नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के जिला मजिस्ट्रेट को अवमानना नोटिस जारी किया। आरोप है कि उन्होंने नवंबर 2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए एक मस्जिद का कुछ हिस्सा गिरा दिया। इस आदेश में देशभर में बिना पूर्व सूचना और सुनवाई के किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ पर प्रतिबंध लगाया गया था।
न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई और ए.जी. मसीह की पीठ ने जिला प्रशासन को अगली सुनवाई तक किसी भी और विध्वंस कार्यवाही से रोका है। यह मामला अब 18 मार्च को फिर से सुना जाएगा।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि जिस मदनी मस्जिद को तोड़ा गया, वह निजी भूमि पर स्थित थी और 1999 में नगर निगम से स्वीकृत थी। इसके स्वीकृति रद्द करने के किसी भी प्रयास को दो दशक पहले हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ैफ़ा अहमदी, जो याचिकाकर्ता अजमतुन्निसा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे (जिन्होंने कथित रूप से मस्जिद निर्माण के लिए भूमि दान की थी), ने बताया कि दिसंबर 2024 में उप-जिलाधिकारी (SDM) ने स्थल का निरीक्षण किया था। निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, निर्माण स्वीकृत योजना के अनुरूप था, और यदि कोई अवैध निर्माण था, तो उसे पहले ही हटा दिया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “इन परिस्थितियों में, की गई तोड़फोड़ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की गंभीर अवमानना है। जिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए, इस पर नोटिस जारी किया जाता है।”
सुप्रीम कोर्ट का दखल और कानूनी पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल ऐसे समय में दिया है जब मुस्लिम पक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि उनकी धार्मिक स्थलों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है।
• इससे पहले गुजरात के सोमनाथ जिले में कई मुस्लिम दरगाहों और संपत्तियों को गिराने का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
• साथ ही, ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी) और शाही ईदगाह (मथुरा) जैसे मामलों में भी हिंदू पक्ष द्वारा मंदिर पुनः प्राप्ति के मुकदमे दायर किए गए हैं।
• हाल ही में अजमेर दरगाह (राजस्थान), संभल और बदायूं (उत्तर प्रदेश) के धार्मिक स्थलों को लेकर भी नए मुकदमे दर्ज हुए हैं, जिससे धार्मिक और राजनीतिक तनाव बढ़ा है।
नवंबर 13, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने “बुलडोजर न्याय” पर रोक लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें कहा गया था कि
1. कोई भी तोड़फोड़ बिना पूर्व नोटिस, 15 दिन की जवाबी अवधि और व्यक्तिगत सुनवाई के बिना नहीं की जा सकती।
2. संपूर्ण कार्रवाई का वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य होगा ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
3. यह नियम सार्वजनिक भूमि (सड़क, जलाशय आदि) पर अवैध निर्माण और अदालत द्वारा आदेशित विध्वंस पर लागू नहीं होगा।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मामले को लेकर राजनीतिक दलों में भी प्रतिक्रिया आई है:
• समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने कहा,
“जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रकार की विध्वंस कार्रवाई पर रोक लगाई थी, तो यूपी सरकार ने मस्जिद को गिराने का निर्णय कैसे लिया? यह कानून के अनुरूप नहीं है।”
• उत्तर प्रदेश बीजेपी (BJP) के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा,
“राज्य सरकार अदालत में अपना पक्ष रखेगी। निचली अदालत द्वारा लगाया गया स्टे हटने के बाद ही प्रशासन ने कार्रवाई की। यूपी सरकार सभी अदालतों के आदेशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और किसी भी प्रकार की अवमानना नहीं चाहती।”
याचिकाकर्ताओं की मांग
याचिकाकर्ताओं ने अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही, यथास्थिति बनाए रखने का आदेश, और हुए नुकसान की भरपाई की मांग की है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अहमदी ने तर्क दिया कि यह विध्वंस केवल एक राजनीतिक अफवाह के कारण किया गया। एक राजनीतिक नेता ने कथित रूप से झूठा दावा किया था कि वहां एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनाई जा रही है, जिसके बाद प्रशासन ने कार्रवाई की।
आगे क्या?
18 मार्च को अगली सुनवाई में अदालत तय करेगी कि:
• क्या जिला मजिस्ट्रेट को अवमानना का दोषी ठहराया जाए
• क्या याचिकाकर्ताओं को मुआवजा दिया जाए
• क्या मस्जिद के पुनर्निर्माण की अनुमति दी जाए
यह मामला देशभर में धार्मिक स्थलों को लेकर चल रही कानूनी लड़ाइयों और सुप्रीम कोर्ट की “बुलडोजर न्याय” पर रोक लगाने की नीति का एक महत्वपूर्ण परीक्षण बन सकता है।