जयपुर

स्वच्छ सर्वेक्षण-2021 टीम की आंखों में धूल झोंकने के लिए सफाई कर्मचारियों और अधिकारियों की दो दिन की छुट्टियां निरस्त

स्वच्छ सर्वेक्षण-2021 में अच्छी रैंकिग पाने के नगर निगम जयपुर ग्रेटर के हसीन सपने ख्याली पुलाव की तरह की तरह पूरे होते दिखाई नहीं देते हैं। महापौर सौम्या गुर्जर निगम ग्रेटर को नंबर वन बनाने के बार-बार दावे कर रही थीं लेकिन उनके दावों की भी हवा निकलती दिखाई दे रही है। कारण यह कि साल भर सफाई में मेहनत करने के बजाय हर बार निगम सिर्फ सर्वेक्षण के दिनों में ही सफाई पर जोर देता है।

स्वच्छ सर्वेक्षण की टीम स्टार रैंकिंग देने के लिए इन दिनों नगर निगम ग्रेटर का सर्वे कर रही है। टीम को शहर में सफाई व्यवस्था दुरुस्त मिले, इसके लिए ग्रेटर के सभी जोन और वार्ड के सफाईकर्मियों, जमादार, वार्ड सफाई निरीक्षकों और मुख्य सफाई निरीक्षकों का शनिवार और इतवार का अवकाश निरस्त कर दिया गया है।

इस संबंध में ग्रेटर के उपायुक्त स्वास्थ्य हर्षित वर्मा ने शुक्रवार, 2अप्रेल को ये आदेश निकाले हैं। सफाई से जुड़े सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्देशित किया गया है कि वे दोनों दिन फील्ड में रहकर सफाई कार्य की सही तरीके से मॉनिटरिंग करेंगे। निरस्त हुए इन अवकाश के एवज में जोन उपायुक्त आवश्यकता अनुसार अपने स्तर पर क्षतिपूर्ति अवकाश दे दिया जाएगा।

ये आदेश निगम के करतूतों की कलई खोल रहा है। यदि निगम पूरे समय सफाई व्यवस्था पर ध्यान दे तो ऐसी स्थितियां ही नहीं बने लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। साल भर निगम के अधिकारी और कर्मचारी सफाई में कमाई का खेल खेलते रहते हैं और जब सर्वेक्षण शुरू हो जाता है तो सबकी आंखों में धूल झोंकने के लिए एक्टिव हो जाते हैं। एक ओर डोर-टू-डोर सफाई में बड़ा घोटाला चल रहा है, वहीं दूसरी ओर सफाई कर्मचारियों और अधिकारियों की आपसी मिलीभगत से एवजी कर्मचारी व अन्य कई तरीकों से घोटाले किए जा रहे हैं, ऐसे में जयपुर का सफाई में अच्छी रैंकिंग लाना ख्याली पुलाव के समान नजर आ रहा है।

बीवीजी को लेकर चल रही तनातनी
निगम सूत्रों का कहना है कि शहर में डोर-टू-डोर स्वच्छता कार्य में लगी बीवीजी कंपनी को लेकर इन दिनों महापौर सौम्या गुर्जर और आयुक्त यज्ञमित्र सिंह के बीच तनातनी चल रही है। बुधवार, 31 मार्च को डोर-टू-डोर सफाई को लेकर आयोजित बैठक में दोनों के बीच काफी बहस भी हुई। महापौर चाहती हैं कि बीवीजी को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए। ग्रेटर की बोर्ड बैठक में भी बीवीजी का काम बंद कराने के लिए प्रस्ताव पास हो चुका है, इसके बावजूद आयुक्त बीवीजी को भुगतान करने के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि कुछ समय पूर्व तक आयुक्त भी बीवीजी के काम के खिलाफ दिखाई दे रहे थे। सूत्र कह रहे हैं कि आयुक्त को एक करोड़ रुपये तक के भुगतान करने का पॉवर है। ऐसे में बिना महापौर के संज्ञान में लाए टुकड़ों में बीवीजी को भुगतान किया जा सकता है।

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