जयपुर

जब भी विवाद हुआ, ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट की फाइलें हो गई गायब

निगम की स्वास्थ्य शाखा सवालों के घेरे में

जयपुर। नगर निगम में विवादित मामलों की फाइलें काफी समय से गायब होती रही है, लेकिन स्वास्थ्य शाखा ने इसमें नया कारनामा कर दिया है। शाखा से एक ही प्रोजेक्ट की करीब आधा दर्जन फाइलें समय-समय पर गायब होने से यहां कार्यरत अधिकारियों को सवालिया निशान लग गए हैं। फाइलों के गायब होने का सिलसिला दो वर्ष पूर्व शुरू हुआ था, जबकि वरिष्ठ अधिकारियों ने इस कंपनी का कार्य बंद करने और बकाया वसूली के निर्देश दिए थे।

वर्ष 2016 में तत्कालीन महापौर निर्मल नाहटा ने सेवापुरा में फूड वेस्ट से खाद बनाने के प्लांट का दौरा किया था और गड़बड़ियाँ देखकर इस ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट का काम बंद करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद निगम आयुक्त हेमंत गेरा ने कंपनी के कार्यों की समीक्षा के लिए अतिरिक्त आयुक्त हरसहाय मीणा, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेंद्र गर्ग और दो उपायुक्त स्वास्थ्य नवीन भारद्वाज और करणी सिंह की कमेटी बनाई। इस कमेटी ने कंपनी के कार्यों की जांच के बाद इसे बंद करने और इससे निगम का रेवेन्यु शेयर वसूलने की अनुसंशा की। कमेटी की रिपोर्ट कंपनी की मूल फाइल में अटैच कर दी गई और उपायुक्त स्वास्थ्य को काम बंद कराने के निर्देश दिए गए।

और गायब हो गई फाइलें

जैसे ही काम बंद करने के आदेश स्वास्थ्य शाखा में पहुंचे, वैसे ही कंपनी के संचालकों और शाखा के कार्यरत निगमकर्मियों की मिलीभगत से यह फाइल गायब कराने की कोशिशें शुरू कर दी। वर्ष 2018 में नए अतिरिक्त आयुक्त अरुण गर्ग ने भी फिर से कंपनी को बंद करने के निर्देश निकाले। इसके बाद अचानक कंपनी की मूल फाइल गायब हो गई। फाइल के साथ कंपनी से संबंधित अन्य चार-पांच फाइलें भी गायब हो गई। मामला उजागर होने के बाद उपायुक्त स्वास्थ्य ने फाइलों के लिए खोज पत्र जारी कर निगम की सभी शाखाओं और जोनों में फाइलों की तलाश कराई। फाइलें नहीं मिलने पर उपायुक्त स्वास्थ्य की ओर से ज्योतिनगर थाने में फाइलों के चोरी होने की एफआईआर दर्ज कराई गई, लेकिन दो साल बीतने को आए, अभी तक यह फाइलें नहीं मिली।

फिर वही कारस्तानी

मूल फाइल के गायब होने के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर कंपनी की डुप्लिकेट फाइल तैयार की गई, ताकि कंपनी से हिसाब-किताब किया जा सके। निगम सूत्रों का कहना है कि इस कंपनी को बंद करने और इससे निगम के रेवेन्यू शेयर वसूलने का फैसला पहले ही हो चुका था। इसके बावजूद कंपनी के संचालक ने 90 लाख का बिल पेश किया और स्वास्थ्य शाखा की ओर से इस बिल को सत्यापित कर दिया गया था, लेकिन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ने बिल की फाइल पर विपरीत टिप्पणी कर दी। इसी दौरान किसी ने इस प्रोजेक्ट में चल रहे फर्जीवाड़े को लेकर एसीबी में परिवाद भी दर्ज करा दिया, तो डुप्लिकेट और बिल की फाइल भी मिलीभगत से गायब हो गई।

स्वास्थ्य शाखा पर सवालिया निशान

शाखा से लगातार एक ही कंपनी की फाइलें गायब होने से स्वास्थ्य शाखा पर सवालिया निशान लग गए हैं। सवाल यह है कि जब दो वर्ष पूर्व कंपनी का काम बंद कराने का फैसला हो गया था तो उपायुक्त स्वास्थ्य ने यह काम बंद क्यों नहीं कराया? जब कंपनी का कार्यकाल 2019 में खत्म हो गया था, उसके बाद भी यह कंपनी कैसे काम कर रही है? क्या कंपनी ने फूड वेस्ट उठाने के एवज में शुल्क नहीं देने वाले विवाह स्थलों की सूची निगम को सौंप दी है। यदि नहीं तो फिर कैसे उपायुक्त स्वास्थ्य ने इस सूची के बिना कंपनी के बिल को सत्यापित कर दिया? एफआईआर दर्ज होने के बावजूद गायब फाइलों के मामले को ठंड़े बस्ते में क्यों डाल दिया गया? इस पूरे घटनाक्रम और सवालों के बाद कंपनी को किया जाने वाला भुगतान संदेह के घेरे में आ गया है। सूत्र कह रहे हैं कि यह पूरा मामला मिलीभगत से फर्जी भुगतान का बन रहा है।

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