कारोबारखेलमुम्बई

सनी की सुनहरी फिफ्टी (50), ऐसे ही शतक भी पूरा करें, यही कामना!

भारतीय क्रिकेट आज बड़े ऊंचे पायदान पर है और देश में क्या विदेशी जमीन पर भी जीत का स्वाद चखना स्वाभाविक बात है। इस दौर कि नींव रखने वाले कुछ खास खिलाड़ियो में एक रहे या कहें कि इस दौर की शुरुआत जिनके टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण के साथ हुई, उन‌ महान् सुनील मनोहर गावस्कर ने पिछले दिनों अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट आगमन के पचास साल पूर्ण किये। छह मार्च 1971 में वेस्ट इंडीज की बड़ी ही बलशाली टीम के विरुद्ध टेस्ट क्रिकेट में कदम रखने वाले सुनील गावस्कर का उचित सम्मान क्रिकेट बोर्ड ने अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में किया। भारत बनाम इंग्लैंड मैच भारतीय ने जीता और सुनील गावस्कर को अच्छा तोहफा दिया।

1971 से पूर्व का भारतीय क्रिकेट

सुनील गावस्कर की महानता समझने के लिये उनके पहले भारतीय क्रिकेट किस हाल में था, यह समझना आवश्यक है। 1932 में ब्रिटिश इंडिया ( आज के भारत,  पाकिस्तान और बांग्लादेश) की टीम  को आधिकारिक रूप से भारतीय क्रिकेट टीम के नाम से खेलने का मौका मिला। शुरू के वर्षों मे केवल अनुभव प्राप्त करना भी मुश्किल था। केवल राजा-महाराजाओं के पसंदीदा खिलाड़ियों का ही चयन होता था। खेलने के मौके भी कम थे और द्वितीय विश्व युद्ध ने तो‌ 5-6 वर्ष खेल बंद ही कर दिया।

स्वतंत्र भारत टीम से कई अच्छे खिलाड़ी पाकिस्तान चले गये। टीम फिर से बनना शुरू हुई। स्पिन का दबदबा था और घरेलू माहौल मे कभी-कभार जीत मिलती थी। टायगर पटौदी ने जीत के लिये खेलना सिखाया और‌ न्यूजीलैंड मे जीत दिलाई पर भरोसेमंद बल्लेबाजी न होने के कारण यह सफलता एक अपवाद बनके रह गयी। 1932 से 1971 तक भारतीय क्रिकेट टीम सिर्फ एक काबिले तारीफ सिरीज जीत पायी थी।

गावस्कर दौर‌ में भारत

गावस्कर 1971 मार्च से 1987 रिलायंस कप तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेले। इस दौरान भारत ने वेस्ट इंडीज को वेस्ट इंडीज में, इंग्लैंड को इंग्लैंड में दो बार, ऑस्ट्रेलियाई टीम को उसकी भूमि पर कड़ी टक्कर दी और कई टेस्ट मैच जीते। 

एक दिवसीय मैचों में क्रांति का भी हिस्सा रहे गावस्कर

लंबे समय पर भारतीय क्रिकेट टीम के दिग्गज ओपनर बल्लेबाज सुनील मनोहर गावस्कर

शुरू में पायजामा क्रिकेट कहे जाने वाले एक दिवसीय क्रिकेट में भारत बेहद कमजोर प्रदर्शन करता। इसका कारण क्षमता का अभाव नहीं बल्कि खिलाड़ियों का खेल के प्रति गलत रुझान था। इस रुझान में बड़ा बदलाव 1982 मे वेस्ट इंडीज की भूमि पर बार्बिस के मैदान पर आया। सुनील गावस्कर ने अपने नैसर्गिक खेल के विपरीत आक्रामक बल्लेबाजी करते हुए 117 गेंदों मे 90 रन बना दिये।

वे शतक के लिये नहीं खेले और रन आउट हुए। टीम ने जीत का स्वाद चखा और उसके तुरंत बाद विश्व कप 1983 संपन्न हुआ। वह कहानी तो मशहूर है, गावस्कर बल्लेबाजी में ज्यादा सफल नहीं रहे पर‌ वे टीम को आत्मविश्वास से लबरेज कर चुके थे। भारतीय क्रिकेट टीम ने फिर गावस्कर के नेतृत्व में 1985 में क्रिकेट वर्ल्ड सीरीज जीत ली। गावस्कर ने खेल की ऊंचाई पर कप्तानी छोड़कर एक नया आदर्श रखा जिसे महेंद्र सिंह धोनी ने भी अपनाया।

क्या विशेष गुण लेकर आये गावस्कर

गावस्कर ने बल्लेबाजी मे कई रिकॉर्ड बनाये और कई तोड़ दिए। चाहे 10,000 रन बनाने वाले और 30 शतक बनाने वाले पहले बल्लेबाज हों या सर्वाधिक शतकीय साझेदारियां और सौ से भी ज्यादा कैच हों। रिकॉर्ड से भी ज्यादा भारतीय क्रिकेट को सुनील गावस्कर ने दिया आत्मविश्वास। हेल्मेट के बिना दुनिया भर की घास भरी अनकवर विकेट्स पर बल्लेबाजी करने का आत्मविश्वास और वो भी वेस्ट इंडीज,  ऑस्ट्रेलिया,  पाकिस्तान,  इंग्लैंड और न्यूजीलैंड जैसी दमदार टीमों के दौर में।

ध्यान दिला दूं कि श्रीलंका 1982 तक, जिम्बांब्वे,  बांग्लादेश,  अफगानिस्तान, आयरलैंड टीमें गावस्कर के दौर में नहीं थीं। गार्नर मार्शल,  होल्डिंग, राबर्ट्स ( वेस्ट इंडीज), लिली,  थॉमसन,  पास्को (ऑस्ट्रेलिया), बॉथम,  विलिस, डिले ( इंग्लैंड) इमरान, सरफराज ( पाकिस्तान),  हैडली,  चैटफील्ड ( न्यूजीलैंड) का सामना करने का आत्मविश्वास। विदेशी भूमि पर सशक्त विदेशी टीमों को टक्कर देने का आत्मविश्वास। परिस्थितियों का आकलन करके रणनीति बनाने का आत्मविश्वास।

आज यह आत्मविश्वास और उसका साथ देने वाले सशक्त ग्यारह खिलाड़ी एवं‌ बाकी के खिलाड़ी भारतीय टीम को अलग स्तर पर लेकर गये हैं। लेकिन, सनी गावस्कर के सूर्य की चमक मंदी नहीं पड़ी है। वे आज भी पूरे उत्साह और आत्मविश्वास से भारतीय क्रिकेट की कहानी कमेंट्री बॉक्स से बयान कर रहे हैं। आशा करते है यह सुनहरे दिन अनेक वर्षों तक ऐसे ही कायम रहें।


Related posts

जयपुर में भी बने एमएसएमई टेक्नोलॉजी सेंटर

admin

They do Little things for every Other

admin

Indication #4: You are always requested to overstep your borders

admin