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केरल ब्लास्ट के जिम्मेदार का सरेंडर ! कौन होते हैं ‘यहोवा साक्षी’, ईसाइयों से कितने अलग

यहोवा साक्षी एक ईसाई संप्रदाय है, जिसकी उत्पत्ति 19वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। भारत में बड़ी तादाद में यहोवा साक्षी रहते हैं।
केरल के एर्नाकुलम जिले के कलामासेरी इलाके में रविवार (29 अक्टूबर) को यहोवा साक्षियों की प्रार्थना सभा में कई विस्फोट हुए। धमाकों में दो लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। सिलसिलेवार धमाके उस समय हुए, जब करीब 2,000 लोग प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए थे।
केरल में यहोवा साक्षी बड़ी संख्या में हैं और वे एक शताब्दी से अधिक समय से यहां सक्रिय हैं। फिलहाल पुलिस घटना की जांच कर रही है। इस बीच एक व्यक्ति ने घटना की जिम्मेदारी लेते हुए कोकादरा पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया। शख्स का नाम डॉमिनिक मार्टिन है। केरल पुलिस ने कहा कि डॉमिनिक मार्टिन ने उसे कुछ सबूत भी मुहैया कराए हैं, जिनकी फिलहाल जांच चल रही है।
यहोवा साक्षियों की गतिविधियों को बताया राष्ट्र-विरोधी
पुलिस के आगे सरेंडर करने से पहले मार्टिन ने फेसबुक पर लाइव पर कहा कि उसने यहोवा साक्षियों की मंडली पर उनके राष्ट्र-विरोधी आदर्शों के कारण हमला किया। उसने कहा कि उन्होंने यहोवा साक्षियों का गुमराह करने वाला आंदोलन देखा और उसे ठीक करने की कोशिश की। उसने अपने फेसबुक लाइव में कहा, ‘मेरा नाम मार्टिन है। यहोवा साक्षी समूह के सम्मेलन में एक बम विस्फोट हुआ, जिसमें काफी तबाही हुई। मैं धमाकों की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। मैं यह फेसबुक लाइव यह समझाने के लिए कर रहा हूं कि मैंने यह काम क्यों किया।’
संगठन की शिक्षाएं देश-विरोधी
वीडियो में मार्टिन ने कहा, ‘छह साल पहले, मुझे एहसास हुआ कि यह संगठन गलत था और इसकी शिक्षाएं देश-विरोधी थीं। मैंने यह बात उनके ध्यान में लाई और उनसे अपने तरीके सुधारने का आग्रह किया। हालांकि, उन्होंने सुधार नहीं किया।’
संगठन की समाज में आवश्यकता नहीं
उसने आगे कहा, ‘वे जो सिखाते हैं मैं उसका विरोध करता हूं। मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूं कि इस संगठन की समाज में आवश्यकता नहीं है। मैं तुरंत पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण कर दूंगा। आगे किसी जांच की कोई जरूरत नहीं है।’ मार्टिन ने कहा, ‘मैंने बम विस्फोटों की योजना कैसे बनाई, इसके बारे में न्यूज चैनलों या सोशल मीडिया पर प्रसारित नहीं किया जाना चाहिए। यह जानकारी एक आम आदमी तक पहुंचना खतरनाक हो सकती है।’
कौन हैं यहोवा साक्षी?
यहोवा साक्षी एक ईसाई संप्रदाय है, जिसकी उत्पत्ति 19वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। इसकी मान्यताएं और प्रथाएं ईसाई धर्म से भिन्न हैं। यह यहोवा नाम के ईश्वर को मानते हैं और इनका विश्वास है कि दुनिया का अंत निकट है। समूह ट्रिनिटी में लोकप्रिय ईसाई आस्था को नहीं मानता है। इनका मूल सिद्धांत है कि ईश्वर, मसीह और पवित्र आत्मा सभी एक ईश्वर के पहलू हैं। उनके लिए यहोवा ही एकमात्र सच्चा ईश्वर है, जो सभी चीजों का बनाने वाला है। यहोवा के साक्षी मानते हैं कि यीशु ईश्वर से अलग हैं। वह ईश्वर के पुत्र के रूप में सेवा कर रहे हैं।
यहोवा साक्षी की उत्पत्ति कैसे हुई?
यहोवा के साक्षी की उत्पत्ति 1870 के दशक में चार्ल्स टेज रसेल ने की थी। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘बाइबिल स्टूडेंट मूवमेंट’ की एक ब्रांच की स्थापना की थीं। इस दौरान रसेल और उनके अनुयायियों ने कई विशिष्ट मान्यताएं विकसित कीं। 1916 में रसेल की मृत्यु के बाद, जोसेफ फ्रैंकलिन रदरफोर्ड समूह के नेता बने और 1931 में इस ब्रांच को यहोवा साक्षी नाम अपनाया। रदरफोर्ड के नेतृत्व में यहोवा के साक्षियों ने तेजी से विकास किया। इस समूह के आज दुनिया भर में लगभग 8.5 मिलियन सदस्य हैं।
भारत में क्या है यहोवा साक्षियों की स्थिति?
भारत में लगभग 56,747 साक्षी बाइबल पढ़ाते हैं। वर्तमान में समूह की भारत में 947 मंडलियां हैं। दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत में भी यहोवा के साक्षी सार्वजनिक गवाही गतिविधियों में भाग लेते हैं। वे अक्सर बाजारों और पार्कों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर साहित्य स्टैंड स्थापित करते हैं। यह स्टैंड उनके प्रकाशनों की मुफ्त कॉपियां प्रदान करते हैं। समय-समय पर भारत में यहोवा साक्षी सम्मेलनों और सभाओं का आयोजन करते हैं। यह संप्रदाय शिक्षा पर भी जोर देता है। भारत में यहोवा साक्षी एक व्यापक शैक्षिक कार्यक्रम संचालित करते हैं, जिसके तहत बाइबल का अध्ययन और अन्य धार्मिक शैक्षिक दी जाती है।

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