अदालत

सद्गुरु की ईशा फाउंडेशन को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट देने के मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा

नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (TNPCB) द्वारा ईशा फाउंडेशन को कथित पर्यावरणीय उल्लंघनों को लेकर जारी किए गए नोटिसों को रद्द कर दिया गया था।
ईशा फाउंडेशन, जो प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित है, को इस फैसले से बड़ी राहत मिली है। जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने TNPCB की अपील खारिज करते हुए कहा कि कोयंबटूर के वेलियंगिरी पहाड़ियों की तलहटी में स्थित योग और ध्यान केंद्र के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
क्या है मामला?
TNPCB ने 2021 में ईशा फाउंडेशन को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। आरोप था कि फाउंडेशन ने 2006 से 2014 के बीच परिसर में पर्यावरणीय मंजूरी के बिना निर्माण कार्य किया।
हालांकि, मद्रास हाई कोर्ट ने 14 दिसंबर 2022 को यह कहते हुए नोटिस रद्द कर दिया कि ईशा फाउंडेशन एक शैक्षणिक संस्थान की श्रेणी में आता है और ऐसे संस्थानों को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि ईशा फाउंडेशन को भविष्य में सभी पर्यावरणीय नियमों और TNPCB के निर्देशों का पालन करना होगा। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय अनधिकृत निर्माण को नियमित करने के लिए मिसाल नहीं बनेगा।
तमिलनाडु के महाधिवक्ता पी.एस. रमन ने चिंता व्यक्त की कि इस फैसले को स्थायी छूट के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अदालत ने भी कहा कि किसी भी भविष्य के विस्तार के लिए प्राधिकरण की मंजूरी आवश्यक होगी।
केंद्र का पक्ष
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि ईशा फाउंडेशन योग शिक्षा प्रदान करता है और एक स्कूल संचालित करता है, जो इसे एक शैक्षणिक संस्थान की श्रेणी में लाता है। मई 2022 में केंद्र ने एक ज्ञापन जारी कर कहा था कि मानसिक, नैतिक और शारीरिक विकास के लिए प्रशिक्षण देने वाले संस्थान भी शैक्षणिक श्रेणी में आते हैं, जिससे फाउंडेशन का पक्ष मजबूत हुआ।
क्या होगा आगे?
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि ईशा फाउंडेशन भविष्य में सभी पर्यावरणीय मानकों का पालन करे और किसी भी निर्माण के लिए आवश्यक मंजूरी प्राप्त करे।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि पर्यावरणीय नियमों का पालन सभी संस्थानों के लिए अनिवार्य है, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में छूट दी जा सकती है।

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