पूर्व मुख्य सचिव ने देखा तो स्मार्ट सिटी सीईओ को की शिकायत, कंपनी के अधिकारियों को आया होश, गलत काम को कराया दुरुस्त
वर्ल्ड हेरिटेज सिटी जयपुर के बफर जोन में इंडो सारासेनिक स्टाइल में बनी प्राचीन इमारत किंग एडवर्ड मेमोरियल (King Edward Memorial) यानी यादगार के मूल स्वरूप (original form)से छेड़छाड़ का गंभीर मामला एक बार फिर सामने आया है। पूर्व मुख्य सचिव ने इसकी शिकायत की, लेकिन कंपनी अधिकारी कह रहे हैं कि उन्हें कोई शिकायत प्राप्त ही नहीं हुई है।
निर्माण के समय से ही यादगार की पहली मंजिल पीले रामरज रंग से रंगी थी लेकिन यहां चल रहे ट्रैफिक पुलिस कार्यालय के अधिकारियों ने करीब तीन वर्ष पूर्व इस पर गुलाबी रंग पुतवा दिया था। यह मामला यूनेस्को तक पहुंचा और सरकार ने जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी (Smart city company) के जरिए इस इमारत को फिर से मूल स्वरूप में लाने की कवायद शुरू की लेकिन लापरवाह कंपनी अधिकारियों और ठेकेदार ने मूल स्वरूप बनाने के बजाए बिगाडऩा शुरू कर दिया।
निर्माण के समय से ही इमारत पर तीन नामपट्ट बने हुए हैं, जिनपर इमारत का नाम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में लिखा है। इनमें दो नामपट्ट चूने पर अराइश कर बने थे, जिनका रंग सफेद था, लेकिन ठेकेदार ने इमारत के साथ इनको भी पीले रंग से रंग दिया। इमारत पर रंग करने का काम इतने घटिया तरीके से किया गया कि यहां भूतल पर लगे आमागढ़ के ठेबेदार पत्थरों पर भी रंग पोत दिया गया।
पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व में राजस्थान हेरिटेज डवलपमेंट एंड मैनेजमेंट अथोरिटी (रहडमा) के अध्यक्ष रह चुके एस. अहमद ने इस गलत काम को देखा तो उन्होंने सीधे स्मार्ट सिटी कंपनी के सीईओ अवधेश मीणा को इन गलतियों की शिकायत की। अहमद ने यहां किए गए पीले रंग पर आपत्ति उठाई थी, क्योंकि यह मूल रामरज रंग नहीं है। अहमद की शिकायत के बाद मीणा ने कंपनी के इंजीनियरों और ठेकेदारों की खिंचाई की तो ठेकेदार ने तुरत-फुरत में यहां पैड़ा बांधकर नामपट्ट से पीला रंग तो हटवा दिया, लेकिन ठेबेदार पत्थर अभी भी रंग से पुते हुए हैं, न जाने उन्हें कब सही कराया जाएगा?
क्लियर न्यूज ने उठाया था मुद्दा
क्लियर न्यूज डॉट कॉम ने सबसे पहले यादगार इमारत को फिर से मूल स्वरूप में लाने का मामला उठाया था। क्ल्यिर न्यूज ने 13 मई 2021 को ‘क्या बदलेगी जयपुर के किंग एडवर्ड मेमोरियल इमारत की सूरत? वर्ल्ड हेरिटेज सिटी के बफर जोन में आ रही इस इमारत का बदल दिया गया था मूल स्वरूप’खबर प्रकाशित कर इस इमारत को फिर से मूल स्वरूप में लाने की पैरोकारी की थी। यह मामला यूनेस्को तक भी पहुंचा और यूनेस्को के दबाव में सरकार ने स्मार्ट सिटी कंपनी के जरिए इमारत को मूल स्वरूप में लाने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन कंपनी के अधिकारी विरासत संरक्षण कार्यों के जानकार नहीं है और ठेकेदार अधिकारियों की अज्ञानता का फायदा उठाकर गलत कार्यों में लगे हैं।
यह था इमारत का मूल स्वरूप
यह इमारत ठेबेदार पत्थरों से बनी हुई है और मुख्य दरवाजे, खिड़कियों पर गढ़ाई वाले पत्थर लगे हैं। छज्जों के नीचे गढ़ाई वाली टोडियां लगी है। इमारत के छज्जों और सबसे ऊपर पैराफिट पर पीला रामरज रंग निर्माण के समय से ही चला आ रहा था। ऐसे में जरूरी है कि जिन पत्थरों की दीवारों पर गुलाबी रंग पोता गया है, उसकी सफाई कर पत्थरों को फिर से निकाला जाए। खिड़कियों, रोशनदान, छज्जों और पैराफिट पर पीला रामरज रंग कराया जाए।
यह है इंडो सारासेनिक स्टाइल
अंग्रेजों के देश आने के बाद उत्तर भारत में इमारतों के निर्माण प्रचलित राजपूत शैली में ब्रिटिश स्थापत्य का भी समावेश हुआ था। राजपूत और ब्रिटिश स्थापत्य के समावेश से बनी इमारतों को ही इंडो सारासेनिक स्टाइल कहा जाता है। जयपुर में किंग एडवर्ड मेमोरियल के अलावा अल्बर्ट हॉल, राजस्थान विश्वविद्यालय की मुख्य इमारत, महाराजा कॉलेज, सचिवालय भवन, एजी ऑफिस समेत कई इमारतें इसी स्टाइल में बनी हुई है।
जयपुर में इमारतों के रंग का इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि 1876 से 78 के बीच जयपुर शहर की इमारतों का रंग एक साथ बदला गया। जयपुर के पूर्व महाराजा रामसिंह लखनऊ गए थे। उन्होंने शहर में पीले और गुलाबी रंग से रंगी इमारतें बहुतायत में मिली। रामसिंह को इमारतों को रंगने का यह पैटर्न काफी पसंद आया। उस समय जयपुर में सभी इमारतें सफेद रंग की हुआ करती थी। लखनऊ से लौटने के बाद रामसिंह ने जयपुर में रह रहे अंग्रेज हेल्थ ऑफिसर टीएच हैंडले से शहर की इमारतों को एक रंग में रंगने पर चर्चा की।
रामसिंह ने हैंडले को निर्देश दिए कि रंग ऐसा हो जो आंखों को नहीं चुभे। चांदपोल में कई इमारतों को हरे रंग से रंगा गया लेकिन वह उन्हें पसंद नहीं आया। कुछ इमारतों पर पीला रामरज रंग रंगा गया। कई अन्य रंग भी बदल कर देखे गए और अंत में सफेदी में हिरमिच मिलाकर बनाए गए गेरुए रंग को फाइनल किया गया। दीपावली से पहले शहर में ढोल बजाकर मुनादी कराई गई कि लोग अपने निजी भवनों को गेरुए रंग में रंग लें।
‘मैने यहां गलत काम होते देखा। मूल स्वरूप बनाने के बजाए यहां मूल स्वरूप को ज्यादा बिगाड़ा जा रहा था। इमारत की नेम प्लेटों को बदरंग किया गया था, आमागढ़ के पत्थरों पर भी रंग लगा दिया गया, क्या यहां काम कर रहे लोगों को कलर कॉम्बिनेशन और नेचुरल स्टोन वॉल के रख-रखाव का ज्ञान नहीं है।’
एस. अहमद, पूर्व मुख्य सचिव राजस्थान
‘हमारा काम एकदम परफेक्ट है। हमारे पास गलत काम या मूल स्वरूप से छेड़छाड़ की कोई शिकायत नहीं आई है।‘ एल.एन. साहनी, अधिशाषी अभियंता, जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी