हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा
जयपुर। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी पी जोशी की ओर से दायर एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट अब 27 जुलाई को सुनवाई करेगा। इस मामले में गुरुवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि क्या चुने गए प्रतिनिधि अपनी असहमति नहीं जता सकते हैं? अगर असहमति को दबाया गया तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट को कहा है कि वह 24 जुलाई को अपना आदेश पारित करे। कोर्ट आगे की सुनवाई सोमवार को करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई है कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम होगा और हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा।
जोशी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि हाईकोर्ट अध्यक्ष को निर्देश जारी नहीं कर सकता है। ऐसे में राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश सही नहीं है। वह अध्यक्ष को आदेश नहीं दे सकते हैं, यह तयशुदा नियम है। अध्यक्ष के अयोग्यता पर लिए गए फैसले का जूडिशियल रिव्यू हो सकता है, लेकिन उससे पहले कार्रवाई के दौरान दखल नहीं हो सकता है।
सिब्बल की दलीलों पर जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बैंच ने सवाल किया कि अध्यक्ष अगर किसी विधायक को अयोग्य घोषित करते हैं तो क्या कोर्ट दखल नहीं दे सकता है? क्या हाईकोर्ट ने इस पहलू पर आपको सुना है? सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का हाल का जजमेंट है जिसमें अध्यक्ष से कहा गया है कि एक तय समय सीमा में वह अयोग्यता पर फैसला लें।
कोर्ट ने सवाल किया कि अयोग्य ठहराने के लिए क्या आधार लिया गया? इसके जवाब में कहा गया कि यह विधायक पार्टी मीटिंग में शामिल नहीं हुए। ये पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे और फ्लोर टेस्ट की मांग कर रहे थे।
इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि एक आदमी जो चुनाव मे निर्वाचित हुआ है क्या उसे असहमति जताने का अधिकार नहीं है? अगर असहमति की आवाज को दबाया गया तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या पार्टी मीटिंग में आने के लिए व्हिप जारी हो सकता है? सिब्बल ने कहा कि यह मामला सिर्फ बैठक में शामिल होने का नहीं है बल्कि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का भी है, इस मामले को अध्यक्ष ही देखेंगे।
इस पर कोर्ट ने कहा कि मामले को विस्तार से सुनने की जरूरत है। इसके लिए हमें मामले का परीक्षण करना होगा। मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांस्फर करने की दलील को भी कोर्ट ने ठुकरा दिया और हाईकोर्ट से कहा कि वह अपना आदेश पारित करें और हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा।