्थान धरोहर संग्रहालय खोलने का निर्णय लिया, लेकिन अभी तक यह पर्यटकों के लिए नहीं खुल पाया। कहा जा रहा है कि सरकार चुनावों में जूझती रही और अधिकारियों ने इसके संरक्षण में मोटा खेल कर दिया। यहां तक कि पुरातत्व विभाग के अधिकारी राजस्थान उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट को भ्रमित कर गलत तथ्य पेश करने से नहीं चूके।
टाउन हॉल को लेकर जयपुर के पूर्व राजपरिवार और सरकार के बीच स्वामित्व को लेकर विवाद चल रहा था। सूत्रों के अनुसार पुरातत्व अधिकारियों ने इस विवाद के दौरान राजस्थान उच्च न्यायालय में तमाम तरह के तथ्य पेश किए थे। साथ ही न्यायालय को बताया कि विभाग करोड़ों रुपए खर्च कर यहां विश्व स्तरीय संग्रहालय बना रहा है। जबकि विभाग का यह तथ्य भ्रामक था, जिसे न्यायालय में पेश किया गया। न्यायालय सबूतों ओर तथ्यों पर न्याय करता है, ऐसे में कहा जा सकता है कि पुरातत्व विभाग ने यहां न्याय को प्रभावित करने की कोशिश की।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहु्ंचा तो वहां भी विभाग ने भ्रामक तथ्य पेश किया कि इस इमारत में पुरातत्व विभाग का निदेशालय बनाया जा रहा है। विभाग का यह सरासर गलत तथ्य रहा और इसने भी इस मामले में न्याय को प्रभावित करने में भूमिका निभाई होगी। यह बात हम इस लिए कह रहे हैं क्योंकि विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले से पूर्व अचानक एक आदेश जारी किया और कहा कि 18 सितंबर से पुरातत्व निदेशालय का पता सवाई मान सिंह टाउन हॉल, पुरानी विधानसभा, हवामहल परिक्षेत्र हो जाएगा। इसके बाद टाउन हॉल के बाहर पुरातत्व निदेशालय का बोर्ड लगा दिया गया, लेकिन अभी एक कील भी यहां शिफ्ट नहीं हुई है। निदेशालय बदस्तूर अल्बर्ट हॉल में चल रहा है। जो साबित करता है कि अधिकारियों ने बदनियती से न्याय को प्रभावित करने के लिए यह आदेश निकाला और न्यायालय में पेश किया, हकीकत से इस आदेश का कोई लेना—देना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट को बताया करोड़ों का काम
सूत्रों के अनुसार विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में यह तथ्य पेश किया कि टाउन हॉल में विश्वस्तरीय संग्रहालय बनाने के लिए प्रस्तावित बजट में से आधे के लगभग खर्च किया जा चुका है। जानकारों का कहना है कि विभाग का यह तथ्य भी गलत है। अगर यहां काम हो चुका था, तो फिर संग्रहालय खुला क्यों नहीं? यहां हुए निर्माण कार्यों में भारी भ्रष्टाचार हुआ है और जो भी सामग्रियां खरीदी गई है, वह वास्तविक कीमत से अधिक है। अंदरखाने यह भी चर्चा है कि पुरातत्व विभाग एडमा से इस संपत्ति को अपने पास नहीं ले रहा है। जबकि एडमा बार—बार टाउन हॉल को विभाग के पजेशन में लेने आग्रह कर रहा है।
हकीकत यह
—कोर्ट में गतल तथ्य पेश करने के लिए थोड़ा काम कराया गया और उसमें भी भारी भ्रष्टाचार किया गया है।
—एक हॉल और लॉन को तैयार कर संग्रहालय का पिछली सरकार ने उद्घाटन कर दिया।
—यहां एक भी गैलरी तैयार नहीं हो पाई है, जिसे पर्यटक देख सकें। आज भी यह संग्रहालय बंद पड़ा है।
—संग्रहालय विश्वस्तरीय संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए पुरातत्व विभाग के विभिन्न गोदामों से दोयम दर्जे की उन सामग्रियों को दिखावे के लिए यहां लाया गया, जो प्रदर्शन के लायक भी नहीं है। यह कारनामा सिर्फ न्यायालय को भ्रमित करने के लिए किया गया।
— विश्वस्तरीय संग्रहालय के लिए पार्किंग की अभी तक कोई व्यावस्था नहीं की गई है। इसके बिना संग्रहालय का संचालन नामुमकिन है।
—संग्रहालय के संरक्षण में पुरातत्व नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गई और सीमेंट व अन्य आधुनिक निर्माण सामग्रियों का जमकर उपयोग हुआ, जिससे इसका मूल स्वरूप बिगड़ गया है।
दोषी अधिकारी
इस मामले में संग्रहालय निर्माण के लिए बनी कमेटी में शामिल अधिकारियों और निर्माण कार्य कर रही आमेर​ विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण ‘एडमा’ के अधिकारियों, निर्माण कार्य में लगे अधिशाषी अभियंता की भूमिका की जांच बेहद जरूरी है। नई सरकार बनने के बाद सरकार को इस मामले में पूरी जांच करानी चाहिए। इस प्राचीन इमारत के मूल स्वरूप के साथ हुए खिलावाड़ को देखते हुए राज्य सरकार को किसी निष्पक्ष एजेंसी या केंद्रीय सरकार के अधीन एएसआई से भी इसकी जांच करानी चाहिए। ताकि पुरातत्व विभाग और एडमा की ओर से प्रदेशभर के प्राचीन स्मारकों के साथ हो रहे खिलवाड़ पर लगाम लग सके। इस मामले में पुरातत्व अधिकारियों का पक्ष जानने की कोशिश की गई, लेकिन न तो पुरातत्व निदेशक और न ही एडमा के अधिशाषी अभियंता ने इस संबंध में कोई जवाब दिया।

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