इस वर्ष होली 24 मार्च की थी और 25 मार्च को रंग खेला गया था। होली के सात या आठ दिन के बाद शीतला पूजन की परंपरा रही है। इस दिन को भारत के लोग शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी के नाम से मनाते हैं। इसे त्योहार को बास्योड़ा या बासौड़ा भी कहा जाता है। इसका कारण है कि इस त्योहार पर जो व्रत रखते हैं वे शीतला माता को भोग चढ़ाकर ठंडा भोजन ही करते हैं। चूंकि मंगलवार को गर्मवार माना जाता है इसलिए लोग होली के सात दिनों के बाद जो भी ठंडा वार आता है उसी दिन शीतला माता का पूजन करते हैं। इस बार 2 अप्रेल को मंगलवार है इसलिए शीतला माता पूजन सोमवार 1 अप्रेल को किया जा रहा है। पूजन के दिन से एक दिन पहले ही रांधा पुआ त्योहार मनाया जाता है यानी इस दिन शीतला माता के पूजन के लगने वाले भोग की तैयारी की जाती है। इस बार रांधा पुआ रविवार को मनाया जा रहा है। चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 01 अप्रैल 2024 को रात्रि 09:09 बजे शुरू होगी, जो 02 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:08 बजे तक रहेगी।
दरअसल, शीतला सप्तमी पूजन का समय शीत ऋतु के जाने और ग्रीष्म ऋतु के आने का संकेत देने वाला समय है। इस दौरान मौसमी बीमारियां होने की आशंका प्रबल हो जाती है। मान्यता है कि. शीतला सप्तमी या अष्टमी पर ठंडा खाना खाने से हमें मौसमी बीमारियों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। चूंकि गर्मी बढ़ जाती है इसलिए शीतला माता के पूजन के बाद बासा भोजन करना बंद कर दिया जाता है। केवल वही ठंका भोजन लिया जाता है जो शरीर के लिए लाभप्रद होता है। उदाहरण के तौर पर शीतला माता का पूजन करने वाले इस दिन से जो की राबड़ी का इस्तेमाल करते हैं। ठंडा पानी विशेषतौर पर घड़े का ठंडा पानी पीना शुरू कर देते हैं।
क्यो मनाते हैं शीतला सप्तमी या अष्टमी और क्या है कथा
एक बार शीतला माता ने धरती पर आने का निर्णय लिया और धरती पर आते ही माता ने एक बुजुर्ग महिला का रूप ले लिया। घूमते-घूमते वो शीतला माता राजस्थान के डूंगरी गांव में पहुंची और इधर-उधर की गलियों में घूमने लगीं। माता गलियों में घूम रही थी कि तभी अचानक से उनके ऊपर किसी महिला ने चावल का उबलता हुआ पानी डाल दिया। उबला हुआ पानी डालने के कारण शीतला माता की शरीर में छाले निकल आए, जिसके कारण शीतला माता को बहुत जोर से जलन होने लगी और पूरे शरीर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। इस कारण शीतला माता गलियों में सभी के पास गई और कहने लगी मेरी मदद करो, मेरे ऊपर किसी ने गर्म पानी डाल दिया है, जिसके कारण मेरे पूरे शरीर में असहनीय पीड़ा हो रही है कोई मेरी मदद करो।
किसी ने भी शीतला माता की मदद नहीं की और सभी ने उनको अनदेखा कर दिया। लेकिन, थोड़ी दूर चलने के बाद जब शीतला माता एक कुम्हार के पास पहुंची तो उस कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता को देखा कि इनके शरीर में तो बड़े-बड़े छाले पड़े हैं और माताजी ने कुम्हार की पत्नी से कहा मेरी मदद करो, मेरे शरीर में असहनीय पीड़ा हो रही है और बहुत तेज जलन हो रही है। जिसके बाद कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता को अपने पास बुलाया और उनसे कहा मां जी आप यहां बैठ जाइए। फिर कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता पर एक मटके से ठंडा पानी डाला, जिससे उनको जलन में थोड़ी शांति प्रदान हुई। जिसके बाद कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता से कहा मा जी मेरे घर में राबड़ी और दही रखा है, जो कल रात का है। कृपया आपको इसको खा लीजिए, जिसके बाद शीतला माता जी कुम्हार की पत्नी के दिए हुए रात के बासी खाने को खाया।
राबड़ी खाने के बाद माता को दर्द में आराम मिल गया। जिसके बाद कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता से कहा कि मां जी आपके बाल तो चारों तरफ से बिखर गए हैं, लाइये मैं आपके बाल को बांध देती हूं। जैसे ही कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता के बालों को कंघी करना और बालों को बांधना शुरू किया तो उसने देखा कि उस बुजुर्ग महिला के पीछे भी एक आंख है, जिसको देखकर कुम्हार की पत्नी बहुत डर गई और वहां से भागने लगी। तभी शीतला माता ने कुम्हार की पत्नी को रोका और उनसे कहा कि तुम मुझसे डरो नहीं मैं शीतला माता हूं। मैं यहां देखने आई थी, यहां पर मेरी कौन-कौन पूजा करता है और ऐसा बोल कर शीतला माता अपने असली रूप में आ गई। जिसके बाद कुम्हार की पत्नी ने जैसे ही शीतला माता को असली रूप में देखा तो वह तुरंत शीतला माता के पास गई और कहने लगी माता मैं आपको अपने घर में कहां पर बिठाऊं, मेरे घर के चारों तरफ तो गंदगी फैली हुई है और बैठने तक की जगह नहीं है।
इसके बाद शीतला माता उस कुम्हार की पत्नी के पाले हुए गधे पर बैठ गई और फिर उन्होंने कुम्हार के घर की साफ सफाई कर कुम्हार के घर की दरिद्रता को एक डलिया में भरकर बाहर फेंक दिया। फिर, शीतला माता ने उस कुम्हार की पत्नी से खुश होकर कहा कि मांगो तुम्हें जो वरदान मांगना हो, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। तभी कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता से कहा माता आप हमें वरदान के रूप में इतना दीजिए कि आप हमारे राजस्थान के डूंगरी गांव में ही निवास करें और जो भी मनुष्य सप्तमी और अष्टमी को आपकी पूजा करें, व्रत रखें और आपको ठंडे भोजन से भोग लगाएं, आप उनके घर की गरीबी भी खत्म करें और जो भी महिला आपकी पूजा सच्चे मन से करें तो आप हमको अपना आशीर्वाद दें और सभी लोगों को रोग से मुक्त करें।
कुम्हार की पत्नी की बात मान कर कहा तथास्तु तुम्हारा यह वर जरूर पूरा होगा। फिर शीतला माता ने कुमार की पत्नी से कहा कि तुम अपने घर में इस घड़े के पानी को चारों ओर से छिड़क लेना क्योंकि कल पूरे गांव में आग लगेगी। लेकिन, तुम्हारे घर में नहीं लगेगी। जिसके बाद कुम्हार की पत्नी ने शीतला माता की बात मानकर घड़े के पानी को अपने घर के चारों ओर छिड़क लिया। जब अगला दिन शुरू हुआ तो सबके घर में आग लग गई, लेकिन कुम्हार के घर में आग नहीं लगी। यह देखकर सभी लोग आश्चर्य चकित हो गए और वह सभी लोग राजा के पास गए। उनको सारी बात बताई कि हमारे घर में आग लगी है और कुम्हार के घर में आग नहीं लगी है। राजा भी यह सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हो गया। जिसके बाद राजा ने अपने सेवक को भेजकर उस कुम्हार की पत्नी को अपने दरबार में बुलवाया।
जब कुम्हार की की पत्नी राजा के दरबार में पहुंची है तब राजा ने उससे पूछा कि तुम्हारे घर को छोड़कर बाकी सभी घर में आग कैसे लगी है, तुम्हारे घर में आग क्यों नहीं लगी। तब कुम्हार की पत्नी ने बताया कल मेरे घर में शीतला माता आई थीं और उन्हीं की कृपा से ऐसा हुआ है। यह सुनकर राजा और सभी गांव वाले एकदम स्तब्ध रह गए। फिर राजा ने पूरे गांव में सभी लोगों से कहा आज से सभी लोग शीतला माता की पूजा करेंगे और तभी से डूंगरी गांव का नाम शीत की डूंगरी पड़ गया और राजस्थान में शीतला माता का बहुत बड़ा मंदिर बनाया गया है, जहां पर हर साल मेला लगता है, बहुत सारे लोग मेले में आते हैं।
ऐसे करें पूजा-अर्चना
स्कन्द पुराण में माता शीतला की अर्चना का स्तोत्र ‘शीतलाष्टक’ के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शंकर ने की थी। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है। मंत्र है-
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्
इस मंत्र का जाप 21 या 51 बार करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि शीतला माता को चेचक और बहुत से रोगों की देवी बोला जाता है, जिन लोगों को चेचक जैसे रोग हो जाते हैं, उनको शीतला माता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। शीतला माता की पूजा करने के लिए सभी को उठ कर अपने पानी में गंगा जल मिलाकर, उससे स्नान करना चाहिए और स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। फिर पूजा करने के लिए एक थाली में सप्तमी के दिन की बनी खीर नमक व बाजरा की बनी रोटी मठरी रखें। दूसरी थाली में आटे के बने दीपक, रोली वस्त्र, चावल और एक लोटे में ठंडा जल भी रखें। फिर शीतला माता की मूर्ति को स्नान करवाए और उसके बाद हल्दी और रोली से उनको टीका लगाए। थाली में रखी सभी वस्तुएं,उनको अर्पण करें और फिर एक दीपक को बिना जलाएं रखें। उनको भोग लगाएं और उनकी आरती गाएं।