नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हरियाणा सरकार को तीन निर्दोष व्यक्तियों को ₹5 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया, जिन्हें गलत तरीके से हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया था और आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने इस न्यायिक चूक के लिए सरकारी वकील (पब्लिक प्रॉसीक्यूटर) को ज़िम्मेदार ठहराया और राज्य सरकारों द्वारा राजनीतिक आधार पर नियुक्त किए जाने वाले सरकारी वकीलों की व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए।
मामले का संक्षिप्त विवरण
• 1998 के हत्या मामले में, ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था।
• मृतक के पिता ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका (रिवीजन पिटीशन) दायर की।
• अगस्त 2024 में, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए आरोपियों को दोषी ठहरा दिया, जो कि कानूनी रूप से गलत था।
• हाईकोर्ट में सरकारी वकील ने दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की, जबकि हरियाणा सरकार ने बरी किए गए आरोपियों के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की थी।
• सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2024 में आरोपियों को जमानत दी और अब उनकी दोषसिद्धि को पूरी तरह से रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि “हाईकोर्ट ने जिस तरह से बरी किए गए लोगों को दोषी ठहराया, वह पूरी तरह से गैरकानूनी था। यदि न्यायालय को संदेह था, तो वह सिर्फ पुनः परीक्षण (रिट्रायल) का आदेश दे सकता था, लेकिन दोषसिद्धि का आदेश देने का अधिकार नहीं था।”
अदालत ने कहा कि सरकारी वकील (Public Prosecutor) का कर्तव्य निष्पक्ष रूप से अदालत की मदद करना होता है, लेकिन इस मामले में उन्होंने गंभीर लापरवाही दिखाई। “यह तब होता है जब राज्य सरकारें हाईकोर्ट में सरकारी वकीलों और सहायक सरकारी वकीलों (AGPs और APPs) की नियुक्ति पूरी तरह से राजनीतिक आधार पर करती हैं। इससे न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर खतरा मंडराने लगता है।”
सरकारी वकीलों की नियुक्ति पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी वकीलों की निष्पक्षता और योग्यता की अनदेखी पर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने कहा, “सरकारी वकील सिर्फ सरकार के प्रवक्ता नहीं होते, बल्कि वे एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकारी होते हैं। उनका कर्तव्य केवल दोष सिद्ध करना नहीं, बल्कि न्याय सुनिश्चित करना भी होता है।” “अगर कोई निर्दोष व्यक्ति फंस रहा है, तो सरकारी वकील को अदालत के सामने यह स्पष्ट करना चाहिए, न कि किसी भी तरह से सजा दिलाने का प्रयास करना चाहिए।”
अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि न्यायाधीश भी मानव हैं और उनसे भी गलतियां हो सकती हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करना सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकील दोनों की ज़िम्मेदारी होती है कि न्यायालय को सही मार्गदर्शन दिया जाए।
गलत सजा के दुष्परिणाम
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को गंभीरता से लिया कि इन तीन व्यक्तियों को तीन महीने तक गलत तरीके से जेल में रहना पड़ा। अदालत ने कहा, “इन निर्दोष व्यक्तियों की न केवल आज़ादी छीनी गई, बल्कि उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा को भी अपूरणीय क्षति पहुंची।”
अदालत ने हरियाणा सरकार को चार सप्ताह के भीतर ₹5 लाख प्रति व्यक्ति के हिसाब से मुआवजा देने का आदेश दिया। अदालत ने चेतावनी देते हुए कहा, यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और सरकारी वकीलों की “यदि सरकार इस आदेश का पालन करने में असफल रहती है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। ”
जवाबदेही को लेकर एक महत्वपूर्ण संकेत है। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल गलत सजा पाने वाले व्यक्तियों को न्याय दिलाया, बल्कि सरकारों को योग्य और निष्पक्ष सरकारी वकीलों की नियुक्ति सुनिश्चित करने की सख्त हिदायत भी दी।