किसी अनुभवी ने कहा है बादाम खाने से अक्ल नहीं आती बल्कि जीवन में ठोकरें खाने से आती है यानी हम जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं और अनुभव हासिल करते जाते हैं, जीवन जीने की कला सीखते जाते हैं। आज जब मैं शांत चित्त के साथ अतीत के बारे में सोचती हूं तो पाती हूं कि बीते वर्षों मे मैंने काफी कुछ नया सीखा है। यदि मैंने जीवन की इन सीखों या अनुभवों को आज से बीस साल पहले पा लिया होता तो शायद मैंने निजी और व्यावसायिक जीवन को कुछ अलग ही मुकाम दिया होता। आज मैं आपको वो पांच बातें या जीवन की उन सीखों के बारे बताती हूं जिनके बारे में मैं हमेशा सोचती हूं कि काश उन्हें मैंने आज से 20 साल पहले समझ लिया होता।
स्वास्थ्यवर्धक भोजन लेने की आदत विकसित करें
20 साल पहले, मेरा मानना था कि मैं जो भी जंक फूड खाऊंगी, उसका मेरे शरीर पर कभी भी कोई प्रतिकूल असर नही पड़ेगा. आज जब मैं 50 वर्ष की होने जा रही हूं इन अस्वस्थ्कर खाने की आदतों से जो मोटापा आया है वह मेरे अनेको प्रयत्न के बाद भी जाने का नाम नही ले रहा है. इस मोटापे को मुझ से इतना प्यार हो गया है कि वह मुझे छोड़ना ही नही चाहता.
काश, मैं इस बात को 20 साल पहले समझ जाती कि चढ़ती उम्र के दौर में स्वास्थ्यवर्धक भोजन बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि जो कुछ आप खाते हैं, उसका आपके स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन प्रभाव होता है।
चिंताओं की चिता जलाएं
चिंता मेरा दूसरा नाम रहा है। मैं मंदी के दौरान नौकरी, बढ़ती महंगाई, वायु प्रदूषण के कारण बिगड़ते स्वास्थ्य और यहां तक कि बॉस की ओर से आये ईमेल की भाषा शैली के बारे में सोच-सोचकर या ट्रैफिक में फंसने की परेशानी की कल्पना करने मात्र से अपनी रातों की नींद हराम करती रही हूं। मैं जीवन में इस तरह की सभी बड़ी और छोटी चीजों के बारे में बुरे से बुरे परिदृश्यों तक की कल्पना कर डालती थी। अब जाकर मुझे समझ आया है कि अधिकतर खराब से खराब काल्पनिक घटना जीवन में कभी घटित ही नहीं होती हैं !
काश, मैं 20 साल पहले जान पाती कि चिंता करने से कुछ हासिल नहीं होता क्योंकि अक्सर एक छोटी सी बात जीवन को ग्रहण की भांति आच्छादित कर देती है। फिर, निश्चित समय के बाद ग्रहण अपने आप समाप्त हो जाता है जीवन फिर से सामान्य चलने लग जाता है। ऐसे में जरूरी है कि आप चिंताओं को छोड़ें जीवन के उतार-चढ़ाव का लुत्फ उठाएं।
जो बीत गई सो बात गई..
अनेक वर्षों तक मैं अतीत को अपने जीवन पर हावी होने देती रही। जीवन की कड़वाहटों को मैंने लंबे समय तक अपने दिमाग से निकाला ही नहीं। स्थिति यह हो गई कि मैं घोर निराशा के अंधकार में डूबती ही जाती थी। लेकिन, बाद में मुझे समझ आया कि हम जीवन में तब तक आगे नहीं बढ़ सकते जब तक कि हम जीवन के बीते हुए अध्यायों को बार-बार पढ़ना नहीं छोड़ देते या कड़वी यादों को दिमाग से निकाल नहीं देते। काश! मैं समझ पाती कि जीवन के बोझ को समय रहते जल्दी से जल्दी हल्का कर दिया जाये तो हम शांति और सुखमय जीवन जी सकते हैं।
जीवन यात्रा का आनंद लें
मैं अपने दिन भर के कामों की सूची बनाती और अनुशासनबद्ध रहकर उन्हें पूरा करने के प्रयास किया करती थी। मैंने अपने दिन को कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के मध्य समेट लिया था। मैं अपने द्वारा तय किये गए कार्य लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक कार्यकर्ता मधुमक्खी की भांति दौड़-भाग करती रहती थी। निर्धारित कार्य पूरा करने के बाद मैं जबर्दस्त आत्मसंतुष्टि का अनुभव करती थी। मुझे यह समझ पाने में 20 वर्ष लग गये कि जीवन में तय किये गये कार्य लक्ष्य को हासिल करने की अपेक्षा उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयास बेहद महत्वपूर्ण हैं। वास्तव में कार्य को समाप्त करने से अधिक उस कार्य को करने में अधिक खुशी मिलती है।
बेहतर व मजबूत संबंध बनाए रखें
शुरुआती 20 वर्षों के बाद जीवन बहुत तेजी से दौड़ने लगता है। मैं ऐसा महसूस करती हूं कि मेरे स्कूल और कॉलेज के दिनों के कई दोस्त अथवा पुराने दफ्तर के अधिकतर सहयोगी जीवन से धीरे-धीरे दूर होते चले गये हैं। निस्संदेह, संबंध हमारे जीवन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, फिर भी अनचाहे ही ये संबंध उपेक्षित भी होते चले जाते हैं। काश, मैं आज भी अपने पुराने अच्छे दोस्तों के साथ जुड़ी रह पाती।
आखिर ऐसे दोस्त तो होने ही चाहिए जिनके साथ मौज-मस्ती की जा सके, भोजन साथ लिया जा सके, खरीदारी के लिए साथ जाया जा सके, अपने दिल की कही- सुनी जा सके और परेशानी के दौर या जीवन के झंझावातों में जो आपके साथ हमेशा आपका हाथ थामे खड़े रहें।
भला, इनसे अधिक जीवन के और क्या सबक हो सकते हैं, जिन्हें कोई 20 साल पहले सीख पाता..!
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