समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर लॉ कमीशन ने आम लोगों, संगठनों से सुझाव मांगे थे। सोमवार शाम तक कमीशन को यूसीसी पर 46 लाख सुझाव मिल चुके हैं। इनमें से कुछ लोगों और संगठनों के सुझावों पर बात करने के लिए आयोग ने उन्हें निजी तौर पर बुलाया है। कुछ लोगों को इसके लिए न्योता भी भेजा जा चुका है। लॉ कमीशन ने 14 जून 2023 को यूसीसी पर सार्वजनिक रूप से लोगों और संगठनों के सुझाव मांगे थे। आयोग का मानना है कि यह मुद्दा देश के हर नागरिक से जुड़ा है, ऐसे में कोई फैसला लेने से पहले उनकी राय जानना जरूरी है। यूसीसी पर सुझाव देने की आखिरी तारीख 14 जुलाई है।
पीएम ने उठाया था यूसीसी का मुद्दा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून को मध्य प्रदेश में एक जनसभा के दौरान यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा कि वर्तमान में यूसीसी के नाम पर भड़काने का काम हो रहा है। एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो, तो वो घर नहीं चल पाएगा। ऐसे में दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट भी कह रही है कि कॉमन सिविल कोड लाओ।
यूसीसी कोई नया मुद्दा नहीं
इसके बाद कांग्रेस, असदुद्दीन आवैसी समेत विपक्षी पार्टियों ने भाजपा पर मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की साजिश बताया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने भी मंगलवार को मीटिंग बुलाई और अपना पक्ष लॉ कमीशन के सामने रखने की बात कही। लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस ऋतुराज अवस्थी का भी बयान सामने आया था। उन्होंने कहा- यूसीसी कोई नया मुद्दा नहीं है। हमने कंसल्टेशन प्रोसेस भी शुरू कर दी है। इसके लिए कमीशन ने आम जनता की राय मांगी है।
अखंडता के लिए देशद्रोह कानून जरूरी
जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने देशद्रोह कानून पर भी बात की। उन्होंने कहा- देश की एकता और अखंडता के लिए देशद्रोह कानून जरूरी है। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में भी देशद्रोह से जुड़ी हुई धारा 124 को इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में बरकरार रखने की सिफारिश की है।
यूसीसी लागू हुआ, तो क्या असर होगा
पर्सनल लॉ पर संकट
देश में विविधता के आधार पर अलग-अलग धर्म और समुदायों के पर्सनल लॉ हैं। यूसीसी लागू होने से इन पर्सनल लॉ पर संकट आएगा। वजह है कि किसी भी व्यक्तिगत मामले में जब दोनों पक्षों का पर्सनल लॉ अलग-अलग हो, तो कोर्ट के सामने भी समस्या हो जाती है। या फिर पर्सनल लॉ की बाध्यता के चलते न्यायालय भी किसी व्यक्ति के अधिकार की रक्षा करने में अक्षम नजर आती है।
शरीयत को मिलेगी चुनौती
बहुसंख्यक आबादी पर खास असर नहीं होगा। मगर, मध्यप्रदेश में मुसलमानों की 7 फीसदी आबादी और आदिवासियों की 21 फीसदी आबादी पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुविवाह, तलाक और उत्तराधिकार को लेकर इनके व्यक्तिगत कानून बहुसंख्यक हिंदुओं से अलग हैं।
एक से अधिक विवाह भी होगा अपराध
मुस्लिम पर्सनल लॉ में मुसलमानों को एक से ज्यादा निकाह की अनुमति है। अगर, समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद एक से अधिक विवाह अपराध होगा। इसके अलावा, अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक देने के बाद वापस उसके साथ रहना चाहे, तो हलाला और इद्दत जैसी प्रक्रियाओं की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी।
लैंगिक समानता के कानून को बढ़ावा
अगर कोई मुस्लिम महिला पति को तलाक देने के बाद वापस उसके साथ रहना चाहे, तो हलाला और इद्दत जैसी प्रक्रियाओं की अनिवार्यता होती है, जो यूसीसी लागू होने के बाद यह खत्म हो जाएगी, इसलिए जब भी समान नागरिक संहिता की बात होती है, तो इसे लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले कानून के रूप में भी देखा जाता है।
महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा
महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलना शुरू हो जाएगा। कोई भी पारसी महिला अगर दूसरे धर्म में शादी करती है, तो उनके व्यक्तिगत कानून के हिसाब से उन्हें पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता। समान नागरिक संहिता उन्हें ये अधिकार दिला पाएगा। इसे लैंगिक समानता से जोड़कर भी देखा जा रहा है।