संयुक्त राष्ट्र। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में ट्रांसअटलांटिक संबंधों में एक नाटकीय बदलाव देखने को मिला, जब अमेरिका ने सोमवार को तीन संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों पर मतदान के दौरान अपने यूरोपीय सहयोगियों से अलग रुख अपनाया और रूस को यूक्रेन पर हमले के लिए दोषी ठहराने से इनकार कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिका ने रूस के साथ मिलकर उस यूरोप-समर्थित यूक्रेनी प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जिसमें मॉस्को की आक्रामकता की निंदा की गई थी और रूसी सैनिकों की तत्काल वापसी की मांग की गई थी। इसके बाद, अमेरिका ने अपने ही प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, क्योंकि फ्रांस के नेतृत्व में यूरोपीय देशों ने उसमें संशोधन कर रूस को हमलावर के रूप में स्पष्ट रूप से इंगित किया था।
यह मतदान ऐसे समय में हुआ, जब ट्रंप वॉशिंगटन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मेजबानी कर रहे थे। 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिका के इस कदम को ट्रंप प्रशासन के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। हालांकि महासभा के प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन वे वैश्विक जनमत के संकेतक माने जाते हैं।
इसके बाद, अमेरिका ने अपने मूल मसौदे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पेश किया, जहां प्रस्तावों की कानूनी मान्यता होती है और अमेरिका के पास रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस के साथ वीटो शक्ति है। 15 सदस्यीय परिषद में यह प्रस्ताव 10-0 के अंतर से पारित हुआ, जबकि पांच यूरोपीय देशों ने मतदान से परहेज किया।
यूक्रेन और यूरोप से दूर होता अमेरिका
इन विरोधाभासी प्रस्तावों ने अमेरिका और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव को उजागर किया, खासकर तब, जब ट्रंप ने अचानक रूस के साथ बातचीत शुरू कर युद्ध को जल्द समाप्त करने की कोशिश की। यह ट्रंप प्रशासन और यूरोपीय सहयोगियों के बीच बढ़ते मतभेदों को भी दिखाता है, जो रूस के साथ ट्रंप के रिश्तों को लेकर असहज हैं।
यूरोपीय नेताओं ने नाराजगी जताई कि उन्हें और यूक्रेन को पिछले हफ्ते हुई प्रारंभिक वार्ता से बाहर रखा गया। ट्रंप ने तीखी बयानबाजी में यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को “तानाशाह” कहा, कीव पर झूठा आरोप लगाया कि उसने युद्ध शुरू किया और चेतावनी दी कि अगर ज़ेलेंस्की जल्द ही संघर्ष खत्म करने की दिशा में कदम नहीं उठाते तो उनके पास नेतृत्व करने के लिए कोई देश नहीं बचेगा।
इस पर ज़ेलेंस्की ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ट्रंप “रूस निर्मित दुष्प्रचार के जाल में फंस चुके हैं।”
ट्रंप की मैक्रों से मुलाकात के बाद गुरुवार को ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर भी वाशिंगटन आएंगे। ये दोनों नेता पहले अमेरिका के साथ यूक्रेन मुद्दे पर एकमत थे, लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र में युद्ध समाप्त करने के सही तरीके पर विभाजित नजर आ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान और अमेरिका का बदलता रुख
सोमवार को हुए पहले मतदान में महासभा ने यूक्रेन द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को 93-18 के मतों से मंजूरी दी, जबकि 65 देशों ने मतदान से परहेज किया। यह यूक्रेन के लिए समर्थन में गिरावट को दर्शाता है, क्योंकि पहले के मतदान में 140 से अधिक देशों ने रूस की आक्रामकता की निंदा की थी और तत्काल वापसी की मांग की थी।
इसके बाद महासभा ने अमेरिका द्वारा तैयार प्रस्ताव पर विचार किया, जिसमें रूस की आक्रामकता का कोई जिक्र नहीं था, बल्कि केवल यह कहा गया था कि “रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण हुई त्रासदी” को स्वीकार किया जाए और युद्ध को जल्द समाप्त किया जाए।
फ्रांस ने प्रस्ताव में तीन संशोधन जोड़े, जिनका 20 से अधिक यूरोपीय देशों ने समर्थन किया। इन संशोधनों में यह जोड़ा गया कि यह युद्ध “रूसी संघ द्वारा यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण” के कारण हुआ।
रूस ने भी एक संशोधन का प्रस्ताव दिया, जिसमें “युद्ध के मूल कारणों” पर ध्यान देने की बात कही गई थी, लेकिन यह असफल रहा। अंततः संशोधित अमेरिकी प्रस्ताव 93-8 के मतों से पारित हुआ, जिसमें 73 देशों ने मतदान से परहेज किया। यूक्रेन ने प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया, अमेरिका ने मतदान से परहेज किया, और रूस ने विरोध किया।
यूक्रेन की उप विदेश मंत्री मारियाना बेटसा ने कहा कि उनका देश रूस के आक्रमण के खिलाफ “आत्मरक्षा के अपने मूल अधिकार” का प्रयोग कर रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा, “तीन साल पूरे हो चुके हैं—रूस का यूक्रेन पर पूर्ण आक्रमण जारी है। हम सभी देशों से आग्रह करते हैं कि वे चार्टर, मानवता और न्यायसंगत शांति का समर्थन करें—शक्ति के माध्यम से शांति।”
ट्रंप प्रशासन का तर्क और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका
ट्रंप ने अक्सर “शक्ति के माध्यम से शांति” की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है। अमेरिका की उप राजदूत डोरोथी शीया ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित कई प्रस्ताव रूस की निंदा कर चुके हैं, लेकिन “वे युद्ध को रोकने में विफल रहे हैं, जिससे यूक्रेन, रूस और दुनिया भर में बहुत अधिक नुकसान हुआ है।”
शीया ने कहा, “हमें एक ऐसे प्रस्ताव की जरूरत है, जो सभी UN सदस्य देशों की प्रतिबद्धता को दर्शाए कि वे युद्ध को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए कार्य करेंगे।”
यूक्रेन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की भूमिका अहम हो गई है, क्योंकि 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद रूस के वीटो के कारण किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाई है। 24 फरवरी 2022 को रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद महासभा ने आधा दर्जन प्रस्ताव पारित किए हैं, जिनमें आक्रमण की निंदा और रूसी सैनिकों की तत्काल वापसी की मांग की गई है।
संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वासिली नेबेंज़िया ने पिछले हफ्ते कहा था कि मूल अमेरिकी प्रस्ताव “एक अच्छा कदम” था।
सोमवार को पारित यूक्रेनी प्रस्ताव में महासभा के पिछले प्रस्तावों का हवाला देते हुए कहा गया कि “रूस को यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर से तुरंत, पूरी तरह और बिना शर्त अपने सभी सैन्य बलों को हटाना चाहिए।”
इस प्रस्ताव में महासभा ने एक बार फिर यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई और स्पष्ट किया कि “बल प्रयोग या धमकी से की गई कोई भी क्षेत्रीय अधिग्रहण वैध नहीं मानी जाएगी।”
प्रस्ताव में युद्धविराम, संघर्ष के शीघ्र समाप्ति और यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान की जरूरत को रेखांकित किया गया। इसमें इस वर्ष युद्ध समाप्त करने की “तत्काल आवश्यकता” को भी दोहराया गया।