जयपुरधर्म

आज है गुरु पूर्णिमा, ऐसे करें गुरुओं का वंदन और पूजन

रविवार, 21 जुलाई 2024 को दोपहर 03:46 तक बजे तक पूर्णिमा रहेगी। यह कोई साधारण बल्कि गुरुपूर्णिमा है। भारतीय परंपरा में इस गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को जीवन में सफलता की राह दिखाने के लिए धन्यवाद देते हैं और उनका पूजन करते आए हैं। सवाल उठता है कि इस दिन को हम किस तरह से मनाएं और अपने गुरु का वंदन करें..
हमारे यहां सुप्रसिद्ध श्लोक है..
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः:।।
अर्थात् गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही महादेव है। गुरु साक्षात् भगवान है, ऐसे श्री गुरु को प्रणाम है।और अधिक सरल शब्दों में कहें तो.. गुरु निर्माता है, गुरु पालनहार है, गुरु ही संघारक है। गुरु ही परमात्मा है, ऐसे महान गुरु को नमन है।
इसके अलावा गुरु के लिए यह भी कहा गया है..
*ध्यान मूलं गुरुर् मूर्तिः, पूजा मूलं गुरुर् पदम्;
मंत्र मूलं गुरोर वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरोर कृपा ।*

अर्थात् ध्यान का मूल आधार गुरु का स्वरूप है। भक्ति का मूल आधार गुरु के चरण हैं। मंत्र का मूल आधार गुरु के शब्द हैं। गुरु की कृपा से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है, वही मोक्ष के स्रोत या आधार हैं।
गुरु शब्द दो वर्णों से मिलकर बना है, इसमें ‘गु’ का अर्थ अन्धकार होता है और ‘रु’ का अर्थ प्रकाश होता है। गुरु अज्ञानता रूपी अन्धकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। एक शिष्य को अपने गुरु के प्रति दृढ़ विश्वास होता है। शिष्य अपने गुरु के सानिध्य में या उनके आशीर्वाद की छाया में निश्चिंत रहता है, उसे किसी तरह का डर भय नहीं होता।
गुरु अपने शिष्य को सकारात्मक बनना या बने रहना सिखाता है। गुरु एक वो इंसान है जो प्रति पल चाहता है कि उसका शिष्य निरंतर प्रगति करता रहे। गुरु अपने शिष्य की हर उस समस्या के साथ होता है जिसकी वह किसी भी अन्य व्यक्ति से चर्चा तक नहीं कर पाता।
अतः गुरु पूर्णिमा का दिन (रविवार, 21 जुलाई 2024 को ) उस गुरु के प्रति अपना धन्यवाद देने का है, गुरु के प्रति समर्पण का है। आप अपने गुरु से मिलिए, अपने सामर्थ्यानुसार गुरु का पूजन कीजिए और उचित आदर सत्कार से उनके प्रति अपने समर्पण को व्यक्त कीजिए।
अगर आप दूर किसी जगह रहते है तो अपने गुरु के चित्र या उनकी मूर्ति पूजन कीजिए और उनसे दूरसंचार माध्यम से बात करके आशीर्वाद प्राप्त कीजिए। यदि अब तक आपके गुरु नहीं हैं या फिर गुरु ब्रह्मलीन हो चुके हैं तो आप उनके पूजन स्थान अथवा उनके आश्रम तक पहुंचे अन्यथा किसी भी मन्दिर जाइए, अपने इष्ट देव का विधिवत् पूजन कीजिए।

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